Ganpati Temple in Kanpur: सभी कष्टों को दूर करते हैं बिठूर वाले बप्पा, हर मनोकामना होती है पूरी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Ganpati Temple in Bithoor Kanpur: जय गजानन, गुणों के अधिपति भगवान गजानन, प्रकृति के प्रारंभ में ही गणपति का ओंकारमय रूप साकार हुआ. हम जीवन के प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में बप्पा की मंगलमूर्ति का हम स्मरण करते हैं और भगवान गजानन हमेशा अपने भक्तों पर अपनी कृपा करते रहते हैं. बप्पा की काया अनंत विशाल है, फिर भी उनकी छवि हमारे सीमित मानस पटल पर बड़ी सहजता से प्रकट होती है क्योंकि भगवान गणपति स्वयं भक्तों के स्नेह बंधन में रहते हैं. ऐसी गजानन की कृपा कानपुर महानगर (Kanpur) के समीप तीर्थ क्षेत्र ब्रह्माव्रत (बिठूर) के गणेश मंदिर में सरलता से अनुभव की जा सकती है. गंगा के पश्चिमी तट पर भगवान गणपति की लगभग 300 वर्ष पुरानी मूर्ति प्रतिष्ठित है.
बप्पा की कैसी है प्रतिमा?
कानपुर शहर से थोड़ी दूर स्थित ब्रह्मावर्त (बिठूर) में गणेश जी का सिद्ध मंदिर है. यहां गंगा के तट पर विराजमान भगवान श्री गजानन भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. मूर्ति में गजानन (Lord Ganesh) अपनी सवारी मूषक पर विराजमान हैं, उनका मुख गंगा माता की ओर पूरब दिशा में है. उनकी चार भुजाएं हैं, एक हाथ में पाश, दूसरे में अंकुश, तीसरे में मोदक से भरा पात्र और चौथे हाथ में अपना टूटा हुआ एक दांत लिए हुए हैं.
हर मनोकामना होती है पूरी
मंदिर के पुजारी पंडित प्रकाश टाक्लीकर बप्पा की सेवा में रहते हैं. उनका कहना है कि यह गजानन का स्थान इतना सिद्ध है कि यहां मांगी हुई मनोकामना बप्पा तुरंत पूरी करते हैं. सिंदूर का चोला धारण किए हुए भगवान गणपति के दर्शन और पूजन करने से मनुष्य शीघ्र ही आरोग्य, निर्दोषता, उत्तम ग्रंथों एवं सत्पुरुषों का संग, सुपुत्र, दीर्घ आयु एवं अष्टसिद्धियों को प्राप्त करता है.
बिठूर आने से पापों का होता है नाश
बिठूर में आने से पाप का नाश होकर मुक्ति मिलती है. ब्रह्मसंहिता में भी ब्रह्मावर्त के महत्व का वर्णन है. यह तपोभूमि है. इस भूमि में तीन शताब्दी से आदि पूज्य श्री गणेश जी का मंदिर, श्री गणपति बोआचें गणेश मंदिर के नाम से अंताजी पंत घाट पर विद्यमान है.
सन् 1857 की क्रांति में तात्या टोपे के साथी स्वतंत्रता सेनानी महाराष्ट्र के रत्नागिरि जिले के नागेश्वर बाबा करमरकर अंग्रेजों के चंगुल से बच कर आए. दूर्वा का रस पीकर 21 दिन तक गणेश और गायत्री मंत्र का जप किया. सन् 1832 में आई बाढ़ से मिट्टी के टीले में दबी गणेश जी मूर्ति के लिए भगवान गजानन ने नागेश्वर बाबा को स्वप्र में आकर कहा, मैं यहां हूं तुम मिट्टी हटाकर मेरा दर्शन पूजन करो.
भक्तों पर नजर रखते हैं बोआ जी महाराज
आदेशानुसार नागेशवर बाबा (बोआ जी) ने वैसा ही किया और पूजित गणेश (Lord Ganesh) विग्रह का दर्शन जनमानस को बोआ जी ने कराया. कहा जाता है कि इसके बाद उन्होंने गणेश जी का पूजन व अर्चन किया और बप्पा के ध्यान में लीन हो गए. गणपति बोआ जी महाराज का विग्रह भी यहां मंदिर के बगल में विराजित है. लोगों की मान्यता है कि बोआजी सभी आने-जाने वाले भक्तों पर नजर रखते हैं और हर क्षण वहां उपस्थित रहते हैं.
यहां मंदिर परिसर में हवन कुंड, द्वार पर खड़ा शमी वृक्ष तथा मंदिर परिसर में श्वेतार्क के वृक्ष हैं जो इस मंदिर के भक्तों को अपनी छाया से निष्पाप कर रहा है. सामने ठीक उत्तर में वासुदेवानंद सरस्वती जी के पदचिन्ह अंकित हैं जिसे बाद में मंदिर का रूप दे दिया गया है, साथ ही दत्तात्रेय जी का मंदिर भी है.
स्लेट पर लिख देते थे सवाल-जवाब
बोआ जी के विषय में कहा जाता है कि वह मौन रहते थे. किसी को कोई समस्या का निदान पूछना होता था तो वह उसके पूछने से पहले ही भगवान गजानन की कृपा से स्लेट पर उसका प्रश्न और उत्तर दोनों ही लिख देते थे.
यह मंदिर गणेश (Lord Ganesh) भक्तों की श्रद्धा एवं आस्था का केंद्र है. इस मंदिर के विषय में भक्तों के अनुभव अलग-अलग हैं. भक्तों का मानना है कि कुंडली में सर्प के कुप्रभावों के नाश के लिए भगवान गजानन का सच्चा दरबार है. सत्य एवं पवित्र भाव से जो भी आकर शीश नवाते हैं, उनकी आज्ञा से ब्रह्मांड के अपने अपने कार्यों को करते हैं. ऐसे विहंगम दृश्य पर जनमानस भाव विभोर होकर जगत पिता गजानन की महिमा में जयकार करके आनंदित होता है.
चतुर्थी पर होता है भव्य पूजन अर्चन
मंगलवार को जब चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) तिथि हो तो अंगारकी चौथ का पर्व विशेष होता है. दूर्वा, शमी, फूल, मोदक, लड्डू, गरी, गुड़, केला आदि उन्हें लोग भक्ति भाव से अर्पण करते हैं. मंगलमूर्ति उनको मंगल एवं कल्याण का प्रसाद देते हैं. यहां बप्पा का जन्मोत्सव बड़े धूमधाम से होता है. कार्तिक में दीपोत्सव भी ब्रह्मावर्त क्षेत्र का गौरव पर्व माना जाता है.