रक्षाबंधन का पर्व कैसे शुरू हुआ, जाने इसके पीछे का पौराणिक कथा

राखी या रक्षा बंधन का त्योहार पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर साल सावन पूर्णिमा के दिन राखी का त्योहार मनाते हैं

Update: 2021-08-21 03:29 GMT

राखी या रक्षा बंधन का त्योहार पूरे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। हर साल सावन पूर्णिमा के दिन राखी का त्योहार मनाते हैं। इस साल राखी 22 अगस्त दिन शनिवार को पड़ रही है। इसे भाई-बहन के प्रेम और प्यार के त्योहार के रूप में जाना जाता है। इस दिन बहने अपने भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र, मौली या राखी बांधकर उनके जीवन के लिए मंगलकामनाएं करती हैं। तो भाई बहनों को उपहार और उनकी रक्षा एवं सहयोग का वचन देते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कि राखी के त्योहर की शुरुआत कैसे हुई? आइए जानते हैं रक्षाबंधन की पौराणिक कथा...

1-इंद्र और शचि की कथा
रक्षाबंधन की शुरुआत को लेकर कई धार्मिक तथा पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। लेकिन माना जाता है कि सबसे पहले राखी या रक्षासूत्र देवी शचि ने अपने पति इंद्र को बांधा था। पौरणिक कथा के अनुसार जब इंद्र वृत्तासुर से युद्ध करने जा रहे थे तो उनकी रक्षा की कामना से देवी शचि ने उनके हाथ में कलावा या मौली बांधी थी। तब से ही रक्षा बंधन की शुरूआत मानी जाती है।
2- देवी लक्ष्मी और राजा बलि की कथा
कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार के रूप में राक्षस राज बलि से तीन पग में उनका सार राज्य मांग लिया था और उन्हें पाताल लोक में निवास करने को कहा था। तब राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने मेहमान के रूप में पाताल लोक चलने को कहा। जिसे विष्णु जी मना नहीं कर सके। लेकिन जब लंबे समय से विष्णु भगवान अपने धाम नहीं लौटे तो लक्ष्मी जी को चिंता होने लगी। तब नारद मुनी ने उन्हें राजा बलि को अपना भाई बनाने की सलाह दी और उनसे उपहार में विष्णु जी को मांगने को कहा। मां लक्ष्मी ने ऐसा ही किया और इस संबंध को प्रगाढ़ बनाते हुए उन्होंने राजा बलि के हाथ पर राखी या रक्षा सूत्र बांधा।
3- भगवान कृष्ण और द्रौपदी की कथा
महाभारत में प्रसंग आता है जब राजसूय यज्ञ के समय भगवान कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया तो उनका हाथ भी इसमें घायल हो गया। उसी क्षण द्रौपदी ने अपने साड़ी का एक सिरा कृष्ण जी की चोट पर बांधा दिया। भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को इसके बदले रक्षा का वचन दिया। इसी के परिणाम स्वरूप जब हस्तिनापुर की सभा में दुस्शासन द्रौपदी का चीर हरण कर रहा था तब भगवान कृष्ण ने उनका चीर बढ़ा कर द्रौपदी के मान की रक्षा की थी।


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