सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश, बुजुर्ग ससुर का घर बहू करेगी खाली, उनकी जिंदगी में दखल न देने का निर्देश
बुजुर्ग माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों को भरण पोषण और संरक्षण देने के लिए लाया गया कानून बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले परिजनों के लिए सबक सिखाने वाला है।
नई दिल्ली। बुजुर्ग माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों को भरण पोषण और संरक्षण देने के लिए लाया गया कानून बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले परिजनों के लिए सबक सिखाने वाला है। इसका एक उदाहरण यह मामला है। जिसमें एक बुजुर्ग ने इस कानून के तहत साथ रह रही बहू पर सताने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए अपने घर से बाहर निकालने की मांग की थी। एसडीएम ने अर्जी पर संज्ञान लेते हुए बहू को घर खाली करने का आदेश दिया, जिसके खिलाफ बहू पहले हाईकोर्ट गई और फिर सुप्रीम कोर्ट आयी लेकिन दोनों ही अदालतों ने माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण और कल्याण कानून के तहत बहू को घर खाली करने का दिया गया, आदेश रद नहीं किया।
ससुर के ही दूसरे फ्लैट में रहने और उनकी जिंदगी में दखल न देने का बहू को निर्देश
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ससुर की ओर से बहू को अलग दूसरे फ्लैट में रहने का विकल्प दिया गया था। कोर्ट ने जिसे बेहतर प्रस्ताव माना। सुप्रीम कोर्ट ने बहू को आदेश दिया है कि वह अपनी बेटी के साथ उस अलग फ्लैट में रहेगी और सास- ससुर की जिंदगी में दखल नहीं देगी। उस फ्लैट में तीसरे पक्ष के कोई कानूनी अधिकार भी सृजित नहीं करेगी। इस फैसले के बाद बहू को ससुर का वह घर खाली करना पड़ेगा। यह आदेश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और अभय एस ओका की पीठ ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल बहू की याचिका का निपटारा करते हुए गत 24 जनवरी को सुनाया।
उत्तराखंड के हरिद्वार के इस मामले में सेवानिवृत सीपी शर्मा ने माता-पिता व वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण और कल्याण कानून के तहत एसडीएम के समक्ष अर्जी देकर बहू पर सताने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए उसे बाहर निकालने का आग्रह किया था। एसडीएम ने अर्जी स्वीकारते हुए बहू को 30 दिन में घर खाली करने का आदेश दिया। जबकि बहू ने हाईकोर्ट में याचिका दी और आदेश रद करने की मांग की। बहू ने कहा कि उसका पक्ष सुने बगैर आदेश दिया गया है। एसडीएम को ऐसा आदेश देने का अधिकार नहीं है। बहू ने पति के साथ चल रहे वैवाहिक झगड़े का हवाला देते हुए सास ससुर पर सताने का आरोप लगाया था।
उसका कहना था कि वह बहू है। उसे इसी घर में रहने का कानूनी और अधिकार है। हाईकोर्ट ने बहू की याचिका खारिज कर दी। हाईकोर्ट ने माता पिता और वरिष्ठ नागरिकों को संरक्षण देने के कानून के उद्देश्य का जिक्र करते हुए कहा कि इसमें संरक्षण के लिए उचित तंत्र लागू करने की बात कही गई है। इस कानून की धारा 23 में ट्रिब्युनल को वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति के बारे मे आदेश देने का अधिकार है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार में बहू भी आती है। इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट आयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने एसडीएम का आदेश सही करार देते हुए बहू की आठ साल की बेटी के बारे में ससुर के वकील डीके गर्ग से सवाल किया था। कोर्ट ने पूछा था कि ये आठ साल की बच्ची कहां जाएगी, जिस पर ससुर की ओर से अगली सुनवाई पर बहू और पोती को दूसरे फ्लैट में रहने का विकल्प दिया गया। जिसे कोर्ट ने बेहतर विकल्प माना।
बहू की ओर से भी प्रस्ताव स्वीकार किया गया लेकिन वहां से बच्ची का स्कूल दूर होने और ज्यादा खर्च की बात कही जिस पर कोर्ट ने कहा कि स्कूल आने- जाने का अतिरिक्त खर्च वह अपने पति से मांगे। इस मामले में बहू का पति से भरण पोषण का मामला अदालत में विचाराधीन है। पति नोएडा में नौकरी करता है और वहीं रहता है। बहू बेटी को लेकर सास- ससुर और ननद के साथ हरिद्वार में रहती है।