Solan. सोलन। रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाने में मददगार कीवी की खेती अब देश के ठंडे क्षेत्रों में भी संभव हो सकती है। बता दें कि एक्टिनीडिया कैलोसा वार स्ट्रीगीलोसा से किसानों को नए अवसर मिलेंगे और यह फल भविष्य में ठंडे क्षेत्रों की आर्थिकी का महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन सकता है। डा. वाईएस परमार बागबानी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के वैज्ञानिकों ने सिक्किम के लाचेन क्षेत्र में कीवी (एक्टिनीडिया कैलोसा वार स्ट्रीगीलोसा) की एक दुर्लभ प्रजाति खोजी है, जो 2,800 मीटर की ऊंचाई पर भी उगाई जा सकती है। अब तक कीवी की खेती सिर्फ 800 से 1500 मीटर की ऊंचाई तक सीमित थी।
लेकिन इस नई खोज से उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भी इसकी खेती के रास्ते खुल सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, कीवी एक उच्च फाइबर युक्त फल है, जो पोषण से भरपूर होता है। जनजातीय समुदाय लंबे समय से इसका सेवन करता आ रहा है, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहती थी। हालांकि, यह जंगली प्रजाति अब लुप्त होने के कगार पर है। इसे संरक्षित करने और व्यावसायिक खेती के लिए अनुकूल बनाने के उद्देश्य से शोध शुरू कर दिया गया है। यदि यह शोध सफल होता है, तो पूर्वोत्तर भारत सहित अन्य ठंडे क्षेत्रों में भी कीवी की खेती को बढ़ावा मिलेगा और किसानों की आर्थिकी मजबूत होगी।