यदि हम खुद को परमशक्ति मानने लगे तो इससे नुकसान होना तय है, इसलिए ऐसे भ्रम से बचें

पूरी प्रकृति में पंचतत्वों की शक्तियां हैं, इन शक्तियों को भगवान भी कहता है

Update: 2021-06-03 07:56 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ। युद्ध जीते तो देवता अहंकारी हो गए। इंद्र, अग्नि और वायु को लगा कि हम संसार में सबसे शक्तिशाली हैं, हम ही ब्रह्म हैं।


ब्रह्म यानी एक परमशक्ति जो इस संसार को चलाती है और वो अलग-अलग रूप में रहती है। देवताओं को लगने लगा कि हम ही सबसे बड़े हैं। इस अहंकार की वजह से ब्रह्म ने देवताओं को दी हुई शक्तियां वापस ले लीं।

ब्रह्म की शक्ति एक यक्ष के रूप में देवताओं के सामने प्रकट हुई। इंद्र ने अग्निदेव को उस यक्ष के पास भेजा। अग्निदेव ने पूछा, 'आप कौन हैं?' यक्ष ने कहा, 'मैं अग्नि हूं।' ये सुनकर अग्निदेव ने कहा, 'मैं भी अग्नि हूं।'

यक्ष ने कहा, 'इस तिनके को जलाकर दिखाओ।' अग्निदेव ने उस तिनके को जलाने की कोशिश की, लेकिन तिनका नहीं जला। अग्निदेव इंद्र के पास लौट आए। इसके बाद इंद्र ने वायुदेव को भेजा।

वायुदेव के सामने यक्ष ने फिर तिनका रख दिया और कहा, 'इसे उड़ाकर दिखाओ।'

पूरी शक्ति लगाने के बाद भी वायुदेव उस तिनके को उड़ा नहीं सके। वे भी निराश होकर इंद्र के पास लौट आए। इसके बाद इंद्र स्वयं यक्ष के पास पहुंचे। उस समय वहां एक देवी प्रकट हुईं।

देवी ने कहा, 'इंद्र, तुम सभी को अहंकार हो गया है तो मैंने ब्रह्म की शक्ति को यक्ष के रूप में भेजा है। तुम्हें ये मालूम हो जाना चाहिए कि तुम्हारी शक्तियां ब्रह्म की हैं। तुम खुद को ब्रह्म समझो, ये अनुचित है।'

सीख - इस कहानी की सीख यह है कि पूरी प्रकृति में पंचतत्वों की जो शक्तियां हैं, कोई इन शक्तियों को भगवान कहता है, कोई विज्ञान कहता है, कोई इन्हें अलग रूप देता है, लेकिन ये तय है कि पूरा ब्रह्मांड एक शक्ति है, जिसे ब्रह्मशक्ति कहते हैं। उसी शक्ति से हमें भी शक्ति मिलती है। जो लोग इन शक्तियों का सही उपयोग करते हैं, वे अच्छे काम करते हैं। जो लोग इन शक्तियों का गलत उपयोग करते हैं, वे बुरे काम करते हैं। अगर हम खुद को ही परमशक्ति मानने लगेंगे तो ये भ्रम है। इस भ्रम से बचें, वरना नुकसान होना तय है।


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