जानें कब से हो रही है जगन्नाथ रथयात्रा की शुरुआत और पूरा शेड्यूल

ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से हर साल आषाढ़ माह में भव्य रथयात्रा निकाली जाती है।

Update: 2022-06-28 04:58 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर से हर साल आषाढ़ माह में भव्य रथयात्रा निकाली जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार इस साल रथ यात्रा की शुरुआत 01 जुलाई से होगी। हिंदू मान्यता के अनुसार, विष्णु के अवतार श्री कृष्ण का ही एक रूप जग्न्नाथ हैं। जिसका अर्थ होता है, जग का स्वामी। रथ यात्रा का आयोजन हर साल किया जाता है। रथयात्रा में भगवान जग्न्नाथ के अलावा उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा के रथ भी शामिल होते हैं। रथयात्रा जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर गुंडिचा मंदिर तक पहुंचती है। हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का खास महत्व है। रथ यात्रा निकालने के 15 दिन पहले ही जगन्नाथ मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। फिर कपाट खुलते ही यात्रा की शुरुआत होती है।

रथ यात्रा का शेड्यूल
01 जुलाई- गुंडिचा यात्रा (रथयात्रा प्रारंभ): मौसी के घर मिलने जाने की योजना होती है।
05 जुलाई- हेरा पंचमी: रथयात्रा के पहले दिन पांचवें दिन तक गुंडिचा मंदिर में भगवान वास करते हैं।
08 जुलाई- संध्या दर्शन: इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन और पूजा का विशेष महत्व होता है। आम लोग इस दिन दर्शन कर सकते हैं।
09 जुलाई- बहुदा यात्रा: इस दिन भगवान जगन्नाथ, बलभद्र एवं बहन सुभद्रा की वापसी होती है, जिसे बहुदा यात्रा कहते हैं।
10 जुलाई- सुनाबेसा: जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान के शाही रूप की तैयारी की जाती है। सुनाबेसा वह रूप है, जिसे भगवान जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ धारण करते हैं।
11 जुलाई- आधर पना: आषाढ़ शुक्ल द्वादशी के दिन देवताओं के रथ पर एक विशेष पेय चढ़ाया जाता है। इस पेय को ही आधार पना कहते हैं। यह पेय दूध, पनीर, चीनी एवं मेवों से बनाया जाता है।
12 जुलाई- नीलाद्री बीजे: पुरी की जगन्नाथ रथयात्रा के सबसे दिलचस्प अनुष्ठानों में एक है नीलाद्री बीजे।
खास होता है रथ का निर्माण
इन रथों का निर्माण खास तरह से किया जाता है। इनका आकार अलग-अलग होता है। ये रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ आकार में बड़ा होता है और इसका रंग लाल पीला होता है। इस रथ को नंदीघोष या गरुध्वज कहते हैं। रथ यात्रा के दौरान सबसे पहले देवी सुभद्रा का रथ होता है, जिसे दर्पदलन या पद्म रथ कहा जाता है, जो काले या नीले और लाल रंग का होता है। उसके बाद बालभद्र का रथ होता है, जिसे तालध्वज कहते हैं, जिसका रंग लाल और हरा होता है और फिर अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।
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