जानिए कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन नदी स्नान व दान-पुण्य करने का विशेष महत्व, जिससे है कई पुण्य-फल

कार्तिक पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा सुनी जाती है

Update: 2020-11-29 10:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। रविवार, 29 नवंबर को कार्तिक मास की चतुर्दशी तिथि है। ये तिथि दोपहर करीब 12.10 बजे तक रहेगी, इसके बाद पूर्णिमा तिथि शुरू हो जाएगी। इस चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर शिवजी भगवान विष्णु को सृष्टि का भार सौंपते हैं। विश्राम के बाद विष्णुजी बैकुंठ चतुर्दशी से सृष्टि का संचालन फिर से शुरू करते हैं। पंचांग भेद की वजह से 29 और 30 नवंबर को कार्तिक मास की पूर्णिमा मनाई जाएगी। इसे देव दीपावली और त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार रविवार को भगवान विष्णु और शिवजी की विशेष पूजा करनी चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी पर गणेश पूजन से पूजा की शुरुआत करें। इसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति और शिवलिंग की पूजा करें।
विष्णुजी को केसर, चंदन मिले जल से स्नान कराएं। चंदन, पीले वस्त्र, पीले फूल चढ़ाएं। शिवलिंग को दूध मिले जल से स्नान के बाद सफेद आंकड़े के फूल, अक्षत, बिल्वपत्र अर्पित करें।
दोनों भगवान को कमल फूल भी अर्पित करें। दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाएं। दीप-धूप जलाएं। आरती करें। मंत्रों का जाप करें।
विष्णु मंत्र - ऊँ नमो नारायण, शिव मंत्र - ऊँ नम: शिवाय
कार्तिक पूर्णिमा पर नदी स्नान और दान-पुण्य करें
कार्तिक मास की पूर्णिमा पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। शाम को नदी में दीपदान करने का विशेष महत्व है। इस तिथि पर किए गए दान-पुण्य, जाप आदि का दस यज्ञों के समान पुण्य फल प्राप्त होता है।
कार्तिक पूर्णिमा पर सत्यनारायण भगवान की व्रत कथा सुनी जाती है। शाम को मंदिरों, चौराहों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप जलाए जाते हैं और नदियों में दीपदान किया जाता है।


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