जानिए शिवजी की जटाओं में कैसे और क्यों समाई थीं मां गंगा
पवित्र माह सावन शिवजी को प्रिय होता है, इसलिए इस माह पूजा-पाठ और व्रत आदि का महत्व अधिक बढ़ जाता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पवित्र माह सावन शिवजी को प्रिय होता है, इसलिए इस माह पूजा-पाठ और व्रत आदि का महत्व अधिक बढ़ जाता है. महादेव का रूप अन्य देवताओं की अपेक्षा अलग है. वे मस्तक पर चंद्रमा, गले में सर्प, हाथों में त्रिशूल और जटा में गंगा को धारण किए हैं. भगवान शिव ने शरीर पर जिन चीजों को धारण किया है, उन सबका विशेष महत्व है. भगवान शिव अपनी जटा में गंगा धारण किए होते हैं. क्या आप जानते हैं कि आखिर क्यों भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटा में धारण किया और कैसे मां गंगा शिवजी की जटा में पहुंचीं? सावन के इस पवित्र माह में दिल्ली के आचार्य गुरमीत सिंह जी से जानते हैं शिवजी की जटाओं में कैसे और क्यों समाई थीं मां गंगा?
पौराणिक कथा के अनुसार, धरती पर अतरित होने से पहले मां गंगा देवलोक में थीं. यही कारण है कि उन्हें देव नदी भी कहा जाता है. कहा जाता है कि मां गंगा को धरती पर लाने का कार्य भागीरथ ने किया है और भागीरथ की कठोर तप के कारण ही मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं.
भागीरथ ने अपनी तपस्या से मां गंगा को किया प्रसन्न
शिव पुराण के अनुसार, महाराज भागीरथ एक प्रतापी राजा थे. भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा को धरती पर लाने की ठानी और कठोर तपस्या करनी शुरू कर दी. भागीरथ के तप से मां गंगा प्रसन्न हुईं और धरती पर अवतरित होने के लिए तैयार हो गईं.
इसके बावजूद भागीरथ की समस्या का हल नहीं हो सका क्योंकि समस्या यह थी कि मां गंगा का देवलोक से सीधे धरती आना संभव नहीं था. मां गंगा ने भागीरथ से कहा कि वह देवलोक से सीधे धरती पर नहीं आ सकतीं क्योंकि धरती उनका तेज वेग सहन नहीं कर पाएगी और रसातल में चली जाएगी.
इस तरह शिवजी की जटा में समाईं मां गंगा
भागीरथ अपनी समस्या के हल के लिए ब्रह्माजी के पास पहुंचे. ब्रह्माजी जी ने भागीरथ को शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कहा. भागीरथ ने शिवजी को प्रसन्न करने से लिए तपस्या शुरू कर दी. शिवजी भागीरथ की तपस्या से प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा. भागीरथ ने शिवजी को बताया कि वह अपने पूर्वजों को जीवन-मरण के दोष से मुक्ति दिलाने के लिए मां गंगा को पृथ्वी पर लाना चाहते हैं.
शिवजी की जटा में आते ही गंगा का वेग हो गया कम
भागीरथ की बातें सुनकर शिवजी ने अपनी जटा खोल दी. इस तरह मां गंगा देवलोक से सीधे शिवजी की जटा में समाईं. शिवजी की जटा में आते ही मां गंगा का वेग कम हो गया. यही कारण है कि भगवान शिवजी के कई नामों में उनका एक नाम गंगाधर भी है. शिवजी ने जटा से एक छोटे से पोखर में छोड़ दिया, जहां से गंगा सात धाराओं में प्रवाहित हुईं. गंगा के स्पर्श होते ही भागीरथ के पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति हुई.