कांग्रेस के दर्जन भर से ज्यादा फ्रंटल संगठनों में लगा जंग

Update: 2023-03-07 10:04 GMT

मेरठ: प्रदेश से लेकर केन्द्र तक सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस नीत यूपीए गठबंधन लालायित है। पार्टी के पूर्व मुखिया राहुल गांधी जहां इसके लिए पैदल ही कन्याकुमारी से कश्मीर तक सफर तय कर कांग्रेसियों में जोश भरने की कोशिश कर चुके हैं, वहीं विपक्षी एकता को एक मैसेज भी दे दिया है। हाईकमान अपना वजूद दोबारा हासिल करने के लिए भले ही बड़ी बड़ी कोशिशें करने में जुटा हो, लेकिन कुछ बुनियादी उसूलों पर अमल करने में पार्टी अब भी पीछे है।

दरअसल, मेरठ सहित पूरे उत्तर प्रदेश में पार्टी के विभिन्न फ्रंटल संगठनों की सुस्ती इस बात का सुबूत है कि कांग्रेस के लिए लखनऊ हो या फिर दिल्ली अभी दोनों ही दूर हैं। पूरे प्रदेश में यह फं्रटल संगठन सुस्त पड़े हैं। अगर मेरठ की ही बात करें तो यहां पार्टी की मेन विंग (मुख्य एवं यूथ कांग्रेस) के अलावा अन्य प्रकोष्ठों का अता पता ही नहीं है। जिला संगठन भी कागजों में ज्यादा काम कर रहा है, धरातल पर नहीं। सभी गर्त में हैं।

रही सही कसर पुराने अथवा वरिष्ठ कांगे्रसियों की ‘अनदेखी’ ने पूरी कर दी है। मेरठ सहित पूरे प्रेदश की अगर बात करें तो पार्टी के पास व्यापार प्रकोष्ठ, सहकारिता प्रकोष्ठ, सैनिक प्रकोष्ठ, मानवाधिकार प्रकोष्ठ, विधि प्रकोष्ठ, बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ, श्रम प्रकोष्ठ, एससी-एसटी प्रकोष्ठ, अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ, ओबीसी प्रकोष्ठ व खेल प्रकोष्ठ से लेकर सेवा दल व एनएसयूआई जैसे प्रकोष्ठ हैं। इनमें से सेवा दल व एनएसयूआई तो स्वयं में पार्टी का झण्डा बुलन्द करने में काफी महारत हासिल किए हुए हैं।

अब इसे पार्टी की बदकिस्मती कहें या फिर कुछ और यह सभी फ्रंटल संगठन अब लगता है कि पार्टी के इतिहास का हिस्सा बनने के करीब आ खड़े हुए हैं। मिशन 2024 सिर पर है। पार्टी हाईकमान दिल्ली पर राज करने के लिए सपने बुन रहा है लेकिन क्या यह सपने इन संगठनों को एक्टिव किए बिना सच साबित हो सकते हैं यह अपने आप में बड़ा सवाल है। मेरठ में आखिरी बार कब कांग्रेस का विधायक या सांसद बना था, शायद खुद आज के कई कांग्रेस पदाधिकारी इससे वाकिफ तक नहीं होंगे।

मुख्य विपक्षी की हैसियत से मेरठ में कांग्रेस का कोई बड़ा आंदोलन कब हुआ था, इससे भी कई कांग्रेसी अंजान होंगे। इन सब के बावजूद पार्टी अगर सत्ता पर काबिज होने का सपना देख रही है तो यह किसी बेइमानी से कम न होगा। अब यदि दिल्ली या लखनऊ में पार्टी का कोई रणनीतिकार यह सोच कर बैठा हो कि ‘संजीवनी बूटी’ के रूप में कोई मदद आएगी जो पार्टी को फिर से यौवन पर ले आएगी तो शायद यह उसकी रणनीतिकार की सबसे बड़ी भूल होगी।

दरअसल पार्टी को यदि सत्ता में आना है तो उसे अपनी कुछ आधारभूत कमियों को दूर करना होगा। सभी फ्रंटल संगठनों को एक्टिव मोड में लाना होगा। यहां तक कि स्थानीय स्तर पर अपने वरिष्ठ अथवा किन्ही वजहों से घर बैठ चुके कांग्रेसियों को फिर से जोड़कर उनका खोया सम्मान लौटाना होगा तक कहीं जाकर पार्टी मिशन 2024 के लिए सपने बुन सकती है।

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