ऐसा मंदिर जहां भगवान शिव के साथ पूजा जाता हैं कुकुरदेव, जानिए ये पौराणिक कथा
भगवान शिव के मंदिरों में उनके समक्ष होते हैं नंदी जी. जिन्हें भोलेनाथ का वाहन माना गया है. पर देश में एक मंदिर ऐसा भी है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| भगवान शिव के मंदिरों में उनके समक्ष होते हैं नंदी जी. जिन्हें भोलेनाथ का वाहन माना गया है. पर देश में एक मंदिर ऐसा भी है जहां भगवान शिव के साथ नंदी जी नहीं बल्कि कुकुरदेव की पूजा की जाती है
ये मंदिर है कुकुरदेव मंदिर, जो छत्तीसगढ़ में है. इस मंदिर की आसपास के क्षेत्र में काफी मान्यता है. यहां हजारों लोग दर्शन करने पहुंचते हैं
इस मंदिर का नाम भी कुकुरदेव के नाम पर ही रखा गया है. लोग कहते हैं कि ये मंदिर एक स्मारक है. जिसे एक वफादार कुत्ते की याद में बनाया गया था.
मंदिर की कथा
मान्यता है कि सदियों पहले एक बंजारा अपने परिवार के साथ इस गांव में आया. बंजारे का नाम था मालीघोरी. उनके पास एक पालतू कुत्ता था. अकाल पड़ने के कारण बंजारे को कुत्ते को साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा.
साहूकार के घर चोरी हो गई. कुत्ते ने चोरों को साहूकार के घर से चोरी का माल तालाब में छुपाते देखा. फिर कुत्ता साहूकार को चोरी का सामान छुपाए स्थान पर ले गया. साहूकार को चोरी का सामान मिल गया.
कुत्ते की वफादारी से साहूकार इतना खुश हुआ कि उसने उसके गले में चिट्ठी लिखकर टांग दी कि वो कतना वफादार है. उसने कुत्ते को मालिक के पास जाने के लिए मुक्त कर दिया.
पर, जब कुत्ता बंजारे के पास लौटा तो बंजारे ने समझा कि वो भाग कर आया है और उसने डंडे से पीट-पीटकर कुत्ते को मार डाला. बाद में उसे अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने कुत्ते की प्रतिमा बनाई. जिसे बाद में गांव वाले पूजने लगे.
बाद में, इस मंदिर का निर्माण फणी नागवंशी शासकों द्वारा 14वीं-15 वीं शताब्दी में कराया गया था. मंदिर के गर्भगृह में कुत्ते की प्रतिमा स्थापित है. उसके बगल में एक शिवलिंग है.
तब से लोग यहां कुकुरदेव की पूजा करते हैं. सावन में यहां काफी बड़ा मेला लगता है. हजारों लोग दर्शन के लिए आते हैं. लोगों में मान्यता है कि यहां कुकुरदेव का पूजन करने से जीवन में कभी कुत्ते द्वारा काटने का डर नहीं रहता. कुकुरखांसी भी नहीं होती.