धर्म अध्यात्म: प्रभु श्री गणेश न सिर्फ प्रथम पूज्य हैं. गणेश जी विघ्ननाशक हैं तथा बुद्धि प्रदाता भी हैं. इनकी कृपा से घर के समस्त वास्तु दोषों का नाश हो जाता है. घर के मुख्य द्वार, पूजा स्थान, रसोई घर एवं कार्यस्थल के वास्तु दोष गणेश जी की प्रतिमा से नष्ट हो सकते हैं. आइए आपको बताते है गणेश जी के इन पवित्र दिनों में ऐसे ही कुछ विशेष प्रयोग के बारे में...
ज्योतिष और वास्तु शास्त्र में प्रभु श्री गणेश की विभिन्न रंग की प्रतिमाओं का प्रयोग होता है. इन रंगों की अलग-अलग मूर्तियां घर के विशेष जगहों में लगाने से वास्तु दोष का नाश होता है. कहते हैं कि गजानन की प्रतिमा वास्तु अनुसार सही दिशा में रकने से सारी परेशानियां एवं दोष नष्ट हो जाते हैं.
कैसे वास्तु दोष दूर करेंगे गणेश?
बच्चों के स्टडी रूम या पढ़ने की टेबल पर पीले या हल्के हरे रंग की गणेश जी की प्रतिमा लगाएं. ढेर सारी गणेश जी की प्रतिमाओं का संग्रहण न करें. पूजा के स्थान पर पीले रंग की गणेश जी की प्रतिमा लगाएं. अगर घर में धन संबंधी दिक्कतें हैं तो तिजोरी या पैसों के स्थान पर गणपति की श्वेत वर्ण यानी सफेद रंग की प्रतिमा रखें.
याद रखें कि घर में बैठे हुए गणेश जी तथा ऑफिस में खड़े हुए गणेश जी की प्रतिमा लगाने से वास्तु दोष दूर होता हैं. प्रतिमा प्रातः पूजा में गणेश जी को दूब अर्पित करें गणेश की प्रतिमा घर के मुख्य द्वार पर अंदर की ओर लगाएं. एक स्थान पर सिर्फ एक ही प्रतिमा रखें. शयन कक्ष में भगवान की प्रतिमा बिल्कुल न रखें.
इस दिशा में रखें प्रतिमा
गणपति को घर के उत्तर पूर्वी कोने में स्थापित करना सबसे शुभ होता है. घर का उत्तर पूर्वी कोना पूजा-पाठ के लिए उत्तम रहता है. आप गणेश जी को घर के पूर्व या फिर पश्चिम दिशा में भी रख सकते हैं. प्रतिमा रखते वक़्त ध्यान दें कि भगवान के दोनों पैर जमीन को स्पर्श कर रहे हों. इससे सफलता आपके कदम चूमेगी. प्रभु श्री गणेश को कभी भी घर के दक्षिण में नहीं रखना चाहिए. घर में जिस ओर भी पूजा घर हो वहां टॉयलेट या कोई भी गंदगी नहीं होनी चाहिए.
गणेश जी की स्थापना के नियम
गणेश जी की कई सारी प्रतिमाएं घर में न रखें. पूजा स्थान पर एक साथ गणेश जी की 3 प्रतिमाएं कभी भी न रखें. गणेश जी की वही प्रतिमा घर में स्थापित करें, जिसमें उनकी सूंड बाईं तरफ हो. प्रतिमा की ऊंचाई बारह अंगुली से अधिक न हो तो बेहतर होगा. पीत वर्ण के गणपति सर्वोत्तम माने जाते हैं. गणेश जी को कभी भी तुलसी दल अर्पित न करें.