शुक्रवार को पढ़ें Vaibhav Lakshmi Vrat Katha , मिलेगी माता लक्ष्मी की कृपा

Update: 2025-02-07 13:04 GMT
Vaibhav Lakshmi Vrat Katha ज्योतिष न्यूज़ : सप्ताह का ​हर दिन किसी न किसी देवी देवता को समर्पित है वही शुक्रवार का दिन लक्ष्मी पूजा के लिए श्रेष्ठ माना गया है इस दिन भक्त माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए उनकी विधिवत पूजा करते हैं और उपवास आदि भी रखते हैं मान्यता है कि ऐसा करने से माता रानी कृपा करती हैं लेकिन इसी के साथ ही अगर शुक्रवार की पूजा के दौरान वैभव लक्ष्मी की व्रत कथा का पाठ किया जाए तो माता लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है और परिवार की तरक्की होती है, तो हम आपके लिए लेकर आए हैं वैभव लक्ष्मी व्रत कथा।
 वैभव लक्ष्मी व्रत कथा—
किसी शहर में लाखों लोग रहते थे। सभी अपने-अपने कामों में रत रहते थे। किसी को किसी की परवाह नहीं थी। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गए। शहर में बुराइयां बढ़ गई थीं। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती वगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे। इनके बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे। ऐसे ही लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी स्वभाव वाली थी। उनका पति भी विवेकी और सुशील था। शीला और उसका पति कभी किसी की बुराई नहीं करते थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे। देखते ही देखते समय बदल गया। शीला का पति बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। अब वह जल्द से जल्द करोड़पति बनने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चल पड़ा। उसकी हालत रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी हो गई थी। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। इस प्रकार उसने अपना सब कुछ गवां दिया।
 शीला को पति के बर्ताव से बहुत दुःख हुआ, किंतु वह भगवान पर भरोसा कर सबकुछ सहने लगी। वह अपना अधिकांश समय प्रभु भक्ति में बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर को उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी। शीला ने द्वार खोला तो देखा कि एक मांजी खड़ी थी। उसके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आंखों में से मानो अमृत बह रहा था। उसका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलक रहा था। उसको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। शीला के रोम-रोम में आनंद छा गया। शीला उस मांजी को आदर के साथ घर में ले आई। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचाकर एक फटी हुई चद्दर पर उसको बिठाया। मांजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहां आती हूं।’ इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी। फिर मांजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई।’
शीला यह सुनकर आनंदित हो गई। शीला ने संकल्प करके आंखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि मांजी कहां गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि मांजी और कोई नहीं साक्षात्‌ लक्ष्मीजी ही थीं। दूसरे दिन शुक्रवार था। सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने मांजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया। आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ। यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनंद हुआ। उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई।शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया। इक्कीसवें शुक्रवार को मांजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे मां धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे मां! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो आपका यह चमत्कारी वैभव लक्ष्मी व्रत करें, उनकी सब विपत्ति दूर करना। सभी को सुखी करना। हे मां आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को प्रणाम किया। व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा। उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई। ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियां भी विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं।
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