Ashadha Month: धार्मिक और सेहत के लिहाज से महत्वपूर्ण है आषाढ़, इस महीने इन देवताओं का रहता है प्रभाव
Ashadha Month: आषाढ़ माह धार्मिक और सेहत के हिसाब से महत्वपूर्ण होता है. इस महीने भगवान विष्णु और सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है. साथ ही सेहत (Health) को लेकर खास सावधानियां बरतने की जरूरत रहती है.धार्मिक मान्यता के अनुसार,आषाढ़ माह में गुरु की उपासना सबसे फलदायी होती है. इस महीने में श्रीहरि विष्णु (Lord Vishnu) की उपासना से भी संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है. इस महीने में जल देव की उपासना का भी महत्व है. कहा जाता है कि जल देव की उपासना करने से धन की प्राप्ति होती है.ऊर्जा के स्तर को संयमित रखने के लिए आषाढ़ के महीने में सूर्य (Surya Puja) की उपासना की जाती है. आषाढ़ मास के प्रमुख व्रत-त्योहारों में जगन्नाथ रथयात्रा (Jagannath Ratha Yatra 2024) है. इसी महीने देवशयनी एकादशी (Devshayani Ekadashi 2024) के दिन से श्री हरि विष्णु शयन के लिए चले जाते हैं जिस कारण अगले चार माह तक शुभ कार्यों को करने की मनाही है. इसे चतुर्मास (Chaturmas 2024) के नाम से भी जाना जाता है.
स्कंद पुराण (Skanda Purana) के मुताबिक इस महीने में भगवान विष्णु और सूर्य की पूजा करने से बीमारियां दूर होती है और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. आषाढ़ में रविवार और सप्तमी तिथि का व्रत रखने से मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं. भविष्य पुराण (Bhavishya Purana) में कहा गया है कि सूर्य को जल चढ़ाने से दुश्मनों पर जीत मिलती है.आषाढ़ महीना कब से कब तक (Ashada 2024 Start and End Date)आषाढ़ महीना 23 जून से 21 जुलाई तक रहेगा. इस महीने उगते हुए सूरज को अर्घ्य देने की परंपरा है. आषाढ़ के दौरान सूर्य अपने मित्र ग्रहों की राशि में रहता है. इससे सूर्य का शुभ प्रभाव और बढ़ जाता है. स्कंद पुराण के मुताबिक आषाढ़ महीने में भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि इस महीने के देवता भगवान वामन (Vamana Avatar) ही हैं. इसलिए आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि पर भगवान वामन की विशेष पूजा और व्रत की परंपरा है. वामन पुराण के मुताबिक आषाढ़ महीने के दौरान भगवान विष्णु के इस अवतार की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं. संतान सुख मिलता है, जाने-अनजाने में हुए पाप और शारीरिक परेशानियां भी खत्म हो जाती हैं.
स्वास्थ लाभ के लिए खास है आषाढ़ माह (Ashada Month Health Benefits)- आषाढ़ महीना धर्म-कर्म के अलावा सेहत के नजरिए से भी बहुत खास होता है. आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य चरक (आचार्य चरक), सुश्रुत (Sushruta) और वागभट्ट (Vagbhata) ने इस माह को ऋतुओं का संधिकाल कहा है. यानी ये मौसम परिवर्तन का समय होता है. इस दौरान गर्मी खत्म होती है और बारिश की शुरुआत होती है. ज्योतिषियों (Astrologers) के मुताबिक आषाढ़ महीने में सूर्य मिथुन राशि में रहता है. इस कारण भी रोगों का संक्रमण बढ़ता है.
श्रीराम ने की थी सूर्य पूजा (Surya Puja)- स्कंद और पद्म पुराण के अनुसार सूर्य को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है. उन्हें भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाला भी कहा जाता है. इसलिए आषाढ़ महीने में सूर्यदेव को जल चढ़ाने से विशेष पुण्य मिलता है. वाल्मीकि रामायण (Ramayan) के अनुसार युद्ध के लिए लंका जाने से पहले भगवान श्रीराम ने भी सूर्य को जल चढ़ाकर पूजा की थी. इससे उन्हें रावण (Ravana) पर जीत हासिल करने में मदद मिली. आषाढ़ महीने में सूर्य को जल चढ़ाने से सम्मान, सफलता और तरक्की मिलती है. शत्रुओं पर विजय पाने के लिए भी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है.
सूर्य पूजा से बढ़ता है आत्मविश्वास (Surya Puja Benefits)- सूर्य को जल चढ़ाने से आत्मविश्वास बढ़ता है, सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) बढ़ती है. आषाढ़ महीने में सूर्योदय से पहले नहाकर उगते हुए सूरज को जल चढ़ाने के साथ ही पूजा करने से बीमारियां दूर होती हैं. भविष्य पुराण में श्रीकृष्ण ने अपने पुत्र को सूर्य पूजा का महत्व बताया है. श्रीकृष्ण ने कहा है कि सूर्य ही एक प्रत्यक्ष देवता हैं. यानी ऐसे भगवान हैं जिन्हें रोज देखा जा सकता है. श्रद्धा के साथ सूर्य पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. सूर्य पूजा से कई ऋषियों को दिव्य ज्ञान प्राप्त हुआ है.
