इस दिन से शुरू हो रहा चारधाम यात्रा, नोट करें तिथि एवं समय

Update: 2024-05-06 09:09 GMT
लाइफस्टाइल : खानपान में धनिया और पुदीना के पत्तों का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल किया जाता है. गर्मियों में इन पत्तों की ताजा चटनी बनाकर खाई जाती है, चावल या सलाद में गार्निश करने के लिए डाला जाता है, कूलिंग ड्रिंक्स बनाई जाती हैं और सब्जियों का स्वाद बढ़ाने के लिए इन पत्तों का इस्तेमाल होता है. लेकिन, दिक्कत तब आती है जब बाजार से लाने के अगले दिन से ही ये पत्ते सड़ने-गलने लगते हैं. अक्सर ही धनिया और पुदीना के पत्ते (Mint Leaves) काले या पीले पड़ना शुरू हो जाते हैं. इन सड़े हुए पत्तों को फिर सीधा कूड़ेदान के हवाले करना पड़ता है. ऐसे में अगर आप भी धनिया (Coriander Leaves) और पुदीना के पत्तों को लंबे समय तक ताजा बनाए रखना चाहते हैं तो यहां बताए नुस्खे आजमा सकते हैं. इन ट्रिक्स और टिप्स से पुदीना और धनिया के पत्ते लंबे समय तक ताजा बने रहते हैं.
धनिया और पुदीना के पत्ते ताजा कैसे रखें | How To Keep Coriander And Mint Leaves Fresh
जब भी धनिया और पुदीना के पत्ते घर लाए जाते हैं तो सही तरह से स्टोर (Store) करके रखना जरूरी होता है. इन पत्तों को स्टोर करने के लिए ताजे पत्तों की जड़ें काटकर अलग कर दें. अब एक कंटेनर लें और उसमें पानी और एक चम्मच हल्दी का पाउडर डालकर मिक्स करें. धनिया और पुदीना के पत्ते इस पानी में आधे घंटे डुबोकर रखें और उसके बाद अच्छी तरह धोकर पेपर टावल पर बिछाएं और सुखा लें. इसके बाद कंटेनर में पेपट टावल बिछाएं और उसपर इन पत्तों को बिछाएं, उसके ऊपर एक और टावल बिछाकर फिर से पत्तों को रखें. इस तरीके से धनिया और पुदीना के पत्ते अलग-अलग रखे जाएं तो 2 से 3 हफ्तों तक ताजा बने रह सकते हैं.
इन पत्तों को ताजा रखने के लिए एक और तरीका आजमाया जा सकता है. इसके लिए आपको एक गिलास की जरूरत होगी. कांच का गिलास लें और उसमें पानी भरें. अब धनिया और पुदीना के पत्ते लेकर उनकी जड़ें काट लें और इस गिलास में इन पत्तों का तना डुबोकर रखें. अब इस गिलास को जस का तस उठाकर फ्रिज में रख दें. पत्तों को खुला छोड़ने के बजाय उन्हें किसी प्लास्टिक के बैग जैसे जिप लॉक बैग (Zip lock bag) से ढक दें. इस तरह पुदीना और धनिया के पत्ते स्टोर किए जाएं तो लंबे समय तक ताजा बने रहते हैं.
धनिया और पुदीने के पत्ते ताजा रखने के लिए बहुत से लोग इन पत्तों को मलमल के कपड़े में या ब्राउन पेपर में लपेटकर रखते हैं. इससे पत्तों की ताजगी बनी रहती है.
जब आप धनिया या पुदीना के पत्ते खरीदकर लाते हैं तो इन पत्तों को साफ करना शुरू करें. जो भी खराब पत्ते हों उन्हें निकालकर अलग कर लें. अब इन साफ पत्तों को किसी एयरटाइट डिब्बे में बंद करके फ्रिज में रख लें.
नई दिल्ली : उत्तराखंड हिमालय की चारधाम यात्रा एक प्रकार से जीवन की यात्रा है। यह यात्रा प्रकृति के मनोहारी दृश्यों के बीच ईश्वरीय तत्व से निकटता का बोध तो कराती ही है, इसमें जीवन का दर्शन भी समाया हुआ है। इस बार चारधाम यात्रा की शुरुआत 10 मई को अक्षय तृतीया पर्व पर यमुनोत्री, गंगोत्री व केदारनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ हो रही है। 12 मई को बदरीनाथ धाम के कपाट खोले जाएंगे।
प्रकृति की गोद में विराजमान चारों धामों की इस यात्रा से नकारात्मक विचार भी तिरोहित हो जाते हैं और जीवन में सकारात्मकता का संचार होता है। इस यात्रा में सहजता भी है और मुश्किल पड़ाव भी, लेकिन जब हमारे भीतर उमंग एवं विश्वास की ऊर्जा जागती है, तब हम इसे सहजता से पूर्ण कर लेते हैं। शास्त्रों में चारधाम यात्रा को जीवन के एकमात्र ध्येय भगवद्तत्व एवं भगवत प्रेम की प्राप्ति का हेतु माना गया है।
'पद्म पुराण’ में उल्लेख है कि ‘तरित पापादिकं यस्मात’ अर्थात जिससे मनुष्य बुरे कार्यों से मुक्त हो जाए, वह तीर्थ है। ‘स्कंद पुराण’ के ‘केदारखंड’ में कहा गया है कि मोह, माया, रागादि जैसे सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए चारधाम यात्रा अवश्य करनी चाहिए। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री धाम से शुरू होने वाली यह यात्रा गंगोत्री (उत्तरकाशी) से केदारनाथ (रुद्रप्रयाग) होते हुए बदरीनाथ (चमोली) पहुंचकर विराम लेती है।
हालांकि, परंपरा में इसकी शुरुआत हरिद्वार से मानी गई है, जो कि श्रीहरि के साथ शिव का भी द्वार है। पहाड़ की कंदराओं से उतरकर गंगा पहली बार यहीं मैदान में पदार्पण करती है। इसलिए हरिद्वार को ‘गंगाद्वार’ भी कहा गया है। चार धाम का पहला पड़ाव है यमुनोत्री धाम। यमुना को भक्ति का उद्गम माना गया है, इसलिए धर्मग्रंथों में सबसे पहले यमुना दर्शन का प्रावधान है।
अंतर्मन में भक्ति का संचार होने पर ही ज्ञान के चक्षु खुलते हैं और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी हैं सरस्वती स्वरूपा मां गंगा। ज्ञान ही जीव में वैराग्य का भाव जगाता है, जिसकी प्राप्ति भगवान केदारनाथ के दर्शन से ही संभव है। जीवन का अंतिम सोपान है मोक्ष और वह श्रीहरि के चरणों में ही मिल सकता है। शास्त्र कहते हैं कि जीवन में जब कुछ पाने की चाह शेष न रह जाए, तब भगवान बदरी विशाल के शरणागत हो जाना चाहिए, इसलिए बदरिकाश्रम को भू-वैकुंठ कहा गया है।
चारधाम माहात्म्य
यमुनोत्री : चार धाम यात्रा का प्रथम पड़ाव है उत्तरकाशी जिले में स्थित यमुनोत्री धाम। यहां देवी यमुना की आराधना होती है। यमुनोत्री धाम से एक किमी. की दूरी पर यमुना का मूल उद्गम चंपासर ग्लेशियर है। धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि यह स्थान असित मुनि का निवास स्थल था। उन्होंने यहां देवी यमुना की आराधना की। यहां स्थित यमुना मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने 19वीं सदी में करवाया था।
गंगोत्री : कथा है कि देवी गंगा ने राजा भगीरथ के पुरखों को तारने के लिए नदी का रूप धारण किया था। गंगोत्री धाम को गंगा का उद्गम माना गया है, जबकि गंगा गंगोत्री से 19 किमी. दूर गोमुख ग्लेशियर से निकलती है। मान्यता है कि गंगोत्री में गंगा मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने करवाया था। यह मंदिर भागीरथी नदी के बाएं तट पर सफेद पत्थरों से निर्मित है। राजा माधो सिंह ने वर्ष 1935 में इसका जीर्णोद्धार किया। मंदिर के समीप भागीरथी शिला है, जिस पर बैठकर भगीरथ ने कठोर तप किया था।
केदारनाथ : रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ धाम का पंच केदार में प्रथम और देश के 12 ज्योतिर्लिंगों में 11वां स्थान है। श्रीमद्भागवत महापुराण में भी केदारनाथ धाम का उल्लेख हुआ है। कथा है कि महाभारत युद्ध के बाद पांडव अपने पापों का प्रायश्चित करने केदारनाथ पहुंचे और शिव की घोर तपस्या की। भगवान शिव यहां वृषभ रूप में प्रकट हुए। तब से यहां वृषभ रूपी शिव के पृष्ठ भाग की पूजा होती आ रही है। केदारनाथ मंदिर के द्वार पर नंदी विराजमान हैं।
बदरीनाथ: नर-नारायण पर्वत के मध्य बदरीनाथ को भगवान विष्णु का धाम माना गया है। गंगा ने जब स्वर्ग से धरती के लिए प्रस्थान किया तो वह 12 धाराओं में बंट गईं, जिनमें एक है अलकनंदा, जिसके तट पर बदरिकाश्रम स्थित है। चमोली जिले में स्थित बदरीनाथमंदिर का निर्माण आठवीं शती में आदि शंकराचार्य ने करवाया था। वर्तमान मंदिर का निर्माण दो शती पूर्व गढ़वाल नरेश ने करवाया। इस मंदिर के गर्भगृह में श्रीहरि के साथ नर-नारायण ध्यान की स्थिति में विराजमान हैं।
कपाट खुलने की तिथि एवं समय
यमुनोत्री : 10 मई, प्रातः 10:29 बजे
गंगोत्री : 10 मई, अपराह्न 12:25 बजे
केदारनाथ : 10 मई, प्रातः 7:00 बजे
बदरीनाथ : 12 मई, प्रातः 6:00 बजे
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