नई दिल्ली (आईएएनएस)| दिल्ली के उपहार सिनेमा अग्निकांड मामले के 26 साल बीत चुके हैं। इस अग्नि कांड पर फायर ऑन ट्रायल वेब सीरीज नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है। यह वेब सीरीज इस मामले की पीड़ित नीलम कृष्णमूर्ति की किताब फायर ऑन ट्रायल पर आधारित है। वेब सीरीज की रिलीज पर उपहार सिनेमा अग्नि त्रासदी मामले में अपने बेटे और बेटी को खोने वाली नीलम कृष्णमूर्ति से आईएएनएस ने बातचीत की। आपको बता दें कि दिल्ली के ग्रीन पार्क स्थित उपहार सिनेमा में 13 जून 1997 को शो के दौरान सिनेमाघर के ट्रांसफॉर्मर कक्ष में आग लग गई थी। इस अग्निकांड की वजह से 59 लोगों की मौत हो गई थी। जिनमें बच्चे और महिलाएं भी थे। उपहार सिनेमा अग्निकांड में जिन लोगों की मौत हुई थी, उनमें नीलम की 17 वर्षीय बेटी उन्नति और 13 वर्षीय बेटा उज्जवल भी शामिल थे। नीलम कृष्णमूर्ति ने न्याय पाने के लिए एक लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और बच्चों को खोने का दर्द भी सहा है।
नीलम कृष्णमूर्ति ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि मैंने और मेरे पति शेखर ने यह सोचा कि जो हम पर बीती है, उस पर एक किताब लिखी जानी चाहिए। वर्ष 2016 में हमारी किताब फायर ऑन ट्रायल अंग्रेजी भाषा में आई। इसका हिंदी अनुवाद अग्नि परीक्षा भी रिलीज हुआ। इसके बाद सिद्धार्थ जैन ने हमसे संपर्क किया और मूवी बनाने का प्रस्ताव दिया। हमारे लिए, जो हम पर बीती हो, उस पर मूवी बनाने के लिए राजी होने का निर्णय इतना आसान नहीं था। क्योंकि हमने अपने दोनों बच्चों को सिनेमा थिएटर में ही गवाया है। हमने सिद्धार्थ से केवल एक ही शर्त रखी कि एक बेहद इमोशनल और सीरियस ईशू है। ऐसे में वह किसी तरह का मेलोड्रामा मूवी में नहीं चाहती हैं। बिना मिर्च मसाले के इस मूवी को रिलीज किया जाना चाहिए। सिद्धार्थ ने निश्चय ही बेहद जीवंत और रियल तरीके से यह वेब सीरीज तैयार की है।
नीलम कृष्णमूर्ति ने बताया कि मैंने अपनी किताब वर्ष 2016 में लिखी थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पिटिशन भी पेंडिंग थी। उस दौरान भी किताब पर कोई रोक नहीं लगाई थी। उसके अलावा अलग-अलग मामलों में मुझे कोर्ट के जरिए दांवपेच झेलने पड़े और अब वेब सीरीज के मामले में भी दिल्ली हाईकोर्ट ने सुशील अंसल की याचिका खारिज करते हुए वेब सीरीज को हरी झंडी दिखाई। इसके बाद आज वेब सीरीज रिलीज हो चुकी है।
नीलम कृष्णमूर्ति ने न्याय पाने के लिए कोर्ट के अनुभव को आईएएनएस से साझा करते हुए बताया कि हमने कोर्ट की इस लंबी प्रक्रिया में किस तरह की चीजों का सामना किया है यह तो हम ही जान सकते हैं। एक बड़ी कंपनी के मालिक, जिसके पास वकीलों की लंबी फौज हो पैसा हो। उसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ना आसान नहीं था। मुझे कई बार कोर्ट रूम के अंदर ही धमकियां मिली। न्यायालय के बार एसोसिएशन के प्रेसीडेंट अपने 30 वकीलों के साथ आकर मुझे कोर्टरूम ना आने की धमकी दे रहे थे। लेकिन हमें अब किसी भी चीज का डर नहीं था। हमने आरोपियों के खिलाफ पीड़ितों को इकट्ठा किया। यह दुनिया में पहली बार था कि पीड़ित 26 वर्षों तक एकजुट होकर दोषियों के खिलाफ लड़ते रहे। हमें जस्टिस आज भी नहीं मिला, सिर्फ जजमेंट मिला है। जजमेंट में उन्होंने बोल दिया कि हां दोषी हैं और उन्हें दो-दो साल की सजा दी। उनको बोला कि आप तीस करोड़ रूपए ट्रामा सेंटर के लिए दीजिए, और उनको उनकी वृद्धावस्था के कारण जाने दिया,यह तो कहीं से भी जस्टिस नहीं हुआ, यह तो सिर्फ जजमेंट हुआ।
अंत में नीलम कृष्णमूर्ति ने कहा कि बिना किसी मेलोड्रामा के, बिना किसी मिर्च मसाले के यह वेब सीरीज बनाई गई है। अभिनेताओं ने अपने चरित्र को बखूबी निभाया है। हालांकि कोई भी अभिनेता कोविड-19 के चलते उनसे और उनके परिवार से मिल नहीं पाया था। इसके बावजूद उन्होंने अपनी क्षमता और टैलेंट के अनुसार अच्छा अभिनय किया।
यह वेब सीरीज बहुत इमोशनल है। बहुत सेंसटिविटी के साथ बनाया गया है। मां बाप का क्या दर्द होता है, जब इस तरीके के हादसे होते हैं, इसमें दिखाया गया है, हम लोगों के लिए तो सिर्फ एक हादसा होता है, लेकिन इस तरह के हादसों से कुछ लोगों की जिंदगी बदल जाती है। हमारे देश में न्याय प्रक्रिया किस तरह से काम करती है, यह भी इस वेब सीरीज के माध्यम से दिखाया गया है।