FCA के फेर में फंसी प्रदेश की 302 सडक़ें

Update: 2024-09-04 10:24 GMT
Shimla. शिमला। प्रदेश की 302 ऐसी सडक़े हैं, जिनको फॉरेस्ट कंजरवेटर एक्ट की मंजूरी नहीं मिल पा रही है। इन सडक़ों पर काम आगे नहीं बढ़ा है और इस कारण आम जनता को परेशानियां हो रही हैं। हैरानी की बात है कि हर महीने सडक़ों पर लगी आपत्तियों को दूर करने के लिए अधिकारियों के बीच बैठकें होती हैं, परंतु नतीजा नहीं निकल रहा है। विधानसभा में इन सडक़ों की विस्तृत जानकारी दी गई है। सोलन की छह सडक़ें हैं, जबकि कसौली की एक, अर्की की चार सडक़ें, नालागढ़ की दो, चौपाल की सात सडक़ों के मामले लंबित हैं। वहीं कुसुम्पटी की चार, शिमला ग्रामीण की 14 सडक़ें इसमें शामिल हैं, जिन पर स्वीकृति नहीं मिल पाई है। शिमला शहर की एक, ठियोग की आठ, आनी की छह, किन्नौर की दो, लाहुल स्पीति की एक, रामपुर की 14, शिलाई की चार, नाहन की नौ, पच्छाद की तीन, पांवटा की एक, श्रीरेणुकाजी की नौ, मंडी सदर की दो, सुंदरनगर की 11 सडक़ें
अधर में लटकी हुई हैं।


वहीं, सराज की चार, बल्ह की छह, करसोग की पांच, नाचन की दो, बंजार की सात, कुल्लू की दो, जोगिंद्रनगर की दो, द्रंग की एक, नादौन की तीन, सुजानपुर की एक, सरकाघाट की चार, घुमारवीं की नौ, बिलासपुर सदर की दो, श्रीनयना देवी जी की 53, सुलाह की दो, शाहपुर की एक, कांगड़ा की तीन, डलहौजी की 13, चंबा की चार, चुराह की 11, भटियात की छह, भरमौर की नौ, जसवां परागपुर की 6, नूरपुर की पांच, फतेहपुर की दो, जवाली की 28 सडक़ें एफसीए से मंजूर नहीं हो सकी हैं। पिछले साल बरसात की वजह से कुल्लू व मंडी जिला में क्रशरों को भी बड़ा नुकसान हुआ है। यहां प्रदेश सरकार ने 29 क्रशर बंद कर दिए थे, जिनमें से आठ क्रशर कुल्लू और 17 मंडी के स्टोन क्रशरों को बहाल कर दिया गया है। मंडी के दो स्टोन क्रशर खनिज के वैद्य स्रोत न होने के कारण बंद हैं। कुल्लू का एक व मंडी का एक स्टोन क्रशर बाढ़ में बह गए थे, जो बहाल नहीं हो सके हैं। यह जानकारी सदन में एक लिखित उत्तर में सामने आई है। इसमें बताया गया है कि क्रशर से निकलने वाले रेत-बजरी के मूल्य निर्धारण करने का सरकार के पास कोई प्रावधान नहीं है। सरकार ने कांगड़ा जिला को टूरिज्म कैपिटल घोषित किया है, जहां पर एक टूरिस्ट विलेज बनाया जाना प्रस्तावित है। पालमपुर व शाहपुर के तहत नरगोटा में 25 हेक्टेयर तथा पालमपुर में 111 हेक्टेयर जमीन पर्यटन विभाग के नाम हस्तांतरित हो चुकी है। पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय की 111 हेक्टेयर भूमि पर्यटन विभाग के नाम हो चुकी है, मगर अभी सरकार के फैसले का इंतजार हो रहा है।
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