प्रदेश High Court ने सरकारी भूमि कब्जाने वालों को दिए किस्म बताने के आदेश

Update: 2024-06-16 10:30 GMT
Shimla. शिमला। प्रदेश हाई कोर्ट में सरकारी भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने से जुड़ी नीति की वैधता पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने सरकारी भूमि पर बगीचे और भवन निर्माण करने वाले याचिकर्ताओं को दो सप्ताह के भीतर कब्जाई गई भूमि की किस्म बताने के आदेश जारी किए। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर और न्यायाधीश बीसी नेगी की खंडपीठ ने अवैध कब्जाधिरियों को शपथ पत्र दायर कर यह जानकारी देने के आदेश जारी किए। कोर्ट के आदेशानुसार याचिकर्ताओं को बताना होगा कि उनके द्वारा कब्जाई सरकारी भूमि क्या वन भूमि है या शामलात अथवा अन्य किस्म की है। प्रार्थी कृष्ण चंद सारटा ने वर्ष 2014 में मुख्य न्यायाधीश के नाम पत्र लिख कर बताया था कि लोगों ने जंगलों को काटकर घर, खेत व बगीचे बना लिए हैं और वन विभाग की मिलीभगत से इन्हें बिजली पानी के कनेक्शन भी मुहैया करवा दिए गए हैं। कोर्ट ने पत्र पर संज्ञान लिया और वन विभाग को समय समय पर जारी आदेशनुसार अवैध बगीचों को काट कर वन भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त करवाने के आदेश दिए। वन विभाग ने कोर्ट के आदेशानुसार वन भूमि से सेब के पेड़ों को काटने का अभियान छेड़ा, परंतु कुछ कब्जाधारियों ने विभिन्न अदालतों में मामले दायर कर इस मुहिम को लंबा लटकाने की कोशिश की। इसके पश्चात हाई कोर्ट ने ऐसे मामले देख रहे न्यायालयों को तय समय सीमा के भीतर वन भूमि पर अवैध कब्जों से जुड़े मामलों को निपटाने के आदेश दिए। कई बार कोर्ट ने वन विभाग को आदेश दिए कि वह तय सीमा के भीतर वन भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त करवाए।
जब बड़े पैमाने पर वन भूमि पर अतिक्रमण के मामले सामने आए।
सरकार के इस अभियान के खिलाफ लोग लामबंद होने लगे तब सरकार ने कोर्ट में एक आवेदन दायर कर पांच बीघा तक की वन भूमि पर अवैध कब्जों को नियमित करने के लिए एक पॉलिसी के प्रकाशन की इजाजत मांगी थी। पॉलिसी बनने के बाद इसकी वैध्यता को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। सैंकड़ों याचिकाकर्ताओं ने भी विभिन्न प्राधिकरणों द्वारा उन्हें सरकारी भूमि से बेदखल करने के आदेशों को चुनौती दी है। इन सभी मामलों को एक साथ सुनने से पहले हाई कोर्ट ने सभी पक्षकारों की सहमति से निर्णय लिया कि कोर्ट पहले सरकार की वर्ष 2002 में जारी उस नीति से जुड़े मामले को सुनेगी, जिसमें सरकार ने अवैध कब्जों को नियमित करने की एकमुश्त योजना लाई थी। गौरतलब है कि इन मामलों में हाई कोर्ट ने सरकारी भूमि पर पांच बीघा तक अवैध कब्जे को नियमित करने वाली राज्य सरकार की नीति को ध्यान में रखते हुए आदेश जारी कर कहा था कि प्रार्थियों ने अगर इस नीति के मुताबिक अवैध कब्जों को नियमित करने बाबत आवेदन दाखिल नहीं किया है, तो वह तय समय के भीतर उपयुक्त ऑथिरिटी के समक्ष आवेदन दाखिल करें। प्रार्थियों का कहना है कि वे हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम 1954 और राज्य सरकार द्वारा बनाई गई नीति के मुताबिक वे पांच-पांच बीघा कब्जाई गई वन भूमि को नियमित करवाने का हक रखते हैं। राज्य सरकार ने अवैध कब्जों को नियमित करने के विषय में नीति बनाई है कि अगर किसी व्यक्ति द्वारा वन भूमि पर अवैध कब्जा किया है, तो सरकार पांच बीघा तक उस कब्जे को नियमित करने के लिए विचार कर सकती है, लेकिन उसकी अपनी जमीन व अवैध कब्जे में ली गई जमीन दस बीघा से अधिक नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने अवैध कब्जाधारियों को पांच बीघा से अधिक की कब्जाई गई भूमि को स्वत: छोडऩे के आदेश भी दिए थे। कोर्ट ने उन्हें यह भी स्पष्ट करने को कहा था कि यदि सरकार की पांच बीघा तक कब्जाई भूमि को नियमित करने संबंधी नीति को कोर्ट द्वारा गैरकानूनी ठहराया गया, तो वे सारी की सारी कब्जाई गई भूमि बिना शर्त छोड़ देंगे।
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