सूर्य को देना चाहिए अर्घ्य (Surya Arghya)- सुबह सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ स्नान करें. संभव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल डालकर नहाएं. इसके बाद भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं. इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरें और चावल, फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य दें. जल चढ़ाते समय सूर्य के वरूण रूप को प्रणाम करते हुए ऊं रवये नम: मंत्र का जाप करें. इस जाप के साथ शक्ति, बुद्धि, स्वास्थ्य और सम्मान की कामना करना चाहिए. इस प्रकार जल चढ़ाने के बाद धूप, दीप से सूर्य देव का पूजन करें. सूर्य से संबंधित चीजें जैसे तांबे का बर्तन, पीले या लाल कपड़े, गेहूं, गुड़, लाल चंदन का दान करें. श्रद्धानुसार इन में से किसी भी चीज का दान किया जा सकता है. इस दिन सूर्यदेव की पूजा के बाद एक समय फलाहार करें.
शुरू होता है बारिश का मौसम (Monsoon start in Ashada)- आषाढ़ महीने में गर्मी खत्म होने लगती है और ये बारिश का मौसम शुरू होता है. दो मौसमों के संधिकाल की वजह से इन दिनों बीमारियों का संक्रमण ज्यादा होने लगता है. साथ ही नमी की वजह से फंगस और इनडाइजेशन (Indigestion) की समस्या भी बढ़ जाती है. इसी महीने में ही मलेरिया, डेंगू और वाइरल फीवर ज्यादा होते हैं. इसलिए खान-पान पर ध्यान देते हुए छोटे-छोटे बदलाव करके बीमारियों से बचा जा सकता है.
बढ़ने लगते हैं फंगस रोग- आयुर्वेद के मुताबिक आषाढ़ महीने के दौरान फंगस रोग (Fungal infection) बढ़ने लगते हैं, जिससे बचने के लिए नीम, लौंग, दालचीनी, हल्दी और लहसुन का इस्तेमाल ज्यादा करना चाहिए. इनके साथ ही त्रिफला चूर्ण को गरम पानी के साथ लेना चाहिए और गिलोय भी खाना चाहिए. साथ ही इस महीने में टमाटर, अचार, दही और अन्य खट्टी चीजें खाने से बचना चाहिए.
मसालेदार खाने से परहेज (Ashada Month Precautions)- ऋतु परिवर्तन के इस काल में पानी से संबंधित बीमारियां ज्यादा होती है. ऐसे में इन दिनों पानी उबालकर पीना चाहिए. आषाढ़ में रसीले फलों का सेवन ज्यादा करना चाहिए. इनदिनों में आम और जामुन खाने चाहिए. हालांकि बेल से पहरेज करें. पाचन शक्ति सही रखने के लिए मसालेदार और तली भुनी चीजें कम खानी चाहिए. आषाढ़ महीने में सौंफ और हींग का सेवन करना फायदेमंद माना गया है. इस महीने में साफ-सफाई पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है.
वामन रूप की पूजा और व्रत (Vishnu ji Vaman Avatar Puja)-आषाढ़ महीने के गुरुवार को भगवान विष्णु के वामन रूप की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन व्रत और पूजा के बाद छोटे बच्चे को भगवान वामन का रूप मानकर भोजन करवाया जाता है और जरूरत की चीजों का दान भी किया जाता है. साथ ही इस महीने की दोनों एकादशी तिथियों पर भगवान वामन की पूजा के बाद अन्न और जल का दान किया जाता है.
वामन रूप में अवतार- सतयुग में असुर बलि ने देवताओं को पराजित करके स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया था. इसके बाद सभी देवता भगवान विष्णु के मदद मांगने पहुंचे तब विष्णुजी ने देवमाता अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतार लिया. इसके बाद एक दिन राजा बलि यज्ञ कर रहा था, तब वामनदेव बलि के पास गए और तीन पग धरती दान में मांगी. शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने वामनदेव को तीन पग धरती दान में देने का वचन दे दिया.
इसके बाद वामनदेव ने विशाल रूप धारण किया और एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्गलोक नाप लिया। तीसरा पैर रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने वामन को खुद सिर पर पग रखने को कहा. वामनदेव ने जैसे ही बलि के सिर पर पैर रखा, वह पाताल लोक पहुंच गया. बलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान ने उसे पाताललोक का स्वामी बना दिया और सभी देवताओं को उनका स्वर्ग लौटा दिया.
खबरों के अपडेट के लिए जुड़े रहे जनता से रिश्ता पर |