जाने जया एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
जया एकादशी (Jaya Ekadashi) को अत्यंत पुण्यदायी और कल्याणकारी माना गया है.
जया एकादशी (Jaya Ekadashi) को अत्यंत पुण्यदायी और कल्याणकारी माना गया है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस एकादशी (Ekadashi) का व्रत करने से व्यक्ति बुरी योनि यानी भूति पिशाच की योनि में जन्म नहीं लेता है. इतना ही इस व्रत के प्रताप से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और घर में सुख-संपत्ति आती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार दुख, दरिद्रता और कष्टों को दूर करने के लिए जया एकादशी का व्रत करना सर्वोत्तम साधन है.
जया एकादशी कब है ?
हिन्दू पंचांग के अनुसार जया एकादशी हर साल माघ महीने के शुक्ल पक्ष को आती है. ग्रगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह हर साल जनवरी या फरवरी महीने में पड़ती है. इस बार जया एकादशी 23 फरवरी 2021 को है.
जया एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
जया एकादशी की तिथि: 23 फरवरी 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ: 22 फरवरी 2021 को शाम 5 बजकर 16 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 23 फरवरी 2021 को शाम 6 बजकर 05 मिनट तक
पारण का समय: 24 फरवरी 2021 को सुबह 6 बजकर 51 मिनट से 9 बजकर 09 मिनट तक
जया एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म में माघ शुक्ल में आने वाली जया एकादशी का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसका व्रत करने से मनुष्य ब्रह्म हत्यादि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है. यही नहीं इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से भी मुक्त हो जाता है. मान्यता है कि इस दिन विधिपूर्वक व्रत करने और श्री हरि विष्णु की पूजा करने से व्यक्ति बुरी योनि से छूट जाता है. कहते हैं कि जिस मनुष्य ने इस एकादशी का व्रत किया है उसने मानो सब यज्ञ, जप, दान आदि कर लिए. प्राचीन मान्यताओं के अुनसार जो मनुष्य जया एकादशी का व्रत करता है वह अवश्य ही हजार वर्ष तक स्वर्ग में वास करता है.
जया एकादशी की पूजा विधि
- एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर भगवान विष्णु का ध्यान करें.
- अब व्रत का संकल्प लें.
- अब घर के मंदिर में एक चौकी में लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें.
- अब एक लोटे में गंगाजल लें और उसमें तिल, रोली और अक्षत मिलएं.
- इसके बाद इस लोटे से जल की कुछ बूंदें लेकर चारों ओर छिड़कें.
- फिर इसी लोटे से घट स्थापना करें.
- अब भगवान विष्णु को धूप-दीप दिखाकर उन्हें पुष्प अर्पित करें.
- अब घी के दीपक से विष्णु की आरती उतारें और विष्णु सहस्नाम का पाठ करें.
- इसके बाद श्री हरि विष्णु को तिल का भोग लगाएं और उसमें तुलसी दल का प्रयोग अवश्य करें.
- इस दिन तिल का दान करना अच्छा माना जाता है.
- शाम के समय भगवान विष्णु की पूजा कर फलाहार ग्रहण करें.
- अगले दिन यानी कि द्वादशी को सुबह किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा देकर विदा करें. इसके बाद स्वयं भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
जया एकादशी व्रत कथा
पद्म पुराण में वर्णित कथा के अुनसार देवराज इंद्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे. एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे. उन गंधर्वों में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसेन तथा उसकी स्त्री मालिनी भी उपस्थित थे. साथ ही मालिनी का पुत्र पुष्पवान और उसका पुत्र माल्यवान भी उपस्थित थे.
पुष्पवती गंधर्व कन्या माल्यवान को देखकर उस पर मोहित हो गई और माल्यवान पर काम-बाण चलाने लगी. उसने अपने रूप लावण्य और हावभाव से माल्यवान को वश में कर लिया. वह पुष्पवती अत्यन्त सुंदर थी. अब वे इंद्र को प्रसन्न करने के लिए गान करने लगे परंतु परस्पर मोहित हो जाने के कारण उनका चित्त भ्रमित हो गया था.
इनके ठीक प्रकार न गाने तथा स्वर ताल ठीक नहीं होने से इंद्र इनके प्रेम को समझ गया और उन्होंने इसमें अपना अपमान समझ कर उनको शाप दे दिया. इंद्र ने कहा, "हे मूर्खों ! तुमने मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया है, इसलिए तुम्हारा धिक्कार है. अब तुम दोनों स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच रूप धारण करो और अपने कर्म का फल भोगो."
इंद्र का ऐसा शाप सुनकर वे अत्यन्त दु:खी हुए और हिमालय पर्वत पर दु:खपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करने लगे. उन्हें गंध, रस तथा स्पर्श आदि का कुछ भी ज्ञान नहीं था. वहाँ उनको महान दु:ख मिल रहे थे. उन्हें एक क्षण के लिए भी निद्रा नहीं आती थी. उस जगह अत्यन्त शीत था, इससे उनके रोंगटे खड़े रहते और मारे शीत के दांत बजते रहते. एक दिन पिशाच ने अपनी स्त्री से कहा, "पिछले जन्म में हमने ऐसे कौन-से पाप किए थे, जिससे हमको यह दु:खदायी पिशाच योनि प्राप्त हुई. इस पिशाच योनि से तो नर्क के दु:ख सहना ही उत्तम है. अत: हमें अब किसी प्रकार का पाप नहीं करना चाहिए." इस प्रकार विचार करते हुए वे अपने दिन व्यतीत कर रहे थे.
दैव्ययोग से तभी माघ मास में शुक्ल पक्ष की जया नामक एकादशी आई. उस दिन उन्होंने कुछ भी भोजन नहीं किया और न कोई पाप कर्म ही किया. केवल फल-फूल खाकर ही दिन व्यतीत किया और सायंकाल के समय महान दु:ख से पीपल के वृक्ष के नीचे बैठ गए. उस समय सूर्य भगवान अस्त हो रहे थे. उस रात को अत्यन्त ठंड थी, इस कारण वे दोनों शीत के मारे अति दुखित होकर मृतक के समान आपस में चिपटे हुए पड़े रहे. उस रात्रि को उनको निद्रा भी नहीं आई.
जया एकादशी के उपवास और रात्रि के जागरण से दूसरे दिन प्रभात होते ही उनकी पिशाच योनि छूट गई. अत्यन्त सुंदर गंधर्व और अप्सरा की देह धारण कर सुंदर वस्त्राभूषणों से अलंकृत होकर उन्होंने स्वर्गलोक को प्रस्थान किया. उस समय आकाश में देवता उनकी स्तुति करते हुए पुष्पवर्षा करने लगे. स्वर्गलोक में जाकर इन दोनों ने देवराज इंद्र को प्रणाम किया. इंद्र इनको पहले रूप में देखकर अत्यन्त आश्चर्यचकित हुआ और पूछने लगा, "तुमने अपनी पिशाच योनि से किस तरह छुटकारा पाया, सो सब बतालाओ."
माल्यवान बोले, "हे देवेन्द्र ! भगवान विष्णु की कृपा और जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से ही हमारी पिशाच देह छूटी है." तब इंद्र बोले, "हे माल्यवान! भगवान की कृपा और एकादशी का व्रत करने से न केवल तुम्हारी पिशाच योनि छूट गई, वरन् हम लोगों के भी वंदनीय हो गए क्योंकि विष्णु और शिव के भक्त हम लोगों के वंदनीय हैं, अत: आप धन्य है. अब आप पुष्पवती के साथ जाकर विहार करो."