भारत में खाद्य तेल के अंतर को कम कर सकता है सरसों का तेल

Update: 2023-01-04 10:49 GMT

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नई दिल्ली, 4 जनवरी (आईएएनएस)| भारत हमेशा से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था रहा है और आज भी लगभग 70 प्रतिशत जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि अथवा कृषि सम्बंधित कार्यों में लगी हुई है। हालांकि, दुनिया में बाजरा के सबसे बड़ा उत्पादक और गेहूं और चावल के दूसरे सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, भारत खाद्य तेल की दीर्घकालिक कमी का सामना कर रहा है और आयात के माध्यम से मांग-आपूर्ति के अंतर को भरने के लिए मजबूर है।
कुछ ही दशक पहले, भारत का खाद्य तेल आयात एक वर्ष में लगभग 4 मिलियन टन था। यह आंकड़ा दशकों में तेजी से बढ़ा है और अब 14.03 मिलियन टन (31 अक्टूबर 2022 को समाप्त होने वाला तेल वर्ष) है। यह 1.57 लाख करोड़ रूपए के आयात बिल के बराबर है, जो कीमती विदेशी मुद्रा भंडार की भारी कमी का कारण बनता है।
ऐसी आयात निर्भरता गंभीर मुद्रास्फीति संकट की ओर ले जाती है जैसा कि हाल की वैश्विक घाटे से देखा गया है और जिसके कारण खाद्य तेल की कीमतें आम लोगों के लिए लगभग पहुंच से बाहर हो गई थीं।
खाद्य तेलों के लिए मांग-आपूर्ति का अंतर काफी व्यापक है और इसलिए इसे भरना मुश्किल है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, भारत में खाद्य तेलों की वार्षिक मांग लगभग 250 लाख टन है, जबकि घरेलू उत्पादन बहुत कम - बमुश्किल 111.6 लाख टन प्रति वर्ष है। यह कमी 55 से 60 प्रतिशत के बीच बनती है।
यह नोट करना उत्साहजनक है कि भारत सरकार सक्रिय रूप से नीतियां बना रही है और इस असंतुलन को दूर करने का प्रयास कर रही है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन ने तिलहनी फसलों के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाने के उद्देश्य से कई कार्य बिंदुओं को रेखांकित किया है। इनमें खेती के अंतर्गत क्षेत्र को बढ़ाना; तिलहन की उन्नत उच्च उपज वाली किस्मों का विकास करना; उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे कृषि संबंधित सहयोग; उत्पादकता में सुधार के लिए प्रमुख कृषि कार्यों का मशीनीकरण; और तिलहनी फसलों की कटाई के बाद के प्रबंधन के लिए किसानों को सहायता प्रदान करना। इसी दिशा पर, तिलहन और पाम के तेल का राष्ट्रीय मिशन (ठटडडढ)भी तिलहन की आपूर्ति को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है। सरकार सरसों तिलहन उपज का क्षेत्र बढ़ाने में प्रयासरत है जो की एक अच्छा कदम है, हमारा निवेदन है कि इसके लिए उचित स्थान को तलाशा जाये जहां का पर्यावरण भी अनुकूल हो।
सरकार द्वारा शुरू किए जा रहे विविध उपायों द्वारा सरसों को बढ़ावा देना बहुत महत्वपूर्ण है। क्योकि, सरसों एक प्राचीन भारतीय तिलहन है और हमारे देश की कृषि और खान-पान संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा है। यह एक धनदायक और लाभकारी कैश क्रॉप है जो किसानों की आय में योगदान करती है। सरसों का तेल प्राकृतिक घरेलू उपचार, त्वचा की देखभाल, बालों की देखभाल, आयुर्वेद योगों और शरीर की मालिश में भी व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है तथा पोषण के ²ष्टिकोण से काफी स्वास्थवर्धक होता है। सरसों के तेल में काफी आयुर्वेदिक गुण भी पाए जाते हैं। इसका मॉलिक्यूल अकÝउ कैंसर और काफी लाइलाज बिमारियों का इलाज करने में सहायक होता है।
किसी भी सार्थक प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि सरसों के तेल को क्रम वश / स्ट्रक्च र्ड तरीके से बढ़ावा दिया जाए। ऐसा करने के लिए, हमने लगातार जिन प्रमुख उपायों की मुहीम चलाई है, उनमे मस्टर्ड आयल प्रमोशन बोर्ड की स्थापना, जो सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत निर्णयों को लागू करने और सभी हितधारकों - किसानों, निमार्ताओं, मार्केटर्स और उपभोक्ताओं के हितों की देखभाल करें, उनमें से एक है। ऐसी संस्थाएं भी भारतीय सरसों के तेल को, दुनिया भर में बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं, जिस प्रकार मलेशियाई पाम ऑयल बोर्ड, अमेरिकन सोयाबीन एसोसिएशन और स्पेन की इंटरनेशनल ओलिव काउंसिल जैसे निकायों ने सफलतापूर्वक भूमिका निभाई है।
खाद्य तेलों की मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करने की प्रमुख चुनौतियों में से एक है, सरसों की फसल की उपज बढ़ाने और उत्पादकता को पश्चिमी देशों के बराबर लाने के लिए प्रौद्योगिकी, अनुसंधान, वैज्ञानिक नयापन और जमीनी स्तर पर मदद के तरीके खोजना - उपज और गुणवत्ता दोनों मामले में। वर्तमान में जिस संभावित समाधान पर विचार किया जा रहा है वह आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) सरसों है। हालांकि, कृषि वैज्ञानिकों, ईकोलजिस्ट्स, शोधकर्ताओं और नीति निमार्ताओं के बीच स्पष्ट मतभेद हैं। जब तक इस तरह के मतभेदों का समाधान नहीं हो जाता, तब तक जनहित में जीएम सरसों को स्थगित रखना बेहतर होगा।
वास्तव में, हम भी इन परेशानी को कुछ समझते हैं। सरसों के तेल (पी मार्क सरसों का तेल, 1933 से) के एक प्रसिद्ध ब्रांड के निर्माता और मार्केटर के रूप में, हमारी चिंताएं इस बात पर केंद्रित हैं कि जीएम किस्मों में सरसों के तेल की पंजेंसी या तीखापन बरकरार रहेगा या नहीं। पारंपरिक भारतीय उपभोक्ता इस तीखेपन के आदी हैं और यहां तक कि इसे शुद्धता और प्रामाणिकता के उपाय के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। अगर जीएम सरसों का तेल स्वाद, सुगंध और तीखापन देने में विफल रहता है तो ऐसे में उपभोक्ता निराश और असंतुष्ट होंगे।
खाद्य तेल क्षेत्र में मांग-आपूर्ति के अंतर को सक्रिय रूप से दूर करना समय की मांग है। इस संबंध में, हमारी मांग फिर से वही रहेगी कि सरसों और सरसों का तेल निश्चित रूप से भारत को आत्मनिर्भरता, आयात-स्वतंत्रता और राष्ट्रीय गौरव की ओर ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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