गौहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार के फैसले को ठहराया सही- 'सरकारी मदरसों में नहीं दे सकते मजहबी शिक्षा'

गौहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसके तहत राज्य के सभी मदरसों (सरकार द्वारा वित्त पोषित) को सामान्य स्कूलों में बदलने का आदेश दिया गया था।

Update: 2022-02-05 18:47 GMT

गुवाहाटी। गौहाटी हाई कोर्ट ने असम सरकार के उस फैसले को सही ठहराया है, जिसके तहत राज्य के सभी मदरसों (सरकार द्वारा वित्त पोषित) को सामान्य स्कूलों में बदलने का आदेश दिया गया था। राज्य सरकार ने यह आदेश असम रिपीलिंग एक्ट--2020 के तहत दिया था, जिसे हाई कोर्ट ने सही ठहराया है। कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि सरकारी मदरसे मजहबी शिक्षा नहीं दे सकते।

सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों के लिए आदेश
मुख्य न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि विधायिका और कार्यपालिका की ओर से जो बदलाव किया गया है। वह केवल सरकारी सहायता प्राप्त मदरसों के लिए है। न कि निजी अथवा सामुदायिक मदरसों के लिए। इस निर्णय के साथ हाई कोर्ट ने एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया। यह याचिका पिछले साल 13 व्यक्तियों की ओर से दाखिल की गई थी। हाई कोर्ट ने 27 जनवरी को मामले पर सुनवाई पूरी करते हुए अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
संविधान के अनुकूल नहीं मजहबी शिक्षा
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पूरी तरह राज्य द्वारा संचालित मदरसों में मजहबी शिक्षा संविधान के अनुच्छेद 28(1) के अनुकूल नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया प्रांतीय मदरसों के शिक्षकों की नौकरी नहीं जाएगी। अगर आवश्यक हुआ तो उन्हें दूसरे विषषय पढ़ाने के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले से संबंधित सभी आदेशों को सही ठहराया। वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा 2020 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री के रूप में असम रिपील एक्ट लाए थे। उन्होंने हाई कोर्ट के फैसले के बाद ट्वीट किया कि यह ऐतिहासिक फैसला है। इस बिल को 30 दिसंबर, 2020 को पारित किया गया था। इसके जरिये असम मदरसा शिक्षा अधिनियम, 1995 को रद कर दिया गया था।
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