बंगाल और असम में नरम हिंदुत्ववादी रणनीति अपना रहे BJP विरोधी दल, कर रहे एकमुश्त मुस्लिम मत हासिल करने की कोशिश

पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव में खुद को धर्मनिरपेक्ष मानने वाले सियासी दलों में मुस्लिम मत हासिल करने की होड़ जरूर है,

Update: 2021-03-23 17:44 GMT

पश्चिम बंगाल और असम के चुनाव में खुद को धर्मनिरपेक्ष मानने वाले सियासी दलों में मुस्लिम मत हासिल करने की होड़ जरूर है, लेकिन वे नरम हिंदुत्ववादी रणनीति के साथ विपरीत ध्रुवीकरण से भी बचने की कोशिश भी कर रहे हैं। बंगाल और असम दोनों जगहों पर भाजपा विरोधी दलों की रणनीति यही है कि वे एकमुश्त मुस्लिम मत हासिल करके निर्णायक बढ़त बनाने में कामयाब हों। साथ ही भाजपा के पक्ष में हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण रोकने के लिए मंदिर मठ को साधने के प्रयास हो रहा है। तुष्टीकरण के आरोप और कथित मुस्लिम समर्थक दल की छवि से बचने की कवायद भी नजर आ रही है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बंगाल में ममता बनर्जी हों या असम में कांग्रेस, भाजपा के पक्ष में ध्रुवीकरण रोकने की पूरी कवायद कर रहे हैं। ममता बनर्जी ने खुद को हिंदू बताया था। चंडीपाठ भी किया था, लेकिन सीएए का विरोध कर बंगाल में मुस्लिम वर्ग को अपने पक्ष में साधने की कोशिश भी की। जानकारों का कहना है कि ममता बंगाली अस्मिता और स्वाभिमान के आधार पर धर्म विशेष का ध्रुवीकरण टालने की पूरी कोशिश कर रही हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि अगर ध्रुवीकरण होता है तो इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है।
दूसरी तरफ, कांग्रेस ने बंगाल और असम दोनों जगहों पर ऐसे दलों से गठबंधन किया है जिनको कथित तौर पर मुस्लिम वर्ग का समर्थक माना जाता है। असम में एआईयूडीएफ और बंगाल में आईएसएफ से कांग्रेस के गठजोड़ को लेकर भाजपा निशाना भी साधती रही है। इस छवि को तोड़ने के लिए असम में कांग्रेस नेताओ ने मुद्दों का सहारा लिया है। साथ ही खुद को आदिवासी संस्कृति से जोड़ने के लिए उनके बीच जाने से लेकर मंदिरों का भी भ्रमण किया है।
प्रियंका गांधी ने पहले चरण में असम के प्रचार में प्रवेश करते ही पहले कामाख्या देवी मंदिर में पूजा की थी और उन्होंने असम के लखीमपुर में स्थानीय लोगों से मुलाकात की और उनके साथ ट्राइबल डांस भी किया। पार्टी ज्यादातर इलाको में गठबंधन के साथ नही बल्कि अकेले प्रचार कर रही है। एआईयूडीएफ नेता अपने प्रभाव वाले इलाकों में ही सीमित हैं। विरोधाभास के साथ भाजपा विरोधी दलों की रणनीति कितना कारगर होगी ये मतदान के बाद तय होगा। लेकिन दोनो तरफ से एक दूसरे को चित करने के लिए पूरा जोर लगाया जा रहा है।


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