धर्म अध्यात्म: हिंदू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भगवान विष्णु को राक्षसों का नरसंहार करने के लिए इस धरती पर कई अवतार लेने पड़े हैं. प्रमुख रूप से 24 अवतारों में से ही एक अवतार हेग्रीव भी था. ग्रन्थों की मानें तो 16वें अवतार का रूप हयग्रीव है. वैसे तो भारत देश के दक्षिणी भाग में भगवान विष्णु के बहुतायत संख्या में मंदिर स्थित है जहां वैष्णव धर्म को मानने वाले लाखों श्रद्धालु अपना मत्था टेकते है.
भगवान के जिस रूप की वह पूजार्चन करते उस रूप की इकलौता प्रतिमा दमोह जिले के मोहड़ ग्राम से खुदाई के दौरान मिलना इस बात का धुतक है कि दमोह की पावन धरा वैष्णव संप्रदाय के लोग भी पले बढ़े होंगे. इस प्रतिमा को देखने देश विदेश के लोग यहां आते है.भगवान विष्णु जी के इस अवतार के संबंध में कई कथाएं सुनने को मिलती है. पहली यह कि एक बार मधु और कैटभ नाम के दो शक्तिशाली राक्षस ब्रह्माजी से वेदों का हरण कर रसातल में पहुंच गए.
वेदों का हरण हो जाने से ब्रह्माजी बहुत दु:खी हुए और भगवान विष्णु के पास पहुंचे. तब भगवान ने हयग्रीव अवतार लिया. इस अवतार में भगवान विष्णु की गर्दन और मुख घोड़े के समान थी. तब भगवान हयग्रीवरसातल में पहुंचे और मधु-कैटभ का वध कर वेद पुन: भगवान ब्रह्मा को दिए.वहीं दूसरी कथा यह है कि एक बार कीड़े ने भगवान विष्णु के धनुष की प्रत्यंचा काट दी.
जिस वजह से भयानक आवाज हुई और भगवान विष्णु का सिर कट गया और फिर देखते-देखते वह सिर विलुप्त हो गया. महामाया के कहने पर ब्रह्मा जी ने एक घोड़े का मस्तक काट कर विष्णु जी के धड़ से जोड़ दिया. जिसके बाद भगवान विष्णु का हयग्रीव अवतार हुआ. जो प्रतिमा वर्तमान में दमयंती संग्रहालय दमोह में मौजूद है.
पुरात्व अभिलेखागा अधिकारी सुरेंद्र चौरसिया ने बताया की रानी दमयंती पुरातत्व संग्रहालय में विभिन्न प्रतिमाओं में से एक प्रतिमा भगवान विष्णु की हयग्रीवअवतार की है जो 10 से 11वीं शताब्दी की प्राचीन प्रतिमाओं में से एक है. यह प्रतिमा मोहड़ ग्राम से प्राप्त हुई थी जो पूरे भारतवर्ष में अनोखी प्रतिमाओं में से एक है. कहा जाता है, भगवान विष्णु ने हेग्रीव राक्षस का वद करने के लिए घोड़े के सिरनुमा आकृति स्वरूप धारण किया था और हेग्रीव राक्षस का वध किया तभी से यह स्वरूप है हयग्रीवनाम से जाना जाने लगा.