सुप्रीम कोर्ट ने कहा- 'हत्या से पहले हुई FIR', उम्र कैद की सजा खारिज की

जानें पूरा केस.

Update: 2023-06-23 12:04 GMT
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति और उसके बेटे को हत्या के एक मामले में बरी कर दिया है, जिसमें उन्हें 25 साल पहले आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज होने का समय बदलकर पहले कर दिया गया था, पोस्टमॉर्टम में देरी हुई थी और अपराध के हथियारों के नाम में अंतर था। अपील लंबित रहने के दौरान बेटे की मृत्यु हो गई। जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि मोहम्मद मुस्लिम और उसके बेटे शमशाद को फंसाने के लिए पुलिस ने प्राथमिकी का समय दोपहर 1:50 बजे से बदलकर सुबह 9 बजे कर दिया था। पीठ ने कहा कि प्राथमिकी में हत्या का समय और तारीख 4 अगस्त 1995 को सुबह 9 बजे का उल्लेख किया गया था, हालांकि हत्या दोपहर 1.50 बजे हुई थी।
ट्रायल कोर्ट ने 1998 में पिता-पुत्र को हत्या के मामले में दोषी करार देते हुए उम्र कैद की सजा सुनाई थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दोष सिद्धि और सजा को बरकरार रखा। आरोपी पिता-पुत्र ने 2011 में शीर्ष अदालत का रुख किया, हालांकि अपील के लंबित रहने के दौरान 2021 में बेटे की मृत्यु हो गई। मोहम्मद मुस्लिम की उम्र अब लगभग 79 वर्ष है और वह छह साल जेल में रह चुके हैं। वह 2013 से जमानत पर हैं।
पीठ ने कहा, ट्रायल कोर्ट ने इस तथ्य को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया कि न केवल समय बदल दिया गया है, बल्कि 'पीएम' शब्द को भी बदलकर 'एएम' कर दिया गया है..एफआईआर का समय दोपहर 1:50 बजे से पहले करके सुबह 9:00 बजे किया गया है।'' पुलिस के मुताबिक, आरोपियों के साथ जमीन विवाद को लेकर कोर्ट जा रहे अल्ताफ हुसैन की हत्या कर दी गई। पीठ ने कहा कि यदि मृतक अदालत जा रहा था, तो वह सुबह अदालत शुरू होने से पहले जा रहा होता, न कि दोपहर में, वह भी लंच के बाद के सत्र में।
पीठ ने कहा, यह सही ठहराने के लिए कि मृतक अल्ताफ हुसैन सुबह अदालत जा रहे थे, एफआईआर का समय बदलकर सुबह 9.00 बजे कर दिया गया है। अगर घटना सुबह 9.00 बजे से पहले हुई थी, और पुलिस सुबह 10.00 बजे घटनास्थल पर पहुंच गई थी तो उसके तुरंत बाद दोपहर तक शव को मोर्चरी में भेज दिया जाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और मृतक अल्ताफ हुसैन के शव को देर शाम तक मोर्चरी में भेजा गया। तब तक पोस्टमॉर्टम का समय बीत चुका था इसलिए पोस्टमॉर्टम अगले दिन करना पड़ा।'' पीठ ने कहा कि भले ही मौखिक साक्ष्य में अन्य छोटी विसंगतियों को नजरअंदाज कर दिया जाए, पोस्टमॉर्टम करने में देरी, अपराध के हथियारों के नाम में अंतर.. यह एक ऐसा मामला है जहां अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे यह साबित करने में पूरी तरह विफल रहा है कि आरोपी अपीलकर्ताओं ने कोई अपराध किया है।
अपीलकर्ता को बरी करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, उपरोक्त एफआईआर को देखने से स्पष्ट रूप से पता चलता है कि इसमें उल्लिखित दर्ज कराने के समय में कुछ हेरफेर किया गया है। यह नग्न आंखों से स्पष्ट है कि '1' को '9' में बदल दिया गया है। ' और '5' को '0' बनाने के लिए पूर्णांकित किया गया है, जबकि 'पीएम' को 'एएम' में बदल दिया गया है। दूसरे शब्दों में, दोपहर 1:50 बजे को सुबह 9:00 बजे में बदल दिया गया है। यह एफआईआर से पूरी तरह से स्पष्ट है और इस पर दो राय नहीं हो सकती।
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