जानिए महाभारत में अभिमन्यु (अर्जुनपुत्र) के साथ कौरवो के कैसा कैसा अभद्र व्यव्हार किया

Update: 2024-06-26 05:50 GMT

महाभारत में अभिमन्यु के साथ कौरवो के व्यव्हार:-  Indecent behavior of Kauravas with Abhimanyu in Mahabharata

भारतवर्ष के प्राचीन काल की ऐतिहासिक कथा महाभारत के एक महत्त्वपूर्ण पात्र अभिमन्यु पूरु कुल के राजा व पांडवों में से अर्जुन तथा यादव राजकुमारी सुभद्रा के पुत्र थे। श्री कृष्ण और बलराम जी उनके मामा और गुरु थे । विराट नरेश की पुत्री राजकुमारी उत्तरा अभिमन्यु की पत्नी थी । जिनके पुत्र परीक्षित ने संपूर्ण भारतवर्ष में चक्रवर्ती नरेश के रूप में शासन किया था । कथा में उनका छल और अधर्म द्वारा कारुणिक अंत बताया गया है।
परंतु अभिमन्यु जैसी ख्याति किसी भी अन्य महाभारत योद्धा को नहीं मिल सकी । अभिमन्यु महाभारत काल के सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं में से एक हैं तथा सबसे कम आयु के सर्वश्रेष्ठ योद्धा हैं । अभिमन्यु को द्वंद् युद्ध में हराना असंभव माना जाता था । 
अभिमन्यु अर्जुन के पुत्र थे। 15 वर्ष की आयु में फाल्गुन मास में उनका विवाह उत्तरा से हुआ था । 16 वर्ष की आयु में आषाढ़ मास में जिस दिन ये महाभारत के युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे उससे एक दिन पूर्व हीं अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा ने गर्भधारण किया था । द्वापर युग में सबसे कम उम्र में स्त्री के शारीरिक सुख और संतान जन्म की प्राप्ति करने वाले वे इकलौते थे।
अभिमन्यु महाभारत के नायक अर्जुन और सुभद्रा, जो बलराम व कृष्ण की बहन थीं who was the sister of Balarama and Krishna, के पुत्र थे। उन्हें चंद्र देवता का पुत्र भी माना जाता है। धारणा है कि समस्त देवताओ ने अपने पुत्रों को अवतार के रूप में धरती पर भेजा था परंतु चंद्रदेव ने कहा कि वे अपने पुत्र का वियोग सहन नहीं कर सकते अतः उनके पुत्र को मानव योनि में मात्र सोलह वर्ष की आयु दी जाए।
अभिमन्यु का बाल्यकाल अपनी ननिहाल द्वारका में ही बीता। उनका विवाह महाराज विराट की पुत्री उत्तरा और बलराम की पुत्री वत्सला से हुआ। अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित, जिसका जन्म अभिमन्यु के मृत्योपरांत हुआ, कुरुवंश के एकमात्र जीवित सदस्य पुरुष थे जिन्होंने युद्ध की समाप्ति के पश्चात पांडव वंश को आगे बढ़ाया।
अभिमन्यु एक असाधारण योद्धा थे। उन्होंने कौरव पक्ष की व्यूह रचना, जिसे चक्रव्यूह कहा जाता था which was called chakravyuh, के सात में से छह द्वार भेद दिए थे। कथानुसार अभिमन्यु ने अपनी माता की कोख में रहते ही अर्जुन के मुख से चक्रव्यूह भेदन का रहस्य जान लिया था। पर सुभद्रा के बीच में ही निद्रामग्न होने से वे व्यूह से बाहर आने की विधि नहीं सुन पाये थे। अभिमन्यु की मृत्यु का कारण जयद्रथ था जिसने अन्य पांडवों को व्यूह में प्रवेश करने से रोक दिया था। संभवतः इसी का लाभ उठा कर व्यूह के अंतिम चरण में कौरव पक्ष के सभी महारथी युद्ध के मानदंडों को भुलाकर उस बालक पर टूट पड़े,
क्योंकि कोई भी कौरव पक्ष का योद्धा द्वंद युद्ध में अभिमन्यु को पराजित नहीं कर सके थे । भगवान बलराम जी के रौद्र धनुष के सामने कोई भी योद्धा चाहे वो कर्ण,द्रोणाचार्य,कृपाचार्य,अश्वथामा या दुर्योधन कोई भी अभिमन्यु के सामने टिक नहीं सके थे । अभिमन्यु को चक्रव्यूह के भीतर द्वंद युद्ध में पराजित करना असंभव था। जिस कारण कर्ण ने छल पूर्वक अपने विजय धनुष से पीछे से वार करके रौद्र धनुष को काट डाला ।
क्रोधित अभिमन्यु कुछ समझ पाते उतने में ही उनके रथ को द्रोणाचार्य ने प्रहार किया ।
देखते ही देखते अवसर पा कर सभी योद्धा अभिमन्यु पर टूट पड़े
। दुर्योधन पुत्र लक्ष्मण को यमलोक पहुँचाकर अभिमन्यु दुर्योधन के सामने वंश विनाशक के रूप में घृणित हो चुके थे । क्योंकि दुर्योधन के बाद राजा के रूप में लक्ष्मण ही राज्य करते । ऐसी स्थिति में सभी कौरव महारथी के क्रोध, छल और अधर्म का सामना अभिमन्यु को करना पड़ा Bhimyu had to do it.
जिस कारण उसने वीरगति प्राप्त की। परंतु फिर भी अभिमन्यु ने अंत तक धर्म का त्याग नहीं किया । मामा श्री कृष्ण का एक नाम रणछोड़ भी है परंतु अभिमन्यु की शिक्षा में उनके बड़े मामा श्री बलराम की शिक्षा अधिक दिखाई प्रतीत होती है । कर्ण ने अंतिम क्षणों में अभिमन्यु को ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर मान लिया था । वे बहुत अधिक लज्जित थे । अभिमन्यु की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिये अर्जुन ने जयद्रथ के वध की शपथ ली थी।
Tags:    

Similar News

-->