जैन क्षमापर्व 21 सितंबर को, जानिए जीवन में सुख-शांति से जीने के लिए क्षमा का महत्व
क्षमापर्व जैन धर्म में मनाया जाने वाला ऐसा पावन त्योहार है जो समूचे देशवासियों को सुख-शान्ति का सन्देश देता है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दसलक्षण महापर्व का समापन मैत्री दिवस के रूप में आयोजित होता है, जिसे 'क्षमापना दिवस'भी कहा जाता है। इस तरह से यह महापर्व एवं क्षमापना दिवस एक-दूसरे को निकट लाने का पर्व है। यह एक-दूसरे को अपने ही समान समझने का पर्व है। क्षमापर्व जैन धर्म में मनाया जाने वाला ऐसा पावन त्योहार है जो समूचे देशवासियों को सुख-शान्ति का सन्देश देता है। यह पावन पर्व सिर्फ जैन समाज को ही नहीं बल्कि अन्य सभी समाज जन को अपने अहंकार और क्रोध का त्याग करके धैर्य के रथ पर सवार होकर सादा जीवन जीने ,उच्च विचारों को अपनाने की प्रेरणा देता है। जियो और जीने दो का यही लक्ष्य है।
क्षमा मांगें और क्षमा करें-
जैन सिद्धांत कहता है, जिसके साथ तुमने गलत किया है उससे माफी मांग लो। इसी तरह जो तुमसे माफी मांगने आ रहे हैं उन्हें भी माफ कर दो, ऐसा करने से मन का कषाय धुल जाता है। क्षमा के बारे में भगवान महावीर कहते हैं- 'मैं सब जीवों से क्षमा चाहता हूँ। जगत के सभी जीवों के प्रति मेरा मैत्रीभाव है। मेरा किसी से वैर नहीं है। मैं सच्चे हृदय से धर्म में स्थिर हुआ हूँ। सब जीवों से मैं सारे अपराधों की क्षमा मांगता हूं। सब जीवों ने मेरे प्रति जो अपराध किए हैं, उन्हें मैं क्षमा करता हूँ।
क्षमा भाव के बारे में भगवान महावीर कहते हैं कि -''क्षमा वीरस्य भूषणं '' अर्थात क्षमा वीरों का आभूषण होता है। क्षमा का मार्ग अतुलनीय होता है एवं सबसे बड़ा बल क्षमा है। यदि इसका सही ढंग से ,सही जगह पर प्रयोग किया जाए तो निश्चित ही यह सर्वशक्तिमान है। अगर क्रोध ही सर्वशक्तिमान होता और क्षमा निर्बल होती तो पृथ्वी पर इतने युद्ध होने के बाद भी सारी समस्याएं हल हो जानी चाहिए थीं, पर नहीं हुईं। क्षमा हमें हमारे पापों से दूर करके मोक्ष मार्ग दिखाती है। किसी भी धर्म की किताब का अगर हम अनुसरण करते हैं तो उसमें भी क्षमा भाव को ही सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है। यह पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है। क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से,नम्रता से उसे विफल कर देना अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूंढकर ,उससे उत्पन्न होने वाले दुष्परिणामों के बारे में सोचना।
क्षमा का मतलब सिर्फ बड़ों से ही क्षमा मांगना कतई नहीं है,अपनी गलती होने पर बड़े हों या छोटे सभी से क्षमा मांगना ही इस पर्व का उद्देश्य है।यह पर्व हमें यह शिक्षा देता है क़ि आपकी भावना अच्छी है तो दैनिक व्यवहार में होने वाली छोटी- मोटी त्रुटियों को अनदेखा करें और उनसे सीख लेकर फिर कोई नई गलती न करने की प्रेरणा देता है। क्षमा करने से आप दोहरा लाभ लेते हैं -एक तो सामने वाले को आत्मग्लानि भाव से मुक्त करते हैं ,व दिलों की दूरियों को दूर कर सहज वातावरण का निर्माण करके उसके दिल में फिर से अपने लिए एक अच्छी जगह बना लेते हैं । सदैव याद रखिए क़ि क्षमा मांगने वाले से ऊंचा स्थान क्षमा देने वाले का होता है।