आईआईटी ने वस्त्र उद्योग के विषैले अपशिष्ट जल के रीयूज की प्रक्रिया विकसित की

Update: 2023-01-29 11:30 GMT

फाइल फोटो

नई दिल्ली(आईएएनएस)| वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल में तरह-तरह के सिंथेटिक रंग पाए जाते हैं जो मनुष्य और पर्यावरण के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होते हैं। इसमें सिंथेटिक डाई भी आसानी से दिख जाती है और यह मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए जहर का काम करता है। इसका समाधान ढूंढते हुए आईआईटी जोधपुर के शोधकर्ताओं ने वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल उपचार और पुन: उपयोग के लिए दो चरण की प्रक्रिया विकसित की है। इस तकनीक के कई फायदे हैं, जैसे प्रदूषकों का पूरा डिग्रेडेशन होना और कोई सेकेंडरी प्रदूषण नहीं होना। इस अभूतपूर्व तकनीक से वस्त्र उद्योगों से निकलने वाले रंगीन अपशिष्ट जल को प्रॉसेस किया जा सकता है और उपचार के बाद यह पानी विभिन्न कार्यों में दोबारा उपयोग भी किया जा सकता है।
इस उपचार के तहत पहले चरण में सैम्पल को इलेक्ट्रोकेमिकल प्रॉसेस करना शामिल है। इसके बाद दूसरे चरण में कार्बन नैनोफाइबर पर विकसित जैडएनओ कैटरपिलर का उपयोग कर रियल टाइम में फोटोकैटलिटिक डिग्रेडेशन किया जाता है।
आईआईटी जोधपुर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अंकुर गुप्ता के साथ उनके शोध विद्वान गुलशन वर्मा और प्रिंस कुमार राय और कार्ल्सरूहे प्रौद्योगिकी संस्थान, जर्मनी के प्रो. जान गेरिट कोरविंक और डॉ. मोंसुर इस्लाम ने वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल की प्राकृतिक जलाशयों में निकासी से पहले दो चरण में उपचार करने की इस प्रक्रिया का पता लगाया है। शोध के निष्कर्ष मटीरियल साइंस और इंजीनियरिंग जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।
इस शोध की अहमियत बताते हुए आईआईटी जोधपुर में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अंकुर गुप्ता ने कहा, जहां भी संभव हो, अपशिष्ट जल के पुनर्चक्रण और दुबारा उपयोग के बारे में सोचना जरूरी है।
बड़ी संख्या में स्टील और वस्त्र उद्योग भारी मात्रा में दूषित पानी की निकासी करते हैं। इस समस्या का समाधान करना अत्यावश्यक है। टेक्ससटाइल एफ्लुएंट्स (टीई) में डिग्रेडेबल ऑर्गेनिक्स, हेवी मेटल्स, डाई, सर्फेक्टेंट और पीएच-नियंत्रित रसायन आदि प्रदूषक पाए जाते हैं। भारी मात्रा में पानी उपयोग करने वाले उद्योगों में एक वस्त्र उद्योग है और इसके अपशिष्ट जल में जहरीले कम्पाउंड, मैलापन, हाई कलर, इनऑर्गेनिक और ऑर्गेनिक कम्पाउंड सहित जटिल कम्पोजिशन पाए जाते हैं। सामान्य तौर पर जिस टाइप और क्वालिटी का टीई (रिएक्टिव डाई) उपयोग किया जाता है उसके परिणामस्वरूप अपशिष्ट जल में प्रदूषण और रंग पाए जाने का ज्यादा जोखिम है। चूंकि वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल की संरचना में बहुत भिन्नताएं होती हैं इसलिए उपचार की अधिकतर प्रचलित प्रक्रियाएं (वर्षा, आयन एक्सचेंज, मेंब्रेन फिल्टरिंग आदि) कामयाब होती नहीं दिख रही हैं। इसलिए इस समस्या के निदान के लिए वैकल्पिक समाधान समय की मांग है।
शोध की विशिष्टता और मुख्य विशेषताएं यह है कि यह एकीकृत प्रक्रिया कपड़ों के सैम्पल से कठोर रंग कम करने में बेहतर होने के साथ हाई ऑर्गेनिक मैटर हटाने में सक्षम है। फेसाइल फैब्रिकेशन प्रक्रिया से जैडएनओ कैटरपिलर पैदा किया जाता है जो वाष्प - तरल - ठोस विधि से सी सब्सट्रेट के कार्बन नैनोफाइबर पर विकसित होते हैं।
फोटो-कैटेलिटिक डिकलराइजेशन की प्रक्रिया से हरापन लिए पीले रंग को रंगहीन (99 प्रतिशत) करने में लगभग 240 मिनट लगते हैं। इसके अतिरिक्त, वस्त्र उद्योग के अपशिष्ट जल से काफी मात्रा में टीएसएस और टीडीएस भी निकाल दिए जाते हैं।
इसके लिए इलेक्ट्रोकेमिकल और फोटोकैटलिटिक डिग्रेडेशन प्रक्रिया का एकीकरण किया गया। इतना ही नहीं, जैडएनओ कैटरपिलर की हाइड्रोफोबिक प्रकृति और इलेक्ट्रोकेमिकल प्रॉसेसिंग के मिलने से उद्योग के अपशिष्ट जल उपचार के बारे में अतिरिक्त शोध और उपयोग करने का नया अवसर सामने आया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रयोगशाला में प्रमाणित इस कॉन्सेप्ट के व्यापक उपयोग से उद्योग से निकले अपशिष्ट जल को प्रॉसेस और फिर दुबारा उपयोग किया जा सकता है।
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