जानिए होलाष्टक के दौरान क्या करें और क्या न करें
रंगवाली होली से 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाते हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रंगवाली होली से 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाते हैं। मान्यता है कि इस दौरान किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा तक लगे रहते हैं। होलाष्टक के कारण 22 मार्च से लेकर 28 मार्च तक सभी शुभ कार्यों पर रोक लगी रहेगी। होलिका दहन 28 मार्च को तो रंगों का त्योहार होली 29 मार्च को मनाया जाएगा। जानिए होलाष्टक के दौरान क्या करें और क्या न करें…
होलाष्टक के दौरान क्या करें? इस दौरान अपने ईष्ट देव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। व्रत-उपवास रखने चाहिए। इन 8 दिनों में दान-पुण्य के काम करने चाहिए। धन, वस्त्र और अनाज का दान फलदायी माना जाता है। कई जगह होलिका दहन की तैयारी होलाष्टक से शुरू हो जाती है। इसके पहले दिन एक स्थान पर दो डंडे स्थापित किए जाते हैं। एक डंडा होलिका का प्रतीक माना जाता है तो दूसरा डंडा प्रहलाद का प्रतीक। इसके बाद इन डंडों के इर्द-गिर्द उपले, लकड़ियां, घास और जलाने वाली अन्य चीजें एकत्रित की जाती है। अंत में होलिका दहन वाले दिन इसे जला दिया जाता
होलाष्टक में क्या न करें? इस दौरान मांगलिक काम, जैसे शादी, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, किसी नए काम की शुरुआत संबंधी कार्य वर्जित होते हैं। इस दौरान किसी भी तरह का यज्ञ, हवन कोई विशेष पूजा पाठ के कार्य भी नहीं करना चाहिए। कई जगह होलाष्टक के दौरान नवविवाहित लड़कियों को मायके में ही रहने की सलाह दी जाती है।
क्यों नहीं किए जाते शुभ कार्य? मान्यता है कि इन 8 दिनों में राजा हरिण्यकशिपु ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति से हटाने के लिए तमाम तरह की यातनाएं दी थीं। लेकिन विष्णु भगवान की कृपा से प्रह्लाद ने हर तरह के कष्ट और परेशानियाँ झेल लीं। तब हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका से मदद ली। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था जिसके चलते वो प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गयी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए पर होलिका का अग्नि में जलने से अंत हो गया। इन आठ दिनों में विष्णु भक्त प्रह्लाद के साथ हुई यातनाएं के कारण होलाष्टक के समय को अशुभ माना जाता है।