सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्यों उठाया गया कानून की वैधता पर सवाल कहा कि. क्या किसानों पर राजद्रोह की धारा लगाना सही है ?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्यों उठाया गया कानून की वैधता पर सवाल कहा कि. क्या किसानों पर राजद्रोह की धारा लगाना सही है ?
जनता से रिश्ता वेबसाइट। आए दिन ये बहस ताज़ा हो जाती है कि राजद्रोह कानून की देश में अब क्या ज़रूरत है? गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा कि अंग्रेज़ों के जमाने में जो धारा गांधी और तिलक के ख़िलाफ़ लगाई जाती थी, उसकी भला आज़ाद भारत में क्या ज़रूरत है. ये बहस कहां जाकर रुकेगी, अभी नहीं कहा जा सकता. लेकिन हरियाणा में फिर एक बार कई किसानों के विरुद्ध राजद्रोह का केस दर्ज किया गया है. अपराध ये है कि किसानों ने डिप्टी स्पीकर की गाड़ी पर हमला किया था.
सिरसा में 11 जुलाई को हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा की गाड़ी पर हमला हुआ था. किसानों ने गंगवा का रास्ता रोका और उनकी गाड़ी के शीशे तोड़ दिए. शुक्रवार तड़के इस मामले में 5 किसानों को गिरफ्तार किया गया और 100 से ज्यादा किसानों पर केस दर्ज किया गया है. इनके खिलाफ आईपीसी की धारा 307, 147, 148, 149, 341, 323, 332, 353, 186, 427, 124-A के तहत मामले दर्ज हुए है.
हम ये जरूरी समझते हैं कि एक जागरूक नागरिक होने के नाते आपको भी पता होना चाहिए, आखिर किसानों पर आरोप क्या हैं. धारा- 307 यानी हत्या का प्रयास करना, 147- उपद्रव करना, 148- घातक चीज का प्रयोग करना, जिससे मौत हो सके, 149- कानून के खिलाफ एकत्रित जनसमूह का अपराध, 341- गलत तरीके से किसी को रोकना, 323- जानबूझकर किसी को चोट पहुंचाना, 332 सरकारी कर्मचारी को कार्य के दौरान चोट पहुंचाना, 353- सरकारी कर्मचारी को कर्तव्य निभाने से रोकने के लिए हमला करना, 186- सरकारी कर्मचारी के काम में बाधा डालना, 427- आर्थिक हानि या नुकसान करना और 124-ए के तहत कोई व्यक्ति सरकार विरोधी सामग्री लिखता है तो उसके खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने उठाया कानून की वैधता पर सवाल
आसान शब्दों में ऐसे समझिए कि कोई व्यक्ति लिखकर, बोलकर या सोशल मीडिया पर सरकार के खिलाफ पोस्ट डालकर ऐसी बातों का समर्थन करता है, जिससे सरकार के खिलाफ गुस्सा पैदा हो या असंतोष बढ़े तो इसे राजद्रोह कहेंगे. धारा 124 ए में कहा गया है कि सरकार के खिलाफ विद्रोह को बगावत माना जाएगा. हालांकि बिना घृणा के देश को उत्तेजित करने के प्रयास के बिना टिप्पणी अपराध नहीं माना जाएगा. लेकिन किसानों के खिलाफ राजद्रोह की धारा क्यों?
कल सुप्रीम कोर्ट ने इसे लेकर जो टिप्पणी की है, वो महत्वपूर्ण है. राजद्रोह के कानून की वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर देश के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कल कहा कि ब्रिटिश सरकार जिस कानून का इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया था, क्या आजादी के 75 साल बाद भी ऐसे कानून की ज़रूरत है?
चीफ जस्टिस ने सवाल भी उठाया कि जब केंद्र सरकार कानून की किताबों से बहुत सारे पुराने कानून निकाल रही है, तो राजद्रोह के कानून पर ध्यान क्यों नहीं दिया गया? अदालत ने ये भी कहा कि धारा 124-ए ऐसी है…कि कोई पुलिस अधिकारी किसी गांव में किसी के खिलाफ कुछ करना चाहता है, तो वो इसका इस्तेमाल कर लेता है.
2014-19 के बीच दर्ज 326 केस में सिर्फ 10 दोषी
ध्यान देने की बात ये है कि धारा-124 (A) के केस में सजा की दर बेहद कम है. मिसाल के तौर पर वर्ष 2014 में 47 केस दर्ज हुए और सिर्फ एक आरोपी दोषी करार हुआ. इसी तरह 2015 में 30 केस और कोई दोषी नहीं. वर्ष 2016 में 35 केस और सिर्फ एक दोषी. 2017 में 51 केस और 4 दोषी. वर्ष 2018 में 70 केस और 2 दोषी, जबकि वर्ष 2019 में भी 93 केस दर्ज होने के बावजूद सिर्फ 2 आरोपी ही दोषी ठहराए गए. कुल मिलाकर 2014 से 2019 के बीच 326 केस दर्ज हुए, 559 गिरफ्तारियां हुईं, 337 चार्जशीट दाखिल की गई और सिर्फ 10 लोगों को दोषी ठहराया गया.
यानी राजद्रोह के मामले में जितने लोगों को आरोपी बनाया जा रहा है, उनमें बहुत कम दोषी साबित हो रहे हैं. हरियाणा के डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा के मामले में भी आरोपी 100 से ज्यादा हैं, लेकिन दोषी कितने होंगे? और क्या इनपर राजद्रोह का मुकदमा बनता है? हम कहीं से भी ये नहीं कह रहे हैं कि हिंसा करना या उपद्रव करना जायज है. लेकिन लोकतंत्र में विरोध और राजद्रोह के बीच की सीमा स्पष्ट होनी चाहिए. देश की सबसे बड़ी अदालत की भी यही फ़िक्र है.