बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव की याचिका पर दिल्ली HC ने मांगा केंद्र से जवाब

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है।

Update: 2022-04-22 15:58 GMT

नयी दिल्ली, दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अलपन बंद्योपाध्याय की याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा है। बंद्योपाध्याय ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) द्वारा उनके खिलाफ कोलकाता से नयी दिल्ली में कार्यवाही स्थानांतरित किए जाने को चुनौती देने वाले उनके आवेदन को उच्च न्यायालय द्वारा खारिज करने के आदेश की समीक्षा की मांग की है।

न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह ने पुनर्विचार याचिका पर केंद्र को नोटिस जारी कर बंद्योपाध्याय के इस रुख पर जवाब मांगा है कि आदेश पारित होने से पहले उन्हें अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं मिला।
मामले पर अगली सुनवाई 20 मई को होगी।
गत सात मार्च को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने उनके खिलाफ कार्यवाही से संबंधित आवेदन कोलकाता से नयी दिल्ली स्थानांतरित किये जाने को चुनौती देने वाली बंदोपाध्याय की याचिका को खारिज कर दिया था और कहा था कि स्थानांतरण आदेश कानून के दायरे में पारित किया गया है।
बंदोपाध्याय ने 28 मई, 2021 को कलाईकुंडा वायुसेना स्टेशन पर चक्रवाती तूफान 'यास' के प्रकोप पर चर्चा के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई एक बैठक में शामिल नहीं होने के मामले में उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही को चुनौती देने के लिए कैट की कोलकाता पीठ का रुख किया था। यह कार्यवाही कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय ने शुरू की थी।
पश्चिम बंगाल सरकार ने बद्योपाध्याय को मुक्त नहीं किया था, जिसके बाद बंदोपाध्याय ने अपनी सेवानिवृत्ति की मूल तारीख 31 मई, 2021 को सेवानिवृत्त होने का फैसला किया था। इससे पहले राज्य सरकार ने उन्हें तीन महीने का सेवा विस्तार दिया था।
केन्द्र सरकार ने कैट की प्रधान पीठ के समक्ष एक स्थानांतरण याचिका दायर की थी, जिसने पिछले साल 22 अक्टूबर को बंदोपाध्याय की अर्जी को नयी दिल्ली में उसके पास स्थानांतरित करने की अनुमति दी थी।
शीर्ष अदालत ने छह जनवरी को कलकत्ता उच्च न्यायालय का आदेश रद्द कर दिया था। उसने कलकत्ता उच्च न्यायालय के 29 अक्टूबर 2021 के आदेश को चुनौती देने वाली केन्द्र सरकार की याचिका पर यह फैसला सुनाया था।


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