Shri Krishna: श्रीकृष्ण ने दुर्योधन और अर्जुन को युद्ध की सलाह दी थी क्यों जानिए

Update: 2024-06-24 09:08 GMT
Shri Krishna:  महाभारत में काल की अनिवार्यता का प्रतिपादन बार-बार किया गया है। काल की इस अनिवार्यता के प्रतिपादन से मनुष्य के अंत:करण में निरुपायता का बोध होता है। लगता है कि व्यक्ति के सारे प्रयत्न व्यर्थ है। यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या काल ईश्वर का प्रतिद्वंद्वी है,
जो ईश्वर की सृष्टि को अपनी इच्छा के अनुरूप चलाने की चेष्टा करता है?
क्या उसकी यथेच्छाचारिता को रोकने की क्षमता ईश्वर में नहीं है? गीता में अर्जुन पूछते हैं कि 'न चाहते हुए भी व्यक्ति पाप की ओर क्यों प्रवृत्त होता है, ऐसा लगता है कि जैसे कोई बलपूर्वक पाप की दिशा में ले जाने की चेष्टा करता है।' तो भगवान श्रीकृष्ण इसका उत्तर देते हुए कहते हैं कि काम और क्रोध व्यक्ति को पाप की दिशा में ले जाते हैं। इन महाशत्रुओं का वध किया जाना चाहिए :
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम्।।
किंतु एक स्तर ऐसा आता है, जहां वे कहते हैं कि ईश्वर ही सबकी अंतरात्मा में बैठा हुआ उन्हें कठपुतली की तरह नचा रहा है:
ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति। भ्रामयन्सर्वभूतानि यन्त्रारूढानि मायया।। गीता/१८/६१
इन दोनों प्रकार की विचारधाराओं में परस्पर विसंगति-सी प्रतीत होती है, पर भिन्न स्तरों पर विचार करने पर इस विरोधाभास का सामंजस्य मिल जाता है।
इसे रंगमंच पर किए जाने वाले नाटक के माध्यम से हृदयंगम किया जा सकता है। नाट्य-मंच पर नायक और खलनायक परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं और दर्शक के लिए इस विरोध को वास्तविक माने बिना नाट्य-रस की अनुभूति नहीं हो सकती, पर नाट्य-मंच के पीछे का सत्य इससे भिन्न है। वहां देखने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि नायक और खलनायक सूत्रधार की इच्छा के द्वारा ही संचालित होते हैं।
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