होलिका दहन में इस्तेमाल ना करें इन पेड़ों की लकड़ियां
होली का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. यह प्रमुख त्योहारों में से एक है. बसंत ऋतु का आगमन के साथ ही होली का इंतजार शुरू हो जाता है. साल 2022 में 17 मार्च, गुरुवार के दिन होलिका दहन और 18 मार्च को होली मनाई जाएगी.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। होली का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है. यह प्रमुख त्योहारों में से एक है. बसंत ऋतु का आगमन के साथ ही होली का इंतजार शुरू हो जाता है. साल 2022 में 17 मार्च, गुरुवार के दिन होलिका दहन और 18 मार्च को होली मनाई जाएगी. फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा है. इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन के कुछ दिन पहले ही लकड़ियां इकठ्ठा की जाती है और होली से एक दिन पूर्व विधि-विधान के पूजा करने के बाद होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन के लिए कुछ पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. आइए जानते हैं इस बारे में.
होलिका दहन में न करें इन पेड़ों का इस्तेमाल
शास्त्रों के मुताबिक होलिका दहन में पीपल के पेड़, आंवले के पेड़, केले के पेड़, नीम के पेड़, अशोक के पेड़ और बेल के पेड़ की टहनियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि इन पेड़ों को धार्मिक दृष्टिकोण से बेहद खास माना गया है. इसके अलावा हरे-भरे पेड़ और इसकी टहनियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.
होलिका दहन में इन पेड़ों का किया जा सकता है इस्तेमाल
होलिका दहन में एरंड और गूलर की सूखी लकड़ियों का इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि धार्मिक दृष्टिकोण से गूलर को बेहद खास माना गया है. परंतु, इस मौसम में गूलर की टहनियां सूखकर गिर जाती हैं. ऐसे में इसकी टहनियों का इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीं होलिका दहन में गाय के गोबर के उपले का इस्तेमाल किया जा सकता है. दरअसल गाय का गोबर पूजा-पाठ में विशेष रूप से इस्तेमाल किया जाता है.
खरपतवार का कर सकते हैं इस्तेमाल
होलिका दहन में खरपतवार का इस्तेमाल किया जा सकता है. दरअसल खरपतवार का इस्तेमाल करने से अनावश्यक हरे पेड़ों को नहीं काटना पड़ेगा और खर पतवार को होलिका में जला देने से आसपास की सफाई भी हो जाएगी.