कोविड के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई की शुरुआत इस वजह से हुई थी कि बच्चों की पढ़ाई न रूके, लेकिन बच्चों ने पढ़ाई के बाद अपनी बोरियत दूर करने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल गेम खेलने और टीवी की तरह भी किया। गेम खेलने की तो ऐसी आदत लगी कि अब ये एक तरह का डिसऑर्डर बन चुकी है। कई बच्चों ने तो इसके चलते खतरनाक कदम भी उठाए हैं। इस डिसऑर्डर का पता पेरेंट्स को तब लगा जब बच्चा बात-बात पर मोबाइल मांगने की जिद करने लगा। रात-रात भर जागने लगा, तो आज का लेख इस डिसऑर्डर के ऊपर है।
पहले जहां ये बीमारी 18 साल से ज्यादा उम्र के युवाओं में देखने को मिलती थी वहीं अब छोटे बच्चे भी इसकी गिरफ्त में आ रहे हैं। गेमिंग डिसऑर्डर को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन ने इंटरनेशनल डिजीज की कैटेगरी में रखा है।
क्या है गेमिंग डिसऑर्डर?
गेमिंग डिसऑर्डर एक मानसिक बीमारी है, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी मानता है। गेमिंग डिसऑर्डर की बीमारी तब होती है जब व्यक्ति गेम खेलने का आदी हो जाता है, चाहकर भी उसकी गेम खेलने की आदत नहीं छूट पाती। गेम खेलने की इस लत के कारण उसका काम, नींद, डाइट यों कहें कि पूरी लाइफस्टाइल प्रभावित होने लगती है। और ज्यादा सीधे शब्दों में समझा जाए, तो जब गेमिंग की आदत व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन, रिश्तों, काम, पढ़ाई या अन्य महत्वपूर्ण चीज़ों को प्रभावित करने लगे तो समझ जाएं कि आप हो चुके हैं गेमिंग डिसऑर्डर का शिकार।
गेमिंग डिसऑर्डर का प्रभाव हर व्यक्ति में अलग-अलग होता है, जिसमें से कुछ कॉमन हैं, उनके बारे में जानेंगे।
1- सामाजिक रूप से अलग हो जाना
बहुत ज्यादा गेम खेलने की आदत से पीड़ित व्यक्ति समाजिक रूप से कट सकता है और परिवार, दोस्त और साथियों से दूर हो सकता है। दरअसल व्यक्ति हर वक्त मोबाइल में गेम खेलने में व्यस्त रहता है, उसके अपने आसपास क्या हो रहा है कई बार इसकी भी सुधबुध नहीं होती। एक वक्त बाद ऐसे व्यक्ति अकेलेपन का शिकार हो जाते हैं। जो आगे चलकर डिप्रेशन की भी वजह बन सकता है।
2- पेशेवर और शैक्षिक समस्याएं
हर वक्त गेम खेलने की आदत से रोजमर्रा के कामों पर प्रभाव पड़ता है। इस डिसऑर्डर से प्रोडक्टिविटी में कमी, खराब परफॉर्मेंस, अनुपस्थिति या महत्वपूर्ण कामों की अनदेखी हो सकती है।.
3- भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्या
गेमिंग डिसऑर्डर भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं जैसे एंग्जाइटी, डिप्रेशन, चिड़चिड़ापन और कम आत्मसम्मान में कमी जैसी समस्याओं को भी बढ़ावा देता है। अगर कोई व्यक्ति पहले से ही किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहा है, तो गेमिंग डिसऑर्डर उसकी मानसिक स्थिति को और बदतर बना सकता है।
4- शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्या
गेमिंग में बहुत ज्यादा समय बिताने से व्यक्ति आलसी हो सकता है। फिजिकल एक्टिविटी कम होती जाती है, व्यक्ति डाइट पर ध्यान नहीं देता और नींद भी डिस्टर्ब हो सकती है। इन सब चीजों के होने से मोटापा, मस्कुलोस्केलेटल समस्याएं, हृदय संबंधी समस्याओं के साथ ही अन्य दूसरी बीमारियों के होने का खतरा भी बढ़ जाता है।
5- आर्थिक समस्या
कुछ केस मे गेमिंग डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति आर्थिक जिम्मेदारियों मसलन पैसे कमाने से ज्यादा गेम को खेलने को तवज्जो दे सकता है, जिससे उसे पैसे की किल्लत का सामना करना पड़ सकता है।
यह ध्यान देने वाली बात है कि गेमिंग डिसऑर्डर का प्रभाव और गंभीरता अलग अलग व्यक्तियों मे अलग अलग हो सकती है। अगर आप या आपका कोई परिचित गेमिंग से संबंधित लत या परेशानी का सामना कर रहा है, तो उसे मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से मदद लेने की सलाह दी जाती है।
कैसे करें बचाव?
बच्चे को मोबाइल और लैपटॉप से दूर रखने की कोशिश करें।
- बच्चे आपको डिस्टर्ब न करें इसलिए उन्हें मोबाइल न पकड़ाएं।
- बच्चों को मोबाइल दिया है तो उसकी मॉनिटरिंग करते रहें।
- अगर किसी साइट पर ज्यादा वक्त गुजार रहा है, तो अलर्ट हो जाएं।
- बच्चों के साथ खुद शतरंज, लूडो या आउटडोर गेम्स खेलें।
- बेवजह के एप न डाउनलोड हों, रात को बच्चों को मोबाइल न दें।