हिन्दू संस्कृति और पूजा में भगवान श्रीगणेश जी को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। प्रत्येक शुभ कार्य में सबसे पहले भगवान गणेश की ही पूजा की जाती है। गणेशजी निराकार दिव्यता वाले हैं जो भक्त के उपकार हेतु एक अलौकिक आकार में विराजित होते है। भगवान श्रीगणेश को विघ्नहर्ता, मंगलमूर्ति, लंबोदर, व्रकतुंड आदि कई विचित्र नामों से पुकारा जाता है। जितने विचित्र इनके नाम हैं उतनी विचित्र इनसे जुड़े तथ्य और रहस्य भी हैं। तो आइये जानते है भगवान गणेश से जुडी इन बातों को -
# पिता भगवान शंकर जी ने गणेश जी को वरदान दिया हैं की सभी देवताओं के पूजन में सबसे पहले पूजे जाने के अधिकारी गणेश जी होंगे।
# गणेश भगवान के कानों में वैदिक ज्ञान, मस्तक में ब्रह्म लोक, आंखों में लक्ष्य, दाएं हाथ में वरदान, बाएं हाथ में अन्न, सूंड में धर्म, पेट में सुख-समृद्धि, नाभि में ब्रह्मांड और चरणों में सप्तलोक है।
# कई मान्यताओं में गणेश जी को कई लोग ब्रह्मचारी या कुवांरा मानते हैं, लेकिन उनकी रिद्धि और सिद्धि नाम की 2 पत्नियां हैं और शुभ और लाभ नाम के 2 पुत्र हैं।
# कुण्डलिनी योग के अनुसार, सात कुण्डलिनी चक्रों में से पहला चक्र, जो हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले हिस्से या आधार में स्थित मूल चक्र गणेशजी का निवास स्थान है।
# एक मान्यता के अनुसार गणेश जी विवाह नहीं करना चाहते थे, इसलिए वह तपस्या कर रहे थे। तभी तुलसी ने आकर उनको अपने से विवाह करने का प्रस्ताव दिया और गणेश जी की तपस्या भंग कर दी। इस पर गणेश जी ने तुलसी को श्राप दिया की वह अगले जन्म में पेड़-पौधा बनेगी और इस जन्म में उसका विवाह किसी राक्षस से होगा। तुलसी ने भी गणेश जी को श्राप दिया की जिस विवाह बंधन से वह बचना चाहते हैं, वह शीघ्र ही हो जायेगा। इसलिए भगवान गणपति की पूजा में कभी भी तुलसी नहीं चढ़ाई जाती हैं। तुलसी के पत्ते को गणेश जी के पूजन में वर्जित माना गया हैं।