सामाजिक आर्थिक भिन्नता, मेलजोल का अभाव, परीक्षा का तनाव छात्रों में पैदा कर रहा विकार

Update: 2023-03-19 08:52 GMT

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नई दिल्ली (आईएएनएस)| बीते दिनों चेन्नई, तेलंगाना, राजस्थान, मुंबई, पुणे, वाराणसी आदि समेत अन्य कई शहरों में छात्रों द्वारा आत्महत्या जैसे दुखद कदम उठाने की घटनाएं सामने आई हैं। अलग-अलग शहरों में छात्रों द्वारा की गई आत्महत्या के अलग-अलग कारण हो सकते हैं। लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ बताता है कि लगभग 10 प्रतिशत किशोर वैश्विक स्तर पर मानसिक विकार का अनुभव करते हैं।
अधिक चिंताजनक बात यह है कि मानसिक विकार से जूझ रहे ये युवा कोई सहायता या देखभाल नहीं चाहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि 15-19 वर्ष के व्यक्तियों में आत्महत्या, मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण है। विशेषज्ञों के मुताबिक ये आंकड़े शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक चेतावनी हैं कि छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य विकार एक महत्वपूर्ण संकट है और इसका समाधान आवश्यक है।
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार के मुताबिक इस वर्ष अभी तक आईआईटी और एनआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में छह छात्रों ने आत्महत्या की है। बीते साल 16, वर्ष 2021 में 7, 2020 में 5, 2019 में 16 और 2018 में 11 छात्रों ने आत्महत्या की थी। बीते पांच वर्षों में आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों के कुल 55 छात्रों ने आत्महत्या की है।
हाल ही में आईआईटी मुंबई और आईआईटी चेन्नई के छात्रों द्वारा आत्महत्या किए जाने की दुखद घटनाएं भी सामने आए हैं। आईआईटी मुंबई में एक 18 वर्षीय दलित छात्र ने आत्महत्या की है। छात्र ने हॉस्टल की सातवीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री के मुताबिक अकादमिक तनाव को कम करने के लिए संस्थानों की तरफ से कई कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि छात्रों में पढ़ाई का तनाव कम करने के लिए पाठ्यक्रमों को क्षेत्रीय भाषाओं में पेश किया गया है। क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देते हुए ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन ने 12 अलग-अलग टेक्निकल कोर्स का पूरा सिलेबस क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कर छात्रों के लिए जारी किया है।
मनोचिकित्सा एके भामरी बताते हैं कि कोरोना महामारी के बाद मानसिक विकार से जूझ रहे छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई है। छात्रों में मानसिक स्वास्थ्य विकार के अनेक कारण हैं। इनमें परीक्षा का दबाव, पढ़ाई का तनाव, सहपाठियों से प्रतिस्पर्धा और पारिवारिक दबाव प्रमुख हैं। इसके अलावा, जैसे-जैसे शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए प्रतिस्पर्धा का स्तर बढ़ रहा है, वैसे वैसे छात्रों पर भी दबाव कई गुना बढ़ता जा रहा है।
आईआईएलएम विश्वविद्यालय, गुरुग्राम की कुलपति डॉ सुजाता शाही ने कहा, इन मुद्दों में पारिवारिक समस्याएं, वित्तीय कठिनाइयां, अलगाव की भावनाएं, सामाजिक दबाव, चिंता और पढ़ाई का तनाव शामिल हैं।
छात्र समुदाय की सामाजिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को समझने और उनका समाधान करने के इरादे से, अधिकांश विश्वविद्यालयों ने कॉलेज परिसर में परामर्श प्रकोष्ठ शुरू किया है। यह सक्रिय सुनवाई और समय पर प्रतिक्रिया के माध्यम से छात्रों को पर्याप्त सहयोग प्रदान करता है। साथ ही वेलनेस को प्राथमिकता देने के लिए एक अनुकूल वातावरण की आवश्यकता है।
इस समस्या पर प्रसिद्ध शिक्षाविद सीएस कांडपाल का मानना है छात्रों के लिए वह समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण और तनाव भरा रहता है जब वे किसी परीक्षा में शामिल होने की तैयारी कर रहे होते हैं। दूसरा अवसर वह होता है जब इन परीक्षाओं का रिजल्ट आता है। छात्र इसके बारे में चिंता का अनुभव करते हैं। ऐसी स्थितियों में छात्रों के मानसिक तनाव को व्यक्तिगत प्रेरणा देने की आवश्यकता है।
कभी-कभी, मानसिक स्वास्थ्य इस बात से प्रभावित होता है कि माता-पिता सम्पूर्ण तैयारी चक्र के दौरान घर पर विभिन्न स्थितियों पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया देते हैं। इसकी निगरानी के लिए छात्रों और अभिभावकों के बीच नियमित रूप से बातचीत और संवाद होना चाहिए। कांडपाल के मुताबिक छात्रों को यह समझाने की आवश्यकता है कि जीवन में कोई भी परीक्षा अंतिम नहीं है।
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हंसराज सुमन के मुताबिक कई बार आईआईटी समेत अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों के कुछ छात्र अन्य छात्रों से मेलजोल नहीं बढ़ा पाते हैं और अकेलेपन का शिकार होकर आत्महत्या जैसा जघन्य कदम उठा लेते हैं।
उनका कहना है कि आईआईटी या फिर ऐसे ही अन्य शिक्षण संस्थानों में छात्र देश के विभिन्न हिस्सों से आते हैं। उनकी बोली, रहन-सहन, आर्थिक और पढ़ाई का स्तर एक दूसरे से भिन्न होता है। बहुत थोड़ी संख्या में लेकिन फिर भी कुछ छात्र यहां तनाव में आकर आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं।
प्रोफेसर सुमन के मुताबिक कई मामलों में देखने में आया है कि छात्र पेरेंट्स का दबाव सहन नहीं कर पाते और स्वयं को नाकाम मानते हुए ऐसा कदम उठाते हैं। कुछ मामलों में मनचाहा कोर्स न मिल पाने के कारण भी छात्र बेहद तनाव में चले जाते हैं।
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