हनुमान जयंती पर इन नियमों के साथ पढ़ें हनुमान चालीसा, सभी मनोकामनाए होगी पूरी

Update: 2022-04-14 13:21 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |  हनुमान जयंती मुख्य हिंदू पर्व में से एक है. यह चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है. मान्यता है कि इस पर्व को मनाने के पीछे हनुमान जी का जन्म दिवस है. मुख्य रूप से हनुमान जी की पूजा दिन मंगलवार और शनिवार के दिन की जाती है. इस दिन हनुमान जी पर चोला, सिंदूर और बूंदी के लड्डू चढ़ा कर उनकी पूजा अर्चना करते हैं. साथ ही हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हनुमान जयंती के दिन हनुमान चालीसा (Hanuman Chalisa) का पाठ करने से कई समस्याओं को दूर किया जा सकता है. जी हां, आज का हमारा लेख इसी विषय पर है. जानते हैं हनुमान जयंती पर हनुमान चालीसा का पाठ करने से क्या-क्या लाभ (Benefits of Hanuman Chalisa) हो सकते हैं. पढ़ते हैं 

ऐसे पढ़ें हनुमान चालीसा
हनुमान जयंती के दिन सबसे पहले ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि करके सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं और उसके बाद व्रत का संकल्प लें. अब आप हनुमान जी की प्रतिमा को स्थापित करके हाथ जोड़ें और उनके सामने ओम श्री हनुमते नमः का जप करें. 108 बार इस मंत्र का जप करने के बाद हनुमान चालीसा का पाठ करें. ऐसा करने से न केवल भगवान श्री राम प्रसन्न होंगे बल्कि हनुमान जी की कृपा भी बरसेगी.
हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग वन्दन।।
विद्यावान गुणी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपत कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरै सब पीरा। जपत निरंतर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम वचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिनके काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावै।सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु-संत के तुम रखवारे। असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस वर दीन जानकी माता।।
राम रसाय तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।
अन्त काल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेई सर्व सुख करई।।
संकट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सतबार पाठ कर कोई। छूटहिं बंदि महा सुख होई।।
जो यह ढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।


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