भोजन करते समय इन नियमों का पालन करना रहता है फायदेमंद

Update: 2023-06-26 14:08 GMT
भारतीय शास्त्रों में हर काम का अपना विशेष महत्व हैं। सामान्य जीवन में किये गए कामों का शास्त्रों में उल्लेख किया गया हैं और उनसे सम्बंधित कुछ नियाम बताये गए हैं जिनको करने से व्यक्ति को लाभ होता हैं। यदि भोजन के सभी नियमों का पालन किया जाए तो व्यक्ति के जीवन में कभी भी किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं होता। तो आज हम आपको भोजन करते समय शास्त्रों में उल्लेखित नियमों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनको आम जीवन में जरूर अपनाना चाहिए। तो आइये जनते हैं भोजन से जुड़े नियम के बारे में।
* मान्यताओं के अनुसार हमें भोजन करने से पूर्व हमेशा अपने शरीर के 5 अंगों को स्वच्छ रखना चाहिए, जो हैं दोनों हाथ, दोनों पांव और हमारा मुंह। इन पांचों अंगों को साफ करके ही भोजन आरंभ करना चाहिए।
* भोजन पूर्व और उत्तर दिशा की ओर मुंह करके ही करना चाहिए। दक्षिण दिशा की ओर किया हुआ भोजन प्रेत को प्राप्त होता है। पश्चिम दिशा की ओर किया हुआ भोजन खाने से रोग की वृद्धि होती है।
* भोजन के बाद आटे के भारी पदार्थ, नये चावल या चूडा नहीं खाना चाहिये। भोजन चबा-चबाकर खाना चाहिये । भोजन में बीस या पचीस मिनट का समय बिताना चाहिए । जल्दी भोजन करनेवाले का स्वभाव क्रोधी होता है। भोजन अत्यंत धीमी गति से भी नहीं करना चाहिए।
* खुले स्थान या सार्वजनिक स्थल पर भोजन नहीं करना चाहिए क्योकि किसी अतृप्त व्यक्ति की नजर आपके भोजन के आध्यात्मिक प्रभाव को क्षीण कर सकती है भोजन, भजन और शयन परदे में ही होने चाहिए ऐसा शास्त्रों का मत है ।
* खड़े होकर भोजन नहीं करना चाहिए यह भारतीय परंपरा के विरुद्द तो है ही अपितु शास्त्रीय तथा वैज्ञानिक दोनों दृष्टी से गलत है ऐसा करने से नित नए रोगों का जन्म होता है।
* भोजन में बाल अथवा कीड़ा गिर जाए तो वह खाना अशुद्ध हो जाता है। उसे खाने से स्वस्थ शरीर भी अस्वस्थ हो जाता है।
* भोजन पकाने वाले के लिए जरूरी है कि वे स्नान करने के बाद ही भोजन बनाना है। स्नान करने के बाद ही रसोईघर में दाखिल हों और शुद्ध मन से मंत्र जप करते हुए ही रसोई में भोजन बनाएं।
* खाना बनाने के बाद 3 रोटियां अग्निदेव को समर्पित करने के लिए निकाल लेनी चाहिए, और बाद में इसे गाय, कुत्ते और कौवे को अर्पित कर देना चाहिए। यह शास्त्रों के अनुसार पुण्य का काम है। अन्य मान्यता के आधार पर खाना तो रसोईघर में बनता ही है, लेकिन भोजन को ग्रहण भी रसोईघर में ही करना चाहिए।
* जो व्यक्ति स्नान न किये हुए हो, खाने से पूर्व हाथ आदि धुलने की आदत न हो लघुशंका या दीर्घशंका के पश्चात हाथ-पैर को न धुलता हो ऐसे व्यक्ति को जानकार उसके साथ भोजन कदापि न करें क्योकि ऐसों के साथ भोजन करने से अन्न्देव अप्रसन्न होते है ऐसा शास्त्रों में लिखा है।
* छिपाकर खाने से निर्धनता आती है चुराकर खाने से सम्पन्नता घटती है जूठा खिलाने से घर की बरकत नष्ट होने लगती है, जूठा या अपवित्र भोजन खाने से दूषित व् बुरे सपने आते है तथा बासी भोजन खिलाने से ऋण चढ़ता है।
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