शनिवार के दिन पढ़े दशरथकृत शनि स्तोत्र, मिलेगी शनि की साढ़ेसाती से मुक्ती

कहा जाता है कि अपने जीवन में हर व्यक्ति को कभी न कभी शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या से गुजरना पड़ता है. ये स्थितियां व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी मानी जाती हैं. इनसे बचने के लिए राजा दशरथ द्वारा रचित शनि स्तोत्र काफी उपयोगी है.

Update: 2021-10-02 01:39 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज शनिवार का दिन है. शनिवार का दिन शनिदेव के लिए समर्पित होता है.अन्य ग्रहों की तरह शनिदेव भी दूसरे ग्रहों में गोचर करते हैं, लेकिन उनकी चाल बहुत धीमी होती है. एक ग्रह से दूसरे ग्रह में जाने में उन्हें ढाई वर्ष का समय लगता है. शनि की इस चाल के चलते लोगों को शनि की ढैय्या (Dhaiya) और साढ़ेसाती (Shani Sade Sati) जैसी स्थितियों से गुजरना पड़ता है. ये स्थितियां व्यक्ति के लिए काफी कष्टकारी मानी जाती हैं. ढैय्या और साढ़ेसाती के दौरान व्यक्ति को कई तरह के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक समस्याएं झेलनी पड़ती हैं. इसे ही शनि का प्रकोप कहा जाता है.

शनि के प्रकोप से बचने के लिए लोग तरह तरह के जतन करते हैं. लेकिन यहां हम आपको बताने जा रहे हैं, वो आसान तरीका जो शनिदेव के प्रकोप से आपको बहुत सरलता से बचा सकता है. अगर आप शनि साढ़ेसाती या ढैय्या से पीड़ित हैं, तो आपको निश्चित रूप से हर शनिवार को दशरथकृत शनि स्तोत्र ( Dasharathkrit Shani Stotra) का पाठ करना चाहिए. कहा जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान राम के पिता राजा दशरथ ने की थी. उन्होंने शनिदेव की स्तुति करके उन्हें प्रसन्न किया था. तब शनिदेव ने उनसे कहा था कि जो भी दशरथ द्वारा रचित इस शनि स्तोत्र का पाठ करेगा, उसे शनि से संबन्धित कष्ट नहीं भोगने होंगे.
ये है दशरथकृत शनि स्तोत्र
नमः कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च
नमः कालाग्निरुपाय कृतान्ताय च वै नमः

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते

नमः पुष्कलगात्राय स्थुलरोम्णेऽथ वै नमः
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नमः
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने

नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च

अधोदृष्टेः नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तु ते

तपसा दग्ध.देहाय नित्यं योगरताय च
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नमः

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज.सूनवे
तुष्टो ददासि वै राज्यं रूष्टो हरसि तत्क्षणात्

देवासुरमनुष्याश्र्च सिद्ध.विद्याधरोरगाः
त्वया विलोकिताः सर्वे नाशं यान्ति समूलतः

प्रसाद कुरु मे सौरे! वारदो भव भास्करे
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबलः
कैसे करें पाठ
सुबह या शाम कभी भी आप इसका पाठ कर सकते हैं. पाठ करने से पहले शनिदेव के समक्ष सरसों के तेल का दीपक जलाएं और उनसे अपने कष्टों को दूर करने की प्रार्थना करें. इसके बाद इस शनि स्तोत्र का पाठ पूरी श्रद्धा के साथ करें. पूजा के बाद किसी शनि मंदिर में या पीपल के नीचे सरसों के तेल का एक दीपक रखें. यदि कोई गरीब दिखे तो उसे सामर्थ्य के अनुसार दान दें.


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