Shimla. शिमला। हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने शहादत के सम्मान स्वरूप शहीद की पत्नी को रोजगार न देने पर प्रदेश सरकार पर 25 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई। कोर्ट ने शहीद की पत्नी को रोजगार स्वरूप भाषा शिक्षक के पद पर नियुक्ति प्रदान करने और इससे उपजे सभी सेवालाभ देने के आदेश भी दिए। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने सरकार द्वारा इस मामले में बरते गए रवैए पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुकंपा नीति के आधार पर मृतक कर्मचारी के आश्रितों को नियुक्ति देने और शहीद सैनिकों के पात्र आश्रितों को रोजगार सहायता प्रदान करने की पेशकश के बीच अंतर किया जाना चाहिए। कोर्ट ने याचिका को स्वीकारते हुए सरकार के रवैए पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के दिवंगत पति द्वारा कत्र्तव्य के निर्वहन में दिए गए अपने जीवन के चरम बलिदान के मद्देनजर राज्य सरकार द्वारा याचिकाकर्ता के दिवंगत पति की शहादत का सम्मान करने के लिए कम से कम इतना तो किया ही जा सकता था।
याचिकाकर्ता को इस अनावश्यक मुकदमे में घसीटने के बजाय उसे भाषा शिक्षक का पद सम्मानजनक तरीके से प्रदान किया जाता। कोर्ट ने कहा कि यह अदालत देश के शहीद सैनिक की पत्नी के साथ इस तरह का व्यवहार करने के प्रतिवादियों के रवैये की निंदा करता है। कोर्ट ने 23 अप्रैल, 2016 को सरकार द्वारा जारी शहीद के आश्रितों को रोजगार देने से जुड़ी नीति का अवलोकन करने पर पाया कि इस नीति में ‘अनुकंपा’ शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा कि नीति में ‘अनुकंपा’ शब्द का प्रयोग इस कारण नहीं किया गया है कि शहीद सैनिकों के पात्र आश्रितों को रोजगार देने की पेशकश स्वयं अनुकंपा के कारण नहीं है, बल्कि यह उस शहीद के प्रति सम्मान और उस कत्र्तव्य के कारण है जिसने अपने कत्र्तव्य के निर्वहन में अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। मामले के अनुसार याचिकाकर्ता चंचलो देवी के शहीद पति राजेंद्र गौतम ने नदी में डूब रही एक वृद्ध महिला की जान बचाते हुए अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया। याचिकाकर्ता के पति ने नदी में छलांग लगा दी और वृद्ध महिला की जान बचाने के दौरान उनकी जान चली गई।