मां धूमावती देती हैं कष्टों से मुक्ति, गुप्त नवरात्रि की सप्तमी पर इस तरह करें पूजा
आज गुप्त नवरात्रि की सप्तमी तिथि है.
आज गुप्त नवरात्रि की सप्तमी तिथि है. आज भक्त मां धूमावती की पूजा अर्चना करेंगे. मां धूमावती के दर्शन से संतान और पति की रक्षा होती है. मां भक्तों के सभी कष्टों को मुक्त कर देने वाली देवी हैं. मान्यता है कि सुहागिन महिलाएं मां धूमावती का पूजन नहीं करती हैं, बल्कि केवल दूर से ही मां के दर्शन करती हैं. गुप्त नवरात्रि की सप्तमी तिथि को धूमावती देवी के स्तोत्र का पाठ, सामूहिक जप-अनुष्ठान किया जाता है.
स्तुति
विवर्णा चंचला कृष्णा दीर्घा च मलिनाम्बरा,
विमुक्त कुंतला रूक्षा विधवा विरलद्विजा,
काकध्वजरथारूढा विलम्बित पयोधरा,
सूर्पहस्तातिरुक्षाक्षी धृतहस्ता वरान्विता,
प्रवृद्वघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा,
क्षुत्पिपासार्दिता नित्यं भयदा काल्हास्पदा।
मंत्र
ॐ धूं धूं धूमावत्यै फट्।।
धूं धूं धूमावती ठ: ठ:।
रुद्राक्ष की माला से 108 बार, 21 या 51 बार इस मंत्र का जाप करें.
माता धूमावती की पूजा विधि:
मां धूमावती दस महाविद्याओं में अंतिम विद्या है, विशेषकर गुप्त नवरात्रि में इनकी पूजा होती है. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करके जल, पुष्प, सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, फल, धूप, दीप तथा नैवैद्य आदि से मां का पूजन करना चाहिए. इसके बाद मां धूमावती की कथा सुननी चाहिए. पूजा के पश्चात अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मां से प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि मां धूमावती की कृपा से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है और दुख, दारिद्रय दूर होकर मनोवांछित फल प्राप्त होता है.
माता धूमावती की पूजा विधि:
मां धूमावती दस महाविद्याओं में अंतिम विद्या है, विशेषकर गुप्त नवरात्रि में इनकी पूजा होती है. ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र करके जल, पुष्प, सिन्दूर, कुमकुम, अक्षत, फल, धूप, दीप तथा नैवैद्य आदि से मां का पूजन करना चाहिए. इसके बाद मां धूमावती की कथा सुननी चाहिए. पूजा के पश्चात अपनी मनोकामना पूर्ण करने के लिए मां से प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए, क्योंकि मां धूमावती की कृपा से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है और दुख, दारिद्रय दूर होकर मनोवांछित फल प्राप्त होता है.
मां धूमावती के प्रकट होने की कथा
मां धूमावती के प्राकट्य से संबंधित कथाएं अनूठी हैं. पहली कहानी तो यह है कि जब सती ने पिता के यज्ञ में स्वेच्छा से स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया तो उनके जलते हुए शरीर से जो धुआं निकला, उससे धूमावती का जन्म हुआ. इसीलिए वे हमेशा उदास रहती हैं यानी धूमावती धुएं के रूप में सती का भौतिक स्वरूप हैं. सती का जो कुछ बचा रहा- उदास धुआं.
दूसरी कहानी यह है कि एक बार सती भगवान शिव के साथ हिमालय में विचरण कर रही थीं. तभी उन्हें जोरों की भूख लगी. उन्होंने शिव से कहा- मुझे भूख लगी है, मेरे लिए भोजन का प्रबंध करें. शिव ने कहा- अभी कोई प्रबंध नहीं हो सकता. तब सती ने कहा- ठीक है, मैं तुम्हें ही खा जाती हूं और वह शिव को ही निगल गईं. शिव तो स्वयं इस जगत के सर्जक हैं, परिपालक हैं लेकिन देवी की लीला में वो भी शामिल हो गए.
भगवान शिव ने उनसे अनुरोध किया- मुझे बाहर निकालो, तो उन्होंने उगल कर उन्हें बाहर निकाल दिया. निकालने के बाद शिव ने उन्हें शाप दिया कि आज और अभी से तुम विधवा रूप में रहोगी. तभी से वह विधवा हैं. पुराणों में अभिशप्त, परित्यक्त, भूख लगना और पति को निगल जाना ये सब सांकेतिक प्रकरण हैं. यह इंसान की कामनाओं का प्रतीक है, जो कभी खत्म नहीं होती और इसलिए वह हमेशा असंतुष्ट रहता है. मां धूमावती उन कामनाओं को खा जाने यानी नष्ट करने की ओर इशारा करती हैं