Garuda Purana : जानिए मरने के बाद ​तेरहवीं संस्कार का क्या महत्व है

गरुड़ पुराण में जीवन और मृत्यु से जुड़ी तमाम बातें कही गई हैं. मरने के बाद आत्मा की स्थिति के बारे में भी बताया गया है. यहां जानिए मरने के बाद ​तेरहवीं संस्कार का क्या महत्व है.

Update: 2021-10-22 05:47 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गरुड़ पुराण के मुताबिक मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा 13 दिनों तक अपने ही घर में रहती है क्योंकि तब उसमें इतनी ताकत नहीं होती कि वो यमलोक की यात्रा तय कर सके.

10 दिनों तक जो पिंडदान किया जाता है, उससे आत्मा को ताकत मिलती है और उसका सूक्ष्म शरीर तैयार होता है. 11वें और 12वें दिन के पिंडदान से शरीर पर मांस और त्वचा का निर्माण होता है फिर 13वें दिन जब तेरहवीं की जाती है.
13वें दिन मृतक के नाम पर जो पिंडदान होता है, उससे ही आत्मा को वो बल मिलता है जिससे वो यमलोक की यात्रा तय कर पाती है.
यदि पिंडदान न हो तो आत्मा का सूक्ष्म शरीर बलशाली नहीं हो पाता. फिर तेरहवें दिन यमदूत उसे घसीटते हुए यमलोक लेकर जाते हैं. ऐसी यात्रा में आत्मा को तमाम कष्ट झेलने पड़ते हैं.
इन 13 दिनों तक जो पिंडदान किया जाता है, वो एक वर्ष तक मृत आत्मा को भोजन के रूप में प्राप्त होता है. इसके अलावा 13 ब्राह्मणों को भोजन कराने से आत्मा को शांति मिलती है. साथ ही आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.


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