बिल पर राज्यसभा में चर्चा का जवाब देते हुए गृह राज्यमंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा कि 1991 में संसद ने 69वें संविधान संशोधन के जरिए दो नए आर्टिकल 239-ए और 239-बी लाई। उन्होंने कहा कि इस अमेंडमेंट बिल से दिल्ली सरकार के किसी भी अधिकार पर आंच नहीं आएगी। उन्होंने कहा कि दिल्ली के एलजी की शक्तियां राज्यों के राज्यपालों से अलग है। रेड्डी ने कहा कि संविधान के तहत दिल्ली सरकार को जो अधिकार मिले हैं, उसमें से एक को भी मोदी सरकार इस बिल के जरिए नहीं ले रही है। उन्होंने कहा कि मूल कानून में ही कहा गया है कि दिल्ली में सरकार का मतलब एलजी है। रेड्डी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच ने भी अपने फैसले में एलजी को दिल्ली का प्रशासनिक प्रमुख बताया है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा कि दिल्ली सरकार किसी भी प्रस्ताव, अजेंडा या मीटिंग और उसमें लिए गए फैसलों को एलजी को बताएगी।
जिनका चुनी हुई सरकारों को बर्खास्त करने का इतिहास, वह प्रवचन न दें: राकेश सिन्हा
राज्यसभा के मनोनीत सदस्य राकेश सिन्हा ने कांग्रेस की सरकारों के दौरान राष्ट्रपति शासन के जरिए चुनी हुई सरकारों को हटाने का मुद्दा उठाते हुए पलटवार किया। उन्होंने कहा कि पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में 8 बार, इंदिरा गांधी के शासनकाल में 50 बार राष्ट्रपति शासन लगा। नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में 12 और 11 बार राष्ट्रपति शासन लगा। राजीव गांधी के शासनकाल में 6 बार राष्ट्रपति शासन लगा। अपवाद में सिर्फ लाल बहादुर शास्त्री की सरकार है, जिसके कार्यकाल में सिर्फ एक बार राष्ट्रपति शासन लगा। सिन्हा ने कहा कि जिस देश में चुनी हुई सरकारों को आप दूध की मक्खी की तरह निकालकर फेंकते रहे और आज यहां सदन में बैठकर लोकतंत्र पर प्रवचन दे रहे हैं।
डेरेक ओ ब्रायन ने बाकी दलों से भी बिल का विरोध करने की अपील की
टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने सरकार पर संविधान की धज्जियां उड़ाने का आरोप लगाते हुए बिल का विरोध किया। उन्होंने कहा कि बिल इतना अहम है कि उन्होंने बंगाल विधानसभा चुनाव के प्रचार से खुद को दूर कर इसका विरोध करने के लिए सदन में आए हैं। ब्रायन ने एआईएडीएमके, टीआरएस, बीजू जनता दल जैसे दलों से भी इस बिल के विरोध में आने की अपील की। उन्होंने यह भी कहा कि खुद बीजेपी के सदस्यों को भी इस बिल के खिलाफ आना चाहिए क्योंकि यह किसी पार्टी की लड़ाई नहीं है, बल्कि संविधान बचाने की लड़ाई है। डेरेक ओ ब्रायन अपनी स्पीच के दौरान सत्ताधारी दल के सदस्यों की तरफ से की जा रही टिप्पणियों पर ऐतराज जताया। उपसभापति हरिवंश ने भी सभी सदस्यों से टोका-टाकी से बचने की अपील की। बाद में बीजेपी के जेपी नड्डा ने ब्रायन को जवाब देते हुए कहा कि जब वित्त मंत्री बोल रही थीं तो टीएमसी के सदस्य हंगामा कर रहे थे, नारे लगा रहे थे। तब ठीक था और अब नहीं, ऐसे नहीं चलेगा।
आरजेडी के मनोज झा ने भी सभी दलों से इस बिल का विरोध करने की अपील की। उन्होंने कहा कि जो दल आज यह सोच रहे हैं कि यह तो दिल्ली का मामला है, उनसे जुड़ा नहीं है तो कल उनका भी नंबर आएगा। समाजवादी पार्टी के वीपी निषाद, अकाली दल के नरेश गुजरात और राज्यसभा की प्रियंका चतुर्वेदी ने भी बिल को दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियों को कम करने वाला बताया।
बीजेडी का वॉकआउट
बीजेडी के धीरज प्रसन्ना ने बिल को चुनी हुई सरकार की शक्तियों को कमजोर करने वाला तो बताया लेकिन उन्होंने कहा कि उनका दल इस बिल पर कोई पार्टी नहींं बनना चाहता। इसके बाद उन्होंने बीजू जनता दल के वॉकआउट का ऐलान किया और बीजेडी सदस्य सदन से बाहर चले गए
खड़गे का सवाल- तो चुने हुए प्रतिनिधियों की क्या जरूरत
