निवेशकों को Industrial गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव पर ध्यान देना जरूरी

Update: 2024-07-17 11:54 GMT
BBN. बीबीएन। रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग की संयुक्त सचिव पलका साहनी ने कहा कि निवेशकों को औद्योगिक गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव पर भी ध्यान देना चाहिए, क्योंकि बद्दी में एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध बढ़ रहा है। हालांकि फार्मा उद्योग सकल घरेलू उत्पादन में बड़े पैमाने पर योगदान दे रहा है, लेकिन पर्यावरणीय प्रभाव और भूजल का भी ध्यान रखना चाहिए। उक्त शब्द संयुक्त सचिव पलका साहनी ने बद्दी में आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान कहे। सममेलन का आयोजन रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल्स विभाग (डीओपी) द्वारा पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (पीएचडीसीसीआई) के सहयोग से किया गया था। सम्मेलन में गुड मैन्यूफैक्चरिंग प्रैक्टिसिज (जीएमपी) और फार्मास्युटिकल प्रौद्योगिकी उन्नयन सहायता योजना पर चर्चा हुई। केंद्रीय मंत्रालय की संयुक्त सचिव पलका साहनी ने कहा बद्दी के फार्मा उद्योग ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी एक अलग पहचान बनाई है, दवा निर्माताओं को थोक दवाओं का निर्माता बनना होगा और अन्य देशों पर निर्भर नहीं रहना होगा, साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि दवाएं गुणवत्ता के किसी भी स्तर पर विफल न हों। उन्होंने उन्होंने निवेशकों से फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी अपग्रेडेशन असिस्टेंस स्कीम (पीटीयूएएस) का विकल्प चुनने का आग्रह किया,उन्होंने बताया कि
जून तक 100 आवेदन प्राप्त हुए हैं।
उन्हें उम्मीद है कि वर्ष के अंत तक 300 एमएसएमई उद्यमी इस योजना के लिए आवेदन करेंगे। साहनी ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था में फार्मास्युटिकल क्षेत्र की प्रमुख भूमिका है, जहां जीएमपी और गुणवत्ता आश्वासन मानदंडों को अपनाने से इसकी निर्यात भागीदारी बढ़ सकती है। उन्होंने एमएसएमई से अपने निर्यात उन्मुखीकरण को बढ़ाने और हरोली में बनने वाले एक हजार करोड़ रुपए के बल्क ड्रग पार्क में निवेश करने का आग्रह किया। एमएसएमई इकाइयां बल्क ड्रग पार्क में निवेश करके अपशिष्ट उपचार संयंत्रों, परीक्षण प्रयोगशालाओं जैसी सामान्य सुविधाओं पर खर्च को बचाकर अपनी दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि हिमाचल से 70-80 इकाइयां इस पार्क में निवेश करेंगी। उन्होंने जोर देते हुए कहा कोविड काल ने सक्रिय दवा सामग्री (एपीआई) पर देश की निर्भरता को उजागर किया है, विटामिन बी और क्लैवुनालेट जैसे एपीआई जैसे प्रमुख प्रारंभिक सामग्री अनुपलब्ध हैं। एमएसएमई को अन्य देशों पर निर्भरता कम करने के लिए थोक दवा निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने दवा निर्माताओं से अपने उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कहते हुए कहा की भारत की पहचान गुणवत्ता वाले एमएसएमई के साथ होनी चाहिए। एमएसएमई को आत्मनिर्भरता बनाने के लिए नवाचार को अपनाना चाहिए और थोक दवा के साथ-साथ वैक्सीन निर्माण भी शुरू करना चाहिए।
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