लोहड़ी पर्व के बाद क्यों लगने लगती है रात छोटी, जानिए इसके पीछे की वजह

मकर संक्रांति से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है.

Update: 2021-01-08 08:34 GMT

जनता से रिश्ता बेवङेस्क|  मकर संक्रांति से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है. लोहड़ी हरियाणा और पंजाब का बहुत बड़ा पर्व है और खासतौर पर किसानों को समर्पित होता है. हालांकि अब इसे भारत के दूसरे राज्यों में भी मनाया जाता है. माना जाता है कि लोहड़ी की रात सर्दियों की आखिरी सबसे लंबी रात होती है. इसके बाद से रात धीरे धीरे छोटी होने लगती है और दिन बड़ा होने लगता है. इसी के साथ शरद ऋतु यानी सर्दियों का असर भी कम होने लगता है. जानिए इस मान्यता के पीछे का तथ्य.

उत्तरी गोलार्द्ध की ओर बढ़ता है सूर्य

दरअसल लोहड़ी के अगले दिन मकर संक्रान्ति का त्योहार होता है. मकर संक्रान्ति के दिन सूर्यदेव धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं और दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तरी गोलार्द्ध की ओर बढ़ने लगते हैं. इसे ही ज्योतिषी भाषा में सूर्य का दक्षिणायण से उत्तरायण होना कहा जाता है. आम बोलचाल में कहा जाए तो सूर्य मकर संक्रान्ति के दिन से उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगता है. इससे दिन की लंबाई धीरे धीरे बढ़ने लगती है और रात की घटने लगती है. इसे ही दिन बड़ा होना और रात छोटी होना कहा जाता है.

समर सोलिस्टिस पर पूरी होती ये प्रक्रिया

21 मार्च को सूर्य एकदम बीचोंबीच होता है, तब दिन और रात दोनों ही समान होते हैं. इसे वैज्ञानिक भाषा में इक्विनॉक्स कहा जाता है. इसके बाद जैसे जैसे सूरज उत्तरी गोलार्द्ध की तरफ बढ़ता जाता है, दिन बड़ा और रात छोटी होती जाती है. ये पूरी प्रक्रिया 21 जून को समर सोलिस्टिस पर जाकर खत्म होती है. 21 जून को सबसे लंबा दिन होता है.

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