इससे पहले, विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि इस विधेयक के जरिए सरकार चुने हुए प्रतिनिधियों के अधिकारों को छीनकर उपराज्यपाल को देना चाहती हैं। इतना ही नहीं सरकार उपराज्यपाल को ही सरकार बनाना चाहती है। उन्होंने सवाल किया कि ऐसे में चुने हुए प्रतिनिधियों की क्या आवश्यकता है। इस विधेयक को उन्होंने संविधान के खिलाफ बताया और कहा कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र शासन में कोई भी बदलाव संविधान संशोधन के जरिए ही किया जा सकता है लेकिन सरकार इसे एक सामान्य संशोधन विधेयक के रूप में लेकर आई है।
नेता प्रतिपक्ष ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार पिछले दरवाजे से छद्म रूप से दिल्ली सरकार चलाने के लिए सभी कार्यकारी शक्तियां अपने पास रखना चाहती है। लोकतंत्र के बारे में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कुछ पंक्तियों को कोट करते हुए उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह लोकतंत्र को खत्म करना चाहती है।
AAP सदस्य संजय सिंह ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि BJP दो बार दिल्ली विधानसभा चुनाव हार गई थी। इसलिए केंद्र सरकार यह विधेयक लाई है। उन्होंने कहा कि विधेयक का विरोध कर वह दिल्ली के दो करोड़ लोगों के लिए 'न्याय' मांग रहे हैं। दो बार स्थगित हुई राज्यसभा की कार्यवाही
GNCTD Bill पर विपक्ष के हंगामे के कारण राज्यसभा की कार्यवाही शाम करीब छह बजे 10 मिनट के लिए स्थगित हुई। सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तब 5 मिनट बाद ही फिर हंगामे की वजह से 10 मिनट के लिए स्थगित हो गई। शाम 6 बजकर 25 मिनट पर सदन की कार्यवाही शुरू हुई और कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने बिल को गैर-संवैधानिक बताते हुए उसका विरोध किया।
बिल सुप्रीम कोर्ट के आदेश की भावना को लागू करने के लिए आया है: भूपेंद्र यादव केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि मूल कानून में संशोधन किसी भी तरह से असंवैधानिक नहीं है। उन्होंने कहा कि मूल कानून को कांग्रेस 1991 में लेकर आई थी, यह नया नहीं है। रेड्डी ने कहा कि इस संशोधन को इसलिए लाया गया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि दिल्ली सरकार सही से काम करे। बीजेपी के भूपेंद्र यादव ने भी कहा कि बिल नया नहीं है। मूल कानून को कांग्रेस 1991 में लाई थी। यादव ने विधेयक का बचाव किया और विपक्ष के आरोपों को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह संविधान की भावना के अनुरूप है। उन्होंने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार कोई फैसला लेने से पहले उपराज्यपाल को नहीं बताती थी और 'छुपकर' फैसले लेकर वह संघीय व्यवस्था का अपमान करती रही है। इसलिए सरकार यह विधेयक लेकर आई है। उन्होंने कहा कि इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय की भावना को लागू करने के लिए विधेयक में संशोधन लाए गए हैं।
हंगामे की वजह से 2 बार स्थगित हुई सदन की कार्यवाही
GNCTD Bill पर विपक्ष के हंगामे के कारण राज्यसभा की कार्यवाही शाम करीब छह बजे 10 मिनट के लिए स्थगित हुई। सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू हुई तब 5 मिनट बाद ही फिर हंगामे की वजह से 10 मिनट के लिए स्थगित हो गई। शाम 6 बजकर 25 मिनट पर सदन की कार्यवाही शुरू हुई और कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी ने बिल को गैर-संवैधानिक बताते हुए उसका विरोध किया।
इस बिल के अनुसार, दिल्ली में सरकार का मतलब 'एलजी' होगा और विधानसभा से पारित किसी भी विधेयक को मंजूरी देने की ताकत उसी के पास होगी। बिल में यह भी प्रवाधान किया गया है कि दिल्ली सरकार को शहर से जुड़ा कोई भी फैसला लेने से पहले लेफ्टिनेंट जनरल से सलाह लेनी होगी। इसके अलावा विधेयक में कहा गया है कि दिल्ली सरकार अपनी ओर से कोई कानून खुद नहीं बना सकेगी। विधेयक के उद्देश्यों में कहा गया है कि विधेयक विधान मंडल और कार्यपालिका के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों का बढ़ाएगा। साथ ही निर्वाचित सरकार और राज्यपालों के उत्तरदायित्वों को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के शासन की संवैधानिक योजना के अनुरूप परिभाषित करेगा।