कैसे हैं यमलोक के चार प्रवेश द्वार, जाने किस द्वार से प्रवेश करते है पापी

धरती पर जन्म लेने वाला हर एक प्राणी नश्वर है.

Update: 2021-07-03 10:42 GMT

 जनता से रिश्ता वेबडेस्क धरती पर जन्म लेने वाला हर एक प्राणी नश्वर है. जो यहां आया है, उसे इस धरती को छोड़कर एक दिन जाना ही होता है. मृत्यु के ​बाद व्यक्ति के कर्मों का हिसाब यमलोक में होता है. यमराज हर व्यक्ति को उसके कर्मों के हिसाब से स्वर्ग, नर्क या पितृलोक में भेज देते हैं. गरुड़ पुराण में जीवन के तमाम नीति और नियमों के अलावा मृत्यु के बाद की इन स्थितियों का विस्तार से वर्णन किया गया है.

इस महापुराण में यमलोक के मार्ग का भी जिक्र है और बताया गया है कि कैसे पापियों को वो भयानक मार्ग पार करके यमलोक तक पहुंचना होता है. किस तरह यमराज के दूत व्यक्ति के प्राणों को निकालकर अपने साथ लेकर यमलोक पहुंचते हैं. यमलोक के बारे में गरुड़ पुराण में बताया गया है कि ये एक लाख योजन क्षेत्र में फैला हुआ है और इसके चार मुख्य द्वार हैं. जानिए कौन सा द्वार कैसा है और किस द्वार से होता है पापियों का प्रवेश.

पूर्व द्वार : यमलोक का पूर्व का द्वार बहुत ही आकर्षक है. इसमें हीरे, मोती, नीलम और पुखराज जैसे रत्न जड़े हुए हैं. इस द्वार से योगी, ऋषि, सिद्ध और संबुद्ध लोगों का प्रवेश होता है. इसे ही स्वर्ग का द्वार कहा जाता है. गरुड़ पुराण के मुताबिक इस द्वार में प्रवेश करते ही आत्मा का स्वागत गंधर्व, देव, अप्सराओं द्वारा किया जाता है.
पश्चिम द्वार : पश्चिम के द्वार पर भी रत्न जड़े हुए हैं. इस द्वार से उन लोगों का प्रवेश होता है, जिन्होंने अपने जीवन में अच्छे कार्य किए हों. दान-पुण्य किया होअ और हमेशा धर्म का पालन किया हो. जिन लोगों ने किस तीर्थस्थान पर प्राण त्यागे हों, उनका भी प्रवेश इसी द्वार से होता है.

उत्तर द्वार : जीवन में माता पिता की सेवा करने वाले, हमेशा सत्य बोलने वाले और अहिंसक कर्म करने वाले व्यक्ति की आत्मा हमेशा उत्तर द्वार से प्रवेश करती है. ये द्वार भिन्न-भिन्न स्वर्णजड़ित रत्नों से सजा होता है.
दक्षिण द्वार : सबसे भयानक होता है दक्षिण का द्वार. ये द्वार घोर पापियों के लिए है. इस द्वार पर घोर अंधकार और भयानक सांप, सिंह और भेड़िये आदि की तरह भयानक जीव और राक्षस होते हैं. इसे ही नरक का द्वार कहा जाता है. आत्मा के लिए इस द्वार से गुजरना अत्यंत कठिन और कष्टकारी होता है. यम-नियम का पालन नहीं करने वाले इस द्वार पर 100 वर्षों तक कष्ट को झेलते हैं.
(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)


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