जानिए हिंदू धर्म में व्रत के सही मायने

हिंदू धर्म में करीब-करीब हर माह में तमाम महत्वपूर्ण व्रत रखने का चलन है. शास्त्रों में इन व्रतों के अलग-अलग महत्व के बारे में भी बताया गया है.

Update: 2022-06-25 07:25 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू धर्म में करीब-करीब हर माह में तमाम महत्वपूर्ण व्रत रखने का चलन है. शास्त्रों में इन व्रतों के अलग-अलग महत्व के बारे में भी बताया गया है. व्रत के पुण्य (Virtue of Fast) को प्राप्त करने के लिए लोग निराहार, फलाहार, निर्जल और मौन व्रत आदि अपनी क्षमता के अनुसार रखते हैं. लेकिन सिर्फ भूखा प्यासा रहने या मौन रहने मात्र से व्रत का उद्देश्य पूर्ण नहीं होता और न ही इससे आप उस पुण्य के भागी बन सकते हैं, जिसके बारे में शास्त्रों में बताया गया है. वास्तविकता में व्रत मन, विचार और भावना को शुद्ध करने की एक प्रक्रिया है. इसमें अपनी इंद्रियों को वश में करना सिखाया जाता है. अगर आपने ये सीख लिया तो आपके व्रत का उद्देश्य (Ambition of Fasting) सफल हो जाएगा. ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद​ मिश्र से जानें व्रत के सही मायने और नियम क्या हैं.

अनैतिक कार्यों से दूरी
व्रत वास्तव में व्यक्ति को इंद्रियों पर नियंत्रण करना और सात्विक ढंग से जीवन जीना सिखाता है. ये मन और विचारों को शुद्ध करता है. इसलिए समय-समय पर पड़ने वाले व्रतों के जरिए व्यक्ति को अभ्यास कराया जाता है कि वो इस दिन में किसी भी तरह का अनैतिक कार्य न करे. यानी वो किसी को गलत शब्द न कहें, किसी की बुराई या चुगली न करें, किसी का अपमान न करें, किसी निर्दोष व्यक्ति को न सताएं और बुजुर्गों का सम्मान करें. इन सभी नियमों को भी व्रत के नियमों में शामिल किया गया है. अगर आप इन नियमों को पालन करते हुए व्रत रखते हैं, तो ये आपकी आत्मा को शुद्ध करता है. इस तरह व्रत का समय-समय पर अभ्यास करने पर ये आदतें आपके व्यवहार का हिस्सा बन जाती हैं और आपके प्रभावशाली व्यक्तित्व का निर्माण होता है जो आपको मोक्ष की राह पर ले जाता है.
सात्विक भोजन करें
व्रत से एक दिन पहले, व्रत वाले दिन और व्रत का पारण करते समय व्यक्ति को सात्विक भोजन करने के लिए कहा जाता है. इसमें प्याज, लहसुन, लाल मिर्च और तेल मसाले आदि को नहीं खाया जाता है. इसका कारण है कि ये चीजें तामसिक भोजन में आती हैं. तामसिक भोजन आपके मन को विचलित करता है, आलस पैदा करता है. ये आपको आपके कार्य भी सही तरीके से नहीं करने देता. इसलिए किसी भी तरह के व्रत में इस बात का खयाल रखना चाहिए. इस तरह आप अपनी गलत आदत को वश रखने का अभ्यास करते हैं और तामसिक भोजन के प्रति आसक्ति को कम करके सात्विक भोजन करना सीखते हैं. भोजन को लेकर कहा जाता है जैसा अन्न वैसा मन, यानी आप जैसा भोजन करेंगे, वैसे ही हो जाएंगे.
ब्रह्मचर्य का पालन और ​दूषित विचारों पर संयम
आप चाहे कोई भी व्रत रखें, व्रत के दौरान आपको ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कहा जाता है. इस तरह आप अपनी इंद्रियों पर वश करना सीखते हैं. व्रत के दौरान इस नियम की अनदेखी नहीं करनी चाहिए. इसके अलावा आप अगर मौन व्रत रखते हैं, तो सिर्फ शांत रहने से आपका व्रत सफल नहीं होता, आपका मन शांत होना चाहिए. उसमें किसी भी तरह के दूषित विचार नहीं होने चाहिए, तब आपका व्रत सफल होता है. दूषित विचारों पर अंकुश लगाने के लिए ही व्रत के समय ज्यादा से ज्यादा ईश्वर का नाम लेने के लिए कहा गया है.
दान पुण्य का महत्व
शास्त्रों में व्रत के दौरान आपको जरूरतमंदों को दान पुण्य करने के लिए कहा गया है. दान पुण्य करने से व्यक्ति का मन शुद्ध होता है. उसके अंदर से मैं की भावना दूर होती है और ये विचार पनपता है कि सब कुछ उस परमेश्वर का है. दान पुण्य करने से व्यक्ति के अंदर दूसरों का दर्द समझने, उसकी मदद करने और त्याग की भावना पैदा होती है. इसलिए शास्त्रों में दान पुण्य का विशेष महत्व माना गया है. किसी भी व्रत वाले दिन जरूरतमंद को दान जरूर करना चाहिए. इस तरह अभ्यास करते हुए दान करना आपकी आदत का हिस्सा बन जाएगा.
भगवान की पूजा के मायने
आमतौर पर लोग भूखा रहने और भगवान की पूजा कर लेने भर को व्रत मान लेते हैं. लेकिन भगवान की वास्तविक पूजा वो है, जब आप उनके बताए रास्तों पर चलते हैं. उन नियमों का पालन करते हैं जो शास्त्रों में बताए गए हैं. ईश्वर का दिल से मनन करते हैं. वास्तव में व्रत के दौरान भगवान को साक्षी मानकर मन में संकल्प लें कि आप व्रत के सभी नियमों का पालन करते हुए अपनी आत्मा को शुद्ध करेंगे और ईश्वर के बताए रास्ते पर चलेंगे. इसके बाद भगवान की पूजा करें, उन्हें धूप, दीप, भोग आदि पूजन सामग्री अर्पित करें, कथा पढ़ें, मंत्र का जाप करें और पूरे दिल से व्रत नियमों का पालन करें. इससे आपको उस व्रत का पुण्य जरूर मिलेगा.
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