Palmistry: हस्तरेखा शास्त्र में कुछ ऐसी रेखाओं का जिक्र मिलता है जो हर किसी की हथेली में नहीं होती हैं। लेकिन कहते हैं कि ये जिनकी भी हथेली में होती हैं उनकी किस्मत सबसे अलहदा यानी कि अलग होती है। तो आइए जानते हैं कि ये रेखाएं कौन सी हैं और कैसा देती हैं परिणाम?इसे कहते हैं बृहस्पति मुद्रिका
इसे कहते हैं बृहस्पति मुद्रिका
palmistry rare signs हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, अगर किसी की हथेली में रेखा हो तो वह जातक अत्यंत विद्वान होता है। हालांकि यह रेखा बहुत ही रेयर होती है। कहते हैं कि अत्यधिक विद्वान होने के चलते ऐसे जातक सांसरिक सुख के मोह में नहीं पड़ते। ये धार्मिक कार्यों में ही अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं और समाज में इन्हें विशेष स्थान प्राप्त होता है। मान्यता तो यह भी है कि जिनकी भी हथेली में यह रेखा होती है उन्हें सभी विद्वाओं का ज्ञान होता है। साथ ही गुप्त विद्या में भी ये पारंगत होते हैं। Jupiter Ring
ऐसे पहचानें बृहस्पति मुद्रिका को
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, बृहस्पति मुद्रिका रेखा को पहचानना अत्यंत सरल है। यह रेखा तर्जनी और मध्यमा ऊंगली के मध्य भाग से शुरू होकर गोलाई लिए हुए, बृहस्पति क्षेत्र को अंगूठी के समान घेर लेती है। यानी कि यह पूरी अंगूठी के आकार की होती है और क्योंकि यह बृहस्पति क्षेत्र को घेरती है इसलिए ही इसे बृहस्पति मुद्रिका रेखा कहा जाता है।
इसे कहते हैं शनि मुद्रिका
शनि मुद्रिका ऐसी रेखा है जो होती तो बहुत रेयर है। लेकिन जिनकी भी हथेली में होती है उन्हें अत्यंत कष्टमय जीवन जीना पड़ता है। कहते हैं कि ऐसे जातक योजनाएं तो बड़ी-बड़ी बनाते हैं और प्रयास भी करते हैं लेकिन दिल और दिमाग में तारतम्य का अभाव होने से इन्हें अमूमन असफलता का ही सामना करना पड़ता है। यही नहीं बड़ी मुश्किल से अगर ये कोई कार्य शुरू भी कर दें तो वह भी बीच में रुक जाता है। लेकिन अगर यह रेखा टूटी-फूटी हो तो जातकों को इससे कुप्रभाव से कुछ हद तक राहत मिल जाती है।
ऐसे पहचानें शनि मुद्रिका को
हस्तरेखा शास्त्र के अनुसार, शनि मुद्रिका रेखा Rare तो होती ही है लेकिन यह अशुभ भी होती है। हालांकि इसके होने से इतनी दु:ख-तकलीफें झेलनी पड़ती हैं कि सभी यह सोचते हैं कि ये न ही हो तो अच्छा है। बता दें कि इसे पहचानने के लिए आपको हथेली में तर्जनी और मध्यमा ऊंगली के बीच में देखना है। यह रेखा यहीं से शुरू होकर पूरी तरह से गोलाई लिए हुए शनि क्षेत्र को घेरते हुए अनामिका और मध्यमा के बीच समाप्त होती है।