हर माता-पिता चाहते हैं कि उनकी संतान संस्कारी, योग्य, सेहतमंद हो और अपनी जिंदगी में सफलता पाए. इसके लिए उस बच्चे की परवरिश, उसके पूर्व जन्मों के कर्मों के अलावा बच्चे के गर्भधारण का समय और इस दौरान मां का आचरण बहुत मायने रखता है. आयुर्वेद में तो इसके लिए गर्भ संस्कार नाम से पूरा एक हिस्सा समर्पित किया गया है. इसमें गर्भधारण से लेकर बच्चे के जन्म तक के पूरे 9 महीनों के लिए मां के खान-पान, विचार, दिनचर्या, योग-प्राणायाम आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है. इसी तरह गरुड़ पुराण में गर्भधारण के लिए सही समय और नियम बताए गए हैं.
1. गरुड़ पुराण के मुताबिक श्रेष्ठ संतान चाहते हैं तो जिन दिनों में महिला को माहवारी होती है, उन दिनों में पति और पत्नी दोनों को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए. साथ ही मर्यादित व्यवहार करना चाहिए.
2. शुद्ध होने के बाद 7 दिनों तक स्त्री को गर्भधारण के प्रयास से बचना चाहिए. इन दिनों में महिला का शरीर कमजोर होता है. ऐसे में यदि महिला गर्भवती हो जाए, तो महिला और उसके बच्चे, दोनों पर इसका विपरीत असर पड़ता है और तमाम समस्याएं सामने आती हैं.
3. माहवारी से शुद्ध होने के बाद आठवीं और चौदहवीं रात गर्भधारण के लिए अच्छी मानी गई है. इससे उत्तम और योग्य संतान प्राप्त होती है. ऐसी संतान दीर्घायु होने के साथ गुणवान, भाग्यशाली और व्यवहार कुशल होती है.
4. दिन के हिसाब से सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को कंसीव करने के लिहाज से शुभ दिन माना गया है और अष्टमी, दशमी और बारहवीं तिथि को शुभ माना गया है.
5. नक्षत्रों में रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, चित्रा, पुनर्वसु, पुष्य, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, उत्तराषाढ़ा और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र को शुभ माना गया है.
6. गर्भधारण के दिन पति-पत्नी दोनों का चन्द्रमा बलवान हो. सोच सकारात्मक हो और भावना अच्छी हो क्योंकि उस वक्त की आपकी भावना का असर बच्चे पर भी पड़ता है. इसके अलावा नौ महीने तक मां का आचरण अच्छा हो, वो खुश रहे, पूजा पाठ करे, दान पुण्य और अच्छी किताबें पढ़े. मां द्वारा किए गए ये काम बच्चे में गुण के रूप में नजर आते हैं.