Chaturmas 2021: चातुर्मास हों रहे आरंभ, जानिए चातुर्मास में भगवान विष्णु क्यों होते हैं निद्रासन

हिंदू धर्म में तिथियों का विशेष महत्व होता है।

Update: 2021-07-07 16:47 GMT

Chaturmas Katha : हिंदू धर्म में तिथियों का विशेष महत्व होता है। तिथि के आधार पर ही सभी प्रमुख व्रत, त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न किए जाते है। ऐसे में सनातन धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से चातुर्मास शुरू हो जाता है। इस एकादशी को हरिशयनी एकादशी, देवशयनी एकादशी, पद्मा एकादशी, पद्मनाभा एकादशी नाम से जानी जाती है। चातुर्मास के दौरान कई तरह के कार्य निषेध हो जाते हैं। जैसे विवाह, यज्ञोपवीत संस्कार, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गोदान, गृहप्रवेश आदि सभी शुभ कार्य वर्जित माने गए हैं। आइए जानते हैं चातुर्मास के बारे में यह क्या होता है, कब से शुरू होने वाला है और कथा...

क्या होता है चातुर्मास?
चातुर्मास को चौमासा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से चातुर्मास प्रारंभ हो जाते हैं। इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इस तिथि से सृष्टि के संचालन करने वाले भगवान विष्णु क्षीर सागर में योग निद्रा के लिए चले जाते हैं। इस दौरान सृष्टि का संचालन भगवान शिव अपने कंधों पर ले लेते हैं। भगवान विष्णु के शयन की यह अवधि चार महीनों की होती है इस कारण से इसे चातुर्मास कहा जाता है। हिंदी पंचांग के चार महीने श्रावण, भाद्रपद, अश्विन और कार्तिक चातुर्मास कहलाता है। देवोउत्थान एकादशी पर भगवान विष्णु नींद से जागत हैं और पुन: सृष्टि का संचालन अपने हाथों में ले लेते हैं।
कब से चातुर्मास है शुरू?
पंचांग के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से यानी 20 जुलाई 2021 से चातुर्मास आरंभ हो जाएंगे। चार महीने तक रहने के बाद 14 नवंबर 2021 को कार्तिक मास की एकादशी को इसकी समाप्ति हो जाएगी। देवशयनी एकादशी के चार माह के बाद भगवान विष्णु प्रबोधिनी एकादशी के दिन जागते हैं, लगभग चार माह के इस अंतराल को चार्तुमास कहा गया है। धार्मिक दृष्टि से ये चार महीने भगवान विष्णु के निद्राकाल माने जाते हैं।
पौराणिक कथा: इसलिए विश्राम करते हैं भगवान विष्णु
शास्त्रों के अनुसार राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया। घबराए इंद्रदेव व अन्य सभी देवताओं ने जब भगवान विष्णु से सहायता मांगी तो श्री हरि ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से दान मांगने पहुंच गए। वामन भगवान ने दान में तीन पग भूमि मांगी। दो पग में भगवान ने धरती और आकाश नाप लिया और तीसरा पग कहां रखे जब यह पूछा तो बलि ने कहा कि उनके सिर पर रख दें। इस तरह बलि से तीनों लोकों को मुक्त करके श्री नारायण ने देवराज इंद्र का भय दूर किया। लेकिन राजा बलि की दानशीलता और भक्ति भाव देखकर भगवान विष्णु ने बलि से वर मांगने के लिए कहा।बलि ने भगवान से कहा कि आप मेरे साथ पाताल चलें और हमेशा वहीं निवास करें। भगवान विष्णु ने अपने भक्त बलि की इच्छा पूरी की और पाताल चले गए। इससे सभी देवी-देवता और देवी लक्ष्मी चिंतित हो उठी। देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पाताल लोक से मुक्त कराने लिए एक युक्ति सोची और एक गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुँच गईं। इन्होंने राजा बलि को अपना भाई मानते हुए राखी बांधी और बदले में भगवान विष्णु को पाताल से मुक्त करने का वचन मांग लिया।भगवान विष्णु अपने भक्त को निराश नहीं करना चाहते थे इसलिए बलि को वरदान दिया कि वह साल आषाढ़ शुक्ल एकादशी से कार्तिक शुक्ल एकादशी तक पाताल लोक में निवास करेंगे,इसलिए इन चार महीनों में भगवान विष्णु योगनिद्रा में रहते हैं।
चार महीने नेत्रों में रहती है योगनिद्रा
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार एक अन्य प्रसंग में एक बार योगनिद्रा ने बड़ी कठिन तपस्या कर भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और उनसे प्रार्थना की भगवान आप मुझे अपने अंगों में स्थान दीजिए। लेकिन भगवान विष्णु ने देखा कि उनका अपना शरीर तो लक्ष्मी के द्वारा अधिष्ठित है। इस तरह का विचार कर श्री विष्णु ने अपने नेत्रों में योगनिद्रा को स्थान दे दिया और योगनिद्रा को आश्वासन देते हुए कहा कि तुम वर्ष में चार मास मेरे आश्रित रहोगी।
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