रबी की फसलों पर खराब मौसम के कारण कई फसलों को नुकसान होने की संभावना है।
मौसम के बनते बिगड़ते मिजाज से खेतों में खड़ी रबी सीजन की फसलों पर असर पड़ना तय है। पश्चिमी विक्षोभ के चलते समूचे पश्चिमोत्तर और मध्य भारत में अगले कई दिनों तक हल्की बारिश के साथ के साथ तापमान के घटने का अनुमान है।
मौसम के बनते बिगड़ते मिजाज से खेतों में खड़ी रबी सीजन की फसलों पर असर पड़ना तय है। पश्चिमी विक्षोभ के चलते समूचे पश्चिमोत्तर और मध्य भारत में अगले कई दिनों तक हल्की बारिश के साथ के साथ तापमान के घटने का अनुमान है। आसमान में छाए बादलों की वजह से कई फसलों को नुकसान होने की आशंका बढ़ गई है। हालांकि बारिश होने और तापमान घटने का फायदा रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं को होनी तय मानी जा रही है। बरसात के एक सप्ताह तक लंबा ¨खचने और अच्छी धूप न होने की वजह से दलहनी व तिलहनी फसलों को नुकसान होने के आसान बने हुए हैं।
दलहनी व तिलहनी फसलों के नुकसान होने के आसार
रबी सीजन की फसलों में आलू, सरसों, हरी मटर और अन्य सब्जियां खेतों में खड़ी हैं जिसके लिए बुद्धवार से शुरु हुई बरसात भारी पड़ सकती है। इससे जहां पत्तेदार सब्जियां सूख सकती हैं, वहीं आलू और सरसों की फसल पर पाले का विपरीत असर पड़ सकता है। दलहन की प्रमुख फसल चना को भी बारिश का ज्यादा पानी नुकसान पहुंचा सकता है।
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर एसके झा ने बताया कि हो रही बरसात से नमी की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे खेतों में इन फसलों पर फंगस (फफूंद) विकसित हो सकते हैं। चना, सरसों व मटर की फसल पर इसका प्रकोप बढ़ सकता है। कई तरह के व्हाइट रस्ट जैसी संक्रामक बीमारी फसल को भी लग सकती है। लंबे समय तक धूप न होने से भी ऐसी फसलें प्रभावित होती हैं। इस दौरान अथवा इसके बाद तापमान घटने की दशा में पाला पड़ने की आशंका बनी रहती है, जिससे आलू समेत ज्यादातर फसलों में झुलसा लग जाता है।
पश्चिमोत्तर और मध्य भारत में बारिश के साथ ठंड के बढ़ने का अनुमान
फसलों की पत्तियां गल अथवा सूख जाती हैं। जिन फसलों में फूल आ गए हैं, उन्हें ज्यादा नुकसान हो सकता है। लेकिन सरसों की 60 फीसद फसल में फूल के बाद दाने पड़ने की स्थिति आ चुकी है। राजस्थान के भरतपुर जोन में तकरीबन आठ से 10 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती होती है। बारिश और आसमान में बादलों के छाये रहने से मधुमक्खियां भी निष्कि्रय हो जाती हैं। दूसरी ओर रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की खेती को इसका बहुत फायदा मिलेगा।
गेहूं व जौ अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉक्टर जीपी सिंह का कहना है कि मौसम की यह बारिश गेहूं की फसल के लिए सोने की बूंदे साबित होंगी। एक ओर तो किसानों को गेहूं की फसल के लिए अगली ¨सचाई की जरूरत नहीं पड़ेगी, वहीं ठंड बढ़ने की वजह से फसल में ज्यादा कल्ले फूटेंगे यानी ज्यादा बालियां लगेंगी। इससे गेहूं की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में उत्साहजनक वृद्धि होगी। धीमी बारिश की बूंदें सीधे मिट्टी में समा रही हैं, जिससे फसल को फायदा होगा।
डॉक्टर सिंह ने बताया कि गेहूं के लिए सामान्य तौर पर न्यूनतम पांच और अधिकतम 18 से 22 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत होती है। दिन और रात के तापमान का औसत 13 से 14 डिग्री सेल्सियस होना चाहिए, जो गेहूं की खेती के लिए आदर्श होती है। गेहूं की बोआई सामान्य तौर पर पूरी हो चुकी है। कुल बोआई रकबा 3.26 करोड़ हेक्टेयर पहुंच चुका है। इसमें उत्तर प्रदेश में 91 लाख हेक्टेयर, मध्य प्रदेश, 81 लाख हेक्टेयर, पंजाब 34 लाख हेक्टेयर, हरियाणा 23 लाख हेक्टेयर और राजस्थान में 31 लाख हेक्टेयर में बोआई हो चुकी है। कृषि वैज्ञानिकों की नजर मौसम के बदले मिजाज पर टिकी हुई है।