Bhairav Jayanti 2021: शिव का तेज है भैरव

शिवपुराण के अनुसार, देवाधिदेव महादेव के आज्ञाचक्र (भौहों के मध्य) से भैरवजी का अवतरण हुआ था। शिवमहापुराण के विद्येश्वर-संहिता के 8वें अध्याय की कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना कर ब्रह्माजी ने चारों दिशाओं को देखा तो वे चतुर्मुखी हुए

Update: 2021-11-23 15:33 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Bhairav Jayani 2021: शिवपुराण के अनुसार, देवाधिदेव महादेव के आज्ञाचक्र (भौहों के मध्य) से भैरवजी का अवतरण हुआ था। शिवमहापुराण के विद्येश्वर-संहिता के 8वें अध्याय की कथा के अनुसार, सृष्टि की रचना कर ब्रह्माजी ने चारों दिशाओं को देखा तो वे चतुर्मुखी हुए। वैकुंठ की ओर देखा तो पंचमुखी हो गए। इससे उन्हें अहंकार हो गया। उन्होंने पालनकर्ता विष्णु जी को चुनौती दे दी कि ब्रह्मांड में वे सबसे बड़े हैैं। ब्रह्मा जी के अहंकार से क्षुब्ध महादेव रौद्र हो गए। लिहाजा उनके भौंहों के बीच से एक तेज प्रकट हुआ, जिसने ब्रह्मा के अहंकारी मुख (कपाल) का संहार कर दिया। इसी संहारकर्ता तेज का नाम भैरव पड़ा। हालांकि ब्रह्मा के इस कपाल को काटने का दंड भैरव का झेलना पड़ा, अत: महादेव की आज्ञानुसार काशी में साधना कर भैरव ब्रह्म-हत्या के दोष से मुक्त हुए।

ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति के पीछे भैरव की संगीत-साधना प्रतीत होती है। ब्रह्मा वेद के रचयिता होने के नाते गीतलेखक है तो महादेव नाद के देवता। वहीं विष्णु नृत्य के देवता हैैं। काशी भगवान विष्णु की भी प्रिय नगरी है। स्कंदपुराण के काशीखंड के पूर्वाद्र्ध एवं उत्तराद्र्ध दोनों खंडों में काशीनगरी के वैशिष्ट्य में विष्णु जी द्वारा व्यक्त की गई महिमा से समझा जा सकता है। भैरव को गायन, वादन और नृत्य का बोध होने का अनुमान इसलिए लगाना सहज है कि संगीत का आदि राग भैरव को माना जाता है।
संगीतकारों में मान्यता है कि राग भैरव से शिव प्रसन्न होते हैं तो श्रीराग से देवी-शक्तियां। श्रीराग में गायन से सूखते पेड़ हरे हो जाते हैं। राग भैरव की छ: रागिनियां, इन छहों रागिनियों के छ:-छ: पुत्र भी बताए गए हैं। इनके वंश विस्तार की अनंत सीमा है, लेकिन संगीत विशेषज्ञ 436 राग-रागिनियों में साधना करते हैं। गीत-संगीत व्यक्ति में सकारात्मक भाव एवं संस्कार के बीज बोने में सहायक है। भगवान विष्णु से जब नारद ने पूछा कि आप रहते कहां हैं तो विष्णुजी ने उत्तर दिया- 'नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हॄदयेन च, मद्भक्ता: यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद:" । यहां ध्यायन्ति या जपन्ति का नहीं, बल्कि गायन्ति का प्रयोग किया। राग भैरव में सृष्टिमोहनी से ब्रह्मा, विश्वमोहिनी से विष्णु तथा प्रकृतिमोहिनी से महादेव को प्रसन्न करने की क्षमता है। इसलिए शिवपुराण की कथा के अनुसार, माता पार्वती आदिपर्वत शिखर विंध्यपर्वत पर तपस्या करने आई तो 8 भैरव एवं 5 भैरवियां उनकी सुरक्षा में रहे। जिसमें महाभैरव, संहारभैरव, असितांगभैरव, रुद्रभैरव, कालभैरव, क्रोधभैरव, ताम्रचूड़ भैरव और चंद्रचूड़ भैरव के साथ त्रिपुर भैरवी, कौलेश भैरवी, रुद्रभैरवी, नित्या भैरवी और चैतन्य भैरवियां थीं। शास्त्रकारों के अनुसार, कुल 64 भैरव और इतनी ही भैरवियां हैं। इनके नाम के अनुसार इनकी प्रकृति में अंतर है। ताम्र भैरव जहां लालिमा तो चंद्रचूड़ भैरव महादेव के मस्तक पर शीतलता देने वाले चंद्रमा की प्रकृति और रुद्र भैरव अग्नितत्व को बढ़ाने का प्रतिनिधित्व करते प्रतीत होते हैं ।